डॉ नारंग को दिल्ली में मार दिया गया था |
23 मार्च 2016 की संध्या में दिल्ली के विकासपुरी में डॉ पंकज नारंग की लोहे के रॉड और क्रिकेट बैट इत्यादि से पिट-पिट कर हत्या कर दी जाती है। पता चलता है कि हत्या में शामिल लोग बांग्लादेशी मुसलमान थे। 11 अगस्त 2012 को मुम्बई के आजाद मैदान में 1857 के बलिदानियों का स्मारक अमर जवान ज्योति को तोड़ दिया जाता है। कुछ नागरिकों की हत्या हुई और असंख्य घायल हुए। महिला पुलिसकर्मियों के साथ अश्लील अभद्रता की गई, उनको मारा पिटा भी गया। पत्रकार भी नहीं बख्से गए।
पता चला कि उपद्रवियों में अधिकांश बांग्लादेशी मुलसमान थे। आजाद मैदान की रैली का आयोजन आसाम के दंगों और बर्मा के राखिने के दंगों के विरोध में आयोजित हुआ था। आजाद मैदान की रैली में रोहिंग्या मुसलमान भी शामिल थे। ध्यान रहे कि रोहिंग्या मुसलमान भी मूलतः बांग्लादेशी मुसलमान ही है। रैली के आयोजन में पीएफआई, जमीयत, जमायते इस्लामी समेत कई इस्लामिक संगठनों की भूमिका थी।
AMAR JAWAN JYOTI ATTACKED BY JIHADI MUSLIMS |
बंगलादेशी मुस्लिमो द्वारा बोडो जनजातियों के सफाया
आसाम के कोकराझार में बांग्लादेशी मुसलमानों के द्वारा चार बोडो युवकों की हत्या 20 जुलाई 2012 को कर दिया गया था। बोडो समुदाय ने 21 जुलाई को मुसलमानों पर आक्रमण करके दो बांग्लादेशियों को मार दिया तथा अनेको घायल हो गए।
तब तरुण गोगोई की काँग्रेस की सरकार थी आसाम में। सरकार मूकदर्शक बनकर बैठी रही। दंगे में अनेकों मारे गए। 4 लाख लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। बोडो जनजाती के लोगों के लिए अपने अस्तित्व की लड़ाई था यह थोपा हुआ दंगा। आरम्भ बांग्लादेशियों ने किया क्योंकि उनकी सँख्या अधिक हो जाने से उनका मनोबल बढ़ा हुआ था। वहाँ के बोडो जनजाति के लोगों के साथ आए दिन अप्रिय अभद्र व्यवहार करते रहते थे ये बांग्लादेशी मुसलमान।
बोडो जनजाति की यह संघर्ष गाथा केवल इनकी ही व्यथा नहीं है। यह पूरे आसाम की व्यथा है। आसाम के एक-एक जाति की यही व्यथा है। एक एक नागरिक की यही पीड़ा है। राज्य में तेज गति से बढ़ती जा रही बांग्लादेशी मुसलमानों की जनसंख्या आसाम की जनता के सामने अनेक संकट उपस्थित कर रहा है। अनेक प्रकार के आपराधिक घटनाओं का सामना आए दिन वहाँ की जनता कर रही है।
ऐसी घटनाओं से देश के अन्य राज्यों के लोगों का सामना कभी कभार होता होगा किन्तु आसाम की जनता इस प्रकार की घटनाओं और परिस्थितियों में जीने को अभ्यस्त हो चुकी है। या ऐसा कहें कि आसाम की जनता इस थोपी हुई दुखद परिस्थिति में जीने को अभिशप्त हो चुकी है।
