NRC क्या है ? |
आसाम के बाहर एनआरसी आज भी एक अबूझ पहेली बना हुआ है। आखिर क्या है यह एनआरसी? कैसे इसमें शामिल किए गए हैं लोग? क्या है शामिल होने की योग्यता, अर्हता और मापदंड? सरकार ने कौन सी प्रक्रिया अपनाया है इसके निर्माण में जिसके आधार पर इसको फूल प्रूफ समझा जा सके? आधार कार्ड, वोटर आई कार्ड, राशन कार्ड इत्यादि से कैसे भिन्न होगा यह एनआरसी का दस्तावेज? घुसपैठियों ने बाकी के दस्तावेज आसानी से बनवा लिए थे तो क्या वो एनआरसी में भी शामिल हो जाने का जुगाड़ नहीं कर लेंगे? क्या नागरिकों की पहचान इतनी अस्सनी से सम्भव हो पायेगा?
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भारत मे पहचान पत्र क्यो नही ?
दुनियाँ के छोटे से छोटे देश में भी वहाँ के नागरिकों का पहचान पत्र सबके पास होता है। किंतु भारत में आजादी के 70 वर्षों बाद तक भी नागरिकता पहचान पत्र नहीं बन पाया। ऐसे में क्या आज संभव है कि नागरिकों की ठीक ठीक पहचान करके नागरिकता पंजीयन निर्माण करना संभव हो पाएगा? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो आज आसाम से बाहर के भारतीयों को चिंतन के लिए बाध्य कर रहे हैं। आईये आज हम इन्हीं प्रश्नों का उत्तर जानने का प्रयत्न करते हैं।
कौन-कौन एनआरसी में शामिल हो सकता है ?
यदि किसी व्यक्ति या उसके पूर्वजों का नाम 1951 में बनी एनआरसी में सम्मिलित था या 24 मार्च 1971 तक की किसी भी मतदाता सूची में उस व्यक्ति या उसके पूर्वजों का नाम सम्मिलित था। तभी उसको एनआरसी के वर्तमान ड्राफ्ट में सम्मिलित किया गया है। 24 मार्च 1971 की मध्यरात्री तक सरकार द्वारा जारी किए गए किसी अन्य दस्तावेज जिन्हें पहचान पत्र के रूप में सरकारी स्तर पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय के अनुसार स्वीकृत किया जाता है, उसमें भी नाम शामिल है तो एनआरसी ड्राफ्ट में नाम सम्मिलित हो सकता है।
यदि कोई व्यक्ति 1 जनवरी 1966 को या उसके बाद किन्तु 25 मार्च 1971 से पूर्व आसाम आ गया था और उसने केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अंतर्गत फॉरेनर्स रजिस्ट्रेशन रीजनल ऑफिसर (FRRO) के पास अपना पंजीकरण करा चुका था और वहाँ के सक्षम पदाधिकारियों के द्वारा अवैधानिक घुसपैठिया घोषित नहीं हुआ था तो वह एनआरसी में सम्मिलित होने की अर्हता पूरा करता है। जो आसाम के मूल निवासी हैं यदि उनके बच्चे और नई पीढ़ी भारत के नागरिक हैं तो संबंधित पदाधिकारी के समक्ष कुछ निर्धारित प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर देकर एनआरसी में सम्मिलित हो सकते हैं।
कोई भी मतदाता एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदन दे सकता है किंतु संम्बन्धित फॉरेनर ट्रिब्यूनल उनको नन फॉरेनर घोषित करता है तभी एनआरसी में सम्मिलित हो सकते हैं। यदि कोई भी भारतीय नागरिक या उसके बच्चे जो आसाम 24 मार्च 1971 के बाद भी गया हो किन्तु 24 मार्च 1971 के पहले का आसाम के बाहर भारत में कहीं का भी निवासी होने का संतोषजनक प्रमाण उपलब्ध करा देता है तो वह एनआरसी में सम्मिलित हो जाएगा। “Schedule of the Citizenship” (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिजंस एंड उश्यू ऑफ आइडेन्टिटी कार्ड्स) रूल्स 2003 के क्लॉज 3(3) के अनुसार चाय बागान से जुड़े टी ट्राइब के लोग आसाम के मूल निवासी माने जाएंगे और एनआरसी में जोड़े जाएँगे। उपरोक्त वर्णित सभी प्रकार के आसाम के निवासी रजिस्ट्रिंग ऑथोरीटी ऑन एस्टेबिलिशमेंट ऑफ सिटीजनशिप के पास किसी संदेह से परे संतोषजनक दस्तावेज प्रस्तुत करके एनआरसी में सम्मिलित हो सकते हैं।
नागरिकता सिद्ध करने का अवसर दिया जाएगा
जो लोग 1951 से 1961 के बीच आसाम में आ गए थे उनको पूर्ण नागरिकता दी जाएगी और मतदान का अधिकार भी दिया जाएगा। किन्तु जो 24 मार्च 1971 के बाद आसाम में आए हैं और अपने आपको तय मानकों के अनुसार नागरिक सिद्ध नहीं कर पाए उन सभी को भारत के बाहर डिपोर्ट कर दिया जाएगा। और जो लोग 1961 से 1971 के बीच आसाम आये हैं, उनको एनआरसी में शामिल तो किया जायेगा। किन्तु दस वर्षों तक मतदान का अधिकार नहीं होगा। अभी एनआरसी की प्रकाशित सूची प्राथमिक सूची है। अभी जिन जिन का नाम इसमें सम्मिलित नहीं किया गया है उन सभी को अपने आपको उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर नागरिक सिद्ध करने का अवसर दिया गया है। इस प्रक्रिया के बाद जो अंतिम स्थिति आएगी तब यह इस एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट आएगा। और यह सब कार्य सुप्रीम कोर्ट के देखरेख में चल रहा है।
