अम्बेडकरवादियों और समाजवादियों द्वारा फैलाया गया इस सदी का सबसे बड़ा झूठ कि- "आज़ादी से पहले तथाकथित शूद्रों को पढ़ने- लिखने, मंदिर जाने का अधिकार नहीं था!"
जबकि सच ये है कि-👇
- प्राचीन गुरुकुल औऱ पाठशालाओं में शूद्र छात्रों की संख्या सबसे ज़्यादा थी!
- इन गुरुकुलों में शूद्र हर तरह की विद्या हासिल करते थे- ज्योतिष से लेकर चिकित्सा शास्त्र तक!
- सबको रामायण, महाभारत, गीता पढ़ाई जाती थी!
- गुरुकुलों में दलित भी पढ़ते थे! दलित शिक्षक भी थे।
- मंदिरों में शूद्रों को कोई मनाही नहीं थी!
ब्रिटिश सरकार ने 1822-1838 के बीच भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समझने के लिए कई सर्वे करवाये-
- Thomas Munro survey (Madras presidency, 1822-26): दक्षिण भारत के गुरुकुलों में शूद्रों/पंचमों की संख्या 60-70% के बीच थी!
- A.D Campbell report (bellary, 1822-23): तथाकथित निचली जाति के छात्रों की संख्या 66% थी!
- T.B Jervis survey (Bombay presidency, 1824-25): न सिर्फ शूद्र छात्रों की संख्या ज़्यादा थी, कई शिक्षक भी इन जातियों से थे!
- W. Adam report (Bengal presidency, 1836-38): बंगाल और बिहार में 1 लाख से ज़्यादा स्कूल थे! हर जगह शूद्रों की संख्या ज़्यादा थी! शूद्र और दलित शिक्षक भी थे!
Adam ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि-
"Parents of good caste do no hesitate to send their children to schools conducted by teachers of an inferior caste or even different religion."
उच्च शिक्षा संस्थानों में काफी विषय पढ़ाये जाते थे- त्रिकोणमिति (Theology), खगोलशास्त्र (Astronomy), तत्वविज्ञान (Metaphysics), विधि (Law), ज्योतिषशास्त्र (astronomy), साहित्य (literature), संगीत (music), दवा (medicine) वगैरह! नाइयों को अच्छा surgeon, यानी (शल्य चिकित्सा) का expert समझा जाता था!
अधिकतर गांव और दूरदराज इलाकों में कई मंदिरों में हर जाति के पुजारी होते रहे हैं, आज़ादी से काफी पहले से ही!
Sources:
- The Beautiful Tree. Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century. By Dharampal.
- Essential writings of Dharampal
- Adam's report on vernacular education in Bengal & Behar, submitted to government in 1835, 1836 and 1838
- Colonial State