यह दंगा बोडो जनजाति के भारतीय नागरिकों का विदेशी नागरिकों से भारत भूमि पर चल रहा संघर्ष था। किसी भी देश में विदेशी लोग जाकर दंगा-फसाद हत्या-अपराध करें तो अधिकांश देश ऐसे लोगों को तुरंत देश से बाहर निकाल देते हैं। जबरन डिपोर्ट कर देते हैं। किन्तु भारत में आकर ऐसे दंगा-फसाद करने वाले लोगों का आधार कार्ड, वोटर आई कार्ड, राशन कार्ड बन जाता है बहुत आसानी से। वो यहाँ के नागरिक भी बन जाते हैं और वोटर भी बन जाते हैं।
आपको बहुत आश्चर्य होगा कि भारत के अनेक राजनीतिक दलों की विचारधारा ही है अवैध रूप से भारत में आए घुसपैठियों को सारी सुविधा देकर उन्हें बसाने की। कुछ राजनीतिक दल ऐसे अवैध रूप से घुसपैठ करके भारत में वोटर बन कर बस गए विदेशियों के बलपर ही राजनीति करते हैं।
नागरिक सुरक्षा किसी भी राज्य का प्रमुख विषय होता है क्योंकि राज्य की कल्पना नागरिक सुरक्षा व सम्मान के बिना निरर्थक हो जाता है। भारत में अनेक राज्यों में कानून बनाया गया स्थानीय संस्कृति को सुरक्षित करने के उद्देश्य से। कई स्थानों पर थोड़ी संख्या में उपलब्ध जातियों की संस्कृति सुरक्षित करने के लिए विशेष कानून बनाए गए। ऐसे कानूनों की आवश्यकता है यद्यपि इनका दुरुपयोग भी निहित उद्देश्यों से किया जाता है।
तथापि जैसे एक एक जाति और एक एक क्षेत्र की संस्कृति को सुरक्षित करने की चिंता करते रहे हमारे देश के पुरोधा वैसे ही आसाम की संस्कृति पर आए इस सुनामी स्वरूप संकट से आसाम को सुरक्षित करने का चिंतन आवश्यक है। इस बांग्लादेशी जनसँख्या आक्रमण को निर्मूल कर देने वाला सटीक निराकरण की आवश्यकता है।
आसाम में मुसलमानों की विस्फोटक जनसंख्या
1901 में आसाम में मुसलमान जनसँख्या पाँच लाख तीन हजार छः सौ सत्तर था। 2011 में बढ़कर एक करोड़ छः लाख उन्न्यासि हजार तीन सौ पैंतालीस हो चुका है जो आसाम की कुल जनसँख्या का 34.22% है। आसाम के नौ जिलों में मुसलमान जनसँख्या 50% से अधिक है। इन नौ जिलों में से दो जिले बरपेटा और ढुबरी में इनकी सँख्या 70% से अधिक है। ढुबरी में मुसलमान जनसँख्या 79.67% है। 1947 में केवल एक करीमगंज जिला ही मुस्लिम बहुल था। 2001 में 6 जिले मुस्लिम बहुल हो चुके थे जबकि 2011 में 9 जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। 2021 की आगामी जनगणना में पता नहीं क्या स्थिति होगी?