भारत विभजन के समय आसाम में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आ रहे अवैध घुसपैठियों से पृथक असमिया नागरिकों की पहचान स्पष्ट रुप में किया जा सके इस उद्देश्य से वहाँ 1951 में भी एनआरसी बनाया गया था। 1951 की जनगणना को आधार बनाकर यह एनआरसी तैयार किया गया था। जिससे आसाम के मूल नागरिकों की पहचान संभव हो पाया था। किंतु 1971 के बाद उम्मीद तो यह था बांग्लादेश की आजादी के बाद बांग्लादेश भारत के लिए सहायक होगा और मित्र की भूमिका निभाएगा। उसके आजादी में सहयोग के कारण भारत का एहसान मानेगा बांग्लादेश किन्तु हुआ ठीक उल्टा।
बंगलादेश के आबादी की 40% घुसपैठिये भारत मे
बांग्लादेश की सत्ता में बैठे लोग ऊपर से गोलमोल बातें करते रहे और अंदर से घुसपैठ को हवा देते रहे। परिणाम आज बांग्लादेश की कुल जनसँख्या का लगभग 40% भारत में आ चुका है घुसपैठियों के रूप में। आज बांग्लादेश की कुल अनुमानित जनसँख्या 16 करोड़ 65 लाख है। और एक अनुमान के अनुसार लगभग 10 करोड़ बांग्लादेशी भारत में आ चुके हैं। दोनो संख्या को जोड़ देंगे तो भारत में घुसपैठ कर चुके बांग्लादेशियों की संख्या लगभग 40% हो जाती है।
समाचार |
पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बनने की कहानी बांग्लादेश की आजादी का दास्तान है। यद्यपि बांग्लादेश को आजादी भारत ने ही दिलाया था। बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी तो केवल नाम की चीज थी। यथार्थ में वहाँ आजादी की लड़ाई लड़ा था हजारीबाग के पास स्थित मेरु कैम्प के बीएसएफ के जवानों ने। हमारे बीएसएफ के जवानों के सामने पाकिस्तान की सेना के जनरल नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था। हमारी सेना वहाँ नहीं गई थी युद्ध करने अर्द्ध सैनिक बल बीएसएफ के जवानों ने यह इतिहास रच दिया था। किंतु बांग्लादेश की यह आजादी भारत में बांग्लादेशी मुसलमानों के अंधाधुंध घुसपैठ का दौर लेकर आया।
घुसपैठ के विरोध में आंदोलन
बांग्लादेशी मुसलमानों का आसाम में सबसे अधिक घुसपैठ हुआ। जिससे वहाँ का आम जनजीवन प्रभावित होने लगा। घुसपैठियों ने अनेक हिंसक दंगों का आरम्भ किया जिसमें असंख्य लोग मारे गए। कई प्रकार की अमानुषिक घटनाओं को अंजाम दिया गया। आसाम अस्थिर होता चला गया। इस दुखद स्थिति से प्रभावित चिन्तित होकर आसाम के विद्याथियों ने 1979 से 1985 तक लगातार छः वर्ष बांग्लादेशी मुसलमानों के घुसपैठ के विरोध में बड़ा आंदोलन चलाया जिससे विवश होकर केंद्र सरकार को छात्रों की मांगो पर हस्ताक्षर करना पड़ा जिसे आसाम अकॉर्ड के नाम से जाना जाता है।
1985 में हस्ताक्षरित आसाम अकॉर्ड के अनुसार 24 मार्च 1971 को अंतिम तिथि माना गया था नागरिक सूची में सम्मिलित होने के लिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की उपस्थिति में ऑल आसाम स्टूडेंट यूनियन (AASU) के अध्यक्ष प्रफुल कुमार मोहन्त, आसू के महासचिव भृगु कुमार फुकन, ऑल आसाम गण संग्राम परिषद के महासचिव ब्रिज शर्मा और तत्कालीन केंद्रीय गृह सचीव आरडी प्रधान तथा आसाम के मुख्य सचीव पीपी त्रिवेदी के मध्य आसाम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर हुआ 14 अगस्त 1985 को संध्या 3 बजे। 15 अगस्त को इस आसाम अकॉर्ड की घोषणा राजीव गाँधी ने लाल किले से अपने भाषण में भी किया था।
किन्तु तब से लेकर आज तक एनआरसी बनाने की सहमति आसाम एकॉर्ड के माध्यम से देने के उपारन्त भी एनआरसी नहीं बनाया गया और 33 वर्ष तक मामला लटका कर रखा गया। आसाम जलता रहा और आसाम एकॉर्ड फाइलों में सड़ता रहा। सर्वानंद सोनोवाल जैसा धन्यभाग मुख्यमंत्री पाया आसाम ने जिन्होंने बहुत तत्परता से एनआरसी का ड्राफ्ट बहुत कम समय में प्रकाशित कराने का साहस किया है और आज एनआरसी का ड्राफ्ट सबके सामने है। आसाम का यह एनआरसी ड्राफ्ट भारत में नया इतिहास रचेगा। भारत के हर राज्य से अब एनआरसी की मांग उठेगी और भारत व्यापी एनआरसी का मार्ग प्रशस्त होगा। भारत के नागरिकों के जान-माल, रोजी-रोजगार, सम्मान-प्रतिष्ठा, रीति-नीति, परम्परा-धर्म की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।
~मुरारी शरण शुक्ल।