सावित्रीबाई फूले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, 3 जनवरी वर्ष 1831 को महाराष्ट्र में उनका जन्म हुआ था। अंग्रेजी शासन के दौरान सामाजिक समता और स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में उनका अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन क्या सावित्रीबाई फूले से पहले भारत में महिला शिक्षिकाएं नहीं होती थी?
- देश में कन्याओं के लिए क्या कोई विद्यालय नहीं होते थे?
- क्या सावित्रीबाई फूले से पहले भारत में लड़कियां पढ़ती लिखती नहीं थी?
- यदि सावित्रीबाई फूले प्रथम महिला शिक्षिका थी तो “होती विद्यालंकार”, रूपमंजरी देवी, आनंदमयी देवी, हरकुंवर और पदमजा देवी जैसी महिलाएं कौन थी?
होति विद्यालंकार (Hoti Vidyalankar)
सावित्रीबाई फूले के जन्म से बहुत पहले बंगाल में होति नाम की एक विदुषी (विद्वान स्त्री) हुआ करती थी। उनका जन्म वर्ष 1740 के आसपास था। होति संस्कृत, काव्य, न्यायशास्त्र, गणित और आयुर्वेद की ज्ञाता थी। उन्होंने काशी में कन्याओं के लिए एक विशाल गुरुकुल स्थापित किया था। काशी के पंडितों ने उन्हें “विद्यालंकार” की उपाधि दी थी। जिसके बाद उन्हें होती विद्यालंकार के नाम से जाना गया। वर्ष 1810 में उनका निधन हो गया।
अंग्रेज मिशनरी विलियम वार्ड (William Ward) ने 1811 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में होति विद्यालंकार का वर्णन किया है। इसके अनुसार- “उनके गुरुकुल में देश भर से छात्र-छात्राएं अध्ययन हेतु आते थे। हर कोई विद्यालंकार के नाम से उनका सम्मान करता था।”
रूपमंजरी देवी
होति विद्यालंकार के जन्म के कुछ दशक बाद रूपमंजरी देवी का जन्म हुआ था। वह भी बंगाल के पूर्व वर्धमान जिले की रहने वाली थी। रूपमंजरी देवी ने बचपन में पड़ोसी गांव के एक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी। वह आयुर्वेद की ज्ञाता थी। उन्होंने भी कन्याओं के लिए विद्यालय की स्थापना की थी और जीवन भर अविवाहित रहकर पठन पाठन का काम करती रही। रूपमंजरी देवी को भी “विद्यालंकार” की उपाधि मिली थी। लोग उन्हें “होतु विद्यालंकार” के नाम से भी पुकारते थे। वर्ष 1875 में आयु में 100 वर्ष की आयु में रूपमंजरी देवी का निधन हो गया।
वर्ष 1935 में दिनेश चंद्रसेन ने “ग्रेटर बंगाल: अ सोशल हिस्ट्री” (Greater Bengal: A Society History) नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें होति विद्यालंकार और रूपमंजरी देवी के अतिरिक्त बंगाल की कई अन्य विदुषियों का भी वर्णन किया गया है।
हरकुंवर सेठानी (Harkunwar Sethani)
वर्ष 1850 में गुजरात के कर्णावती में हरकुंवर सेठानी ने लड़कियों का स्कूल स्थापित किया था। इसका नाम “मगनलाल करमचंद कन्या विद्यालय” था। यह भी सावित्रीबाई फूले के विद्यालय से एक वर्ष पहले बना था।
भारत में स्त्रियों की शिक्षा को हमेशा बहुत महत्व दिया गया। भारतीय संस्कृति में ही माता को प्रथम गुरु की संज्ञा दी गई है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार-
पितुरप्यधिका माता गर्भधारणपोषणात् ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु नास्ति मातृसमो गुरुः||
उत्पीड़क अंग्रेज महिलाओ के लिए उदारवादी कैसे?
ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता कि भारतीय संस्कृति में कन्याओं की शिक्षा पर कभी कोई प्रतिबंध रहा हो। सावित्रीबाई फूले के जन्म से पहले ही अंग्रेजों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी। बड़ी संख्या में अंग्रेज सिपाही देश भर में बने कैंटोनमेंट इलाकों में रहते थे। अक्सर भारतीय स्त्रियां अंग्रेजों की काम वासना का शिकार बना करती थी। निर्धन और कमजोर वर्ग की महिलाएं बड़ी संख्या में इस वेश्यावृत्ति में धकेल दी गई। यह समझ से परे है कि जो अंग्रेज भारतीय स्त्रियों का बर्बर यौन उत्पीड़न कर रहे थे, वे ही स्त्री शिक्षा को लेकर इतने उदार थे?
गुलाम काले अंग्रेजो ने झूठ दोहराया
हमने जिन होति विद्यालंकार के बारे में बताया, वह बहुत सामान्य परिवार में जन्मी थी। वो बचपन में ही विधवा हो गई थी। सोचिए वह लोग कौन थे? जिन्होंने यह झूठ फैलाया कि हिंदू समाज में महिलाओं को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था।
सावित्रीबाई फूले के योगदान पर हम कोई प्रश्न नहीं उठाना चाहते। लेकिन उनका नाम लेकर भारतीय समाज और हिंदू धर्म को कलंकित करने का प्रयास लंबे समय से होता रहा है। भारतीय समाज में स्त्री शिक्षकों की प्राचीन परंपरा रही है। भारतीयों में अपनी संस्कृति और समाज के लिए हीन भावना डालने के लिए अंग्रेजों ने कुछ झूठ गढ़े। स्वतंत्रता के बाद काले अंग्रेजों ने उन झूठों को दोहराना जारी रखा और आज हम सब ने उन झूठों को ही सत्य मान लिया है।