मुस्लिम बहुल हो चुके 9 जिलों की मुसलमान आबादी पर एक नजर दौड़ाते हैं। बरपेटा- 70.74%, बोंगाईगांव- 50.22%, डारंग- 64.34%, ढुबरी- 79.67%, गोआलपाड़ा- 57.52%, हैलाकांडी- 60.32%, करीमगंज- 56.36%, मोरीगांव- 52.56%, नागाँव- 55.36% । कछार, चिरांग, कामरूप, कोकराझार एवं नालबाड़ी ये 5 ऐसे जिले है जहाँ मुस्लिम जनसँख्या 22 से 40% के बीच है। आसाम के 5 जिलों में मुसलमान जनसँख्या 10 से 20% है। 8 जिलों में 10% से नीचे है जबकि 5 जिलों में मुस्लिम जनसँख्या 5% से कम है। ढिमाजी, डिब्रूगढ़, दिमा हसाव, कारबी आँगलोंग और तिनसुकिया।
NRC need all over India |
आसाम में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि के कारण
मुसलमान जनसँख्या में यह बेतहासा वृद्धि का एकमात्र कारण बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ है। यह आँकड़े 2011 की जनगणना के हैं। 2011 से 2018 तक 7-8 वर्षों में यह जनसँख्या और भी बढ़ गइ होगी क्योंकि इनके घुसपैठ की दर बहुत तेज है। एनआरसी में कहा गया है कि 40 लाख मुसलमान अवैध घुसपैठिय हैं। यह 40 लाख तो वो लोग हैं जिन्होंने अपने आपको आसाम का मूल नागरिक सिद्ध करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। जिनके पास 24 मार्च 1971 को आधार मानकर नागरिकता का दावा कर सकें इतने दस्तावेज नहीं थे और उन्होंने कोई आवेदन नहीं किया उनकी गिनती तो इस एनआरसी के ड्राफ्ट में है ही नहीं। और फिर जो इसी वर्ष बांग्लादेश से भारत आ गए होंगे उनकी तो गिनती का प्रश्न ही नहीं है। उनकी गिनती न तो जनगणना में है न ही एनआरसी में है। एक अनुमान के अनुसार आसाम में अवैध बांग्लादेशियों की सँख्या लगभग सवा करोड़ के आसपास है।
उपरिवर्णीत सभी बातों के आलोक में अब आप समझ सकते हैं कि किस तेज गति से आसाम की सांस्कृतिक पहचान मिटती जा रही है और आसाम की हिन्दू जनता कितनी बिकट स्थिति का सामना कर रही है? जहाँ मुसलमान जनसँख्या लगभग 80% है, उस ढुबरी में हिंदुओं की स्थिति का आप अनुमान भी नहीं लगा सकते। रोटी का नाम लेकर घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशियों ने आसाम के निचले क्षेत्र को लगभग पैरालॉइज कर दिया है। इस क्षेत्र को लोवर आसाम कहा जाता है।
इन बांग्लादेशियों के पास अनेक भारतीय दस्तावेज उपलब्ध होने के कारण कानून के सामने इनको बांग्लादेशी सिद्ध कर पाना बहुत कठिन हो जाता था। ऐसे में नागरिकों की पहचान स्पष्ट करने वाले एक सरकारी दस्तावेज की बहुत आवश्यक्ता अनुभव हो रही थी लंबे समय से।
बांग्लादेश की आजादी के समय 1971 से 1991 तक 20 वर्षों में मुसलमान जनसँख्या में 77.33% की वृद्धि दर्ज की गई। इस तेज वृद्धि दर के कारण उपजी विसंगति ने ही एनआरसी की आवश्यकता अनुभव कराया। उपरोक्त बीस वर्षों में मुसलमान जनसँख्या आसाम में लगभग दो गुणा हो गया। 1971 कि जनगणना में मुस्लिम 35 लाख 94 हजार 6 की संख्या में था जबकि 1991की जनगणना में यह सँख्या बढ़कर 63 लाख 73 हजार 204 हो गया। यद्यपि आसाम में किसी भी दो जनगणना के बीच के कालखण्ड में अर्थात दस वर्षों में औषत 30% मुसलमान जनसँख्या बढ ही जाता है।
इस जनसँख्या जिहाद व घुसपैठ जिहाद को रोकना बहुत आवश्यक है। अन्यथा आसाम की समृद्ध संस्कृति पूर्णतः नष्ट हो जाएगी। कैंसर की तरह बढ़ती जा रही इन समस्याओं के आलोक में आसाम में एनआरसी की बहुत आवश्यक्ता थी। आज एनआरसी प्रकाशित हो जाना घने अंधेरे में आशा की एक किरण है। वैसे यह एनआरसी का प्राथमिक ड्राफ्ट है और अभी भी फाइनल ड्राफ्ट आने में बहुत समय लगेगा। फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने की प्रक्रिया में अनेकों कठिनाईयाँ आना शेष है। किन्तु आशा है कि सर्वानंद सोनोवाल का एनआरसी के प्रति समर्पित परिश्रम सुखद परिणाम लाएगा।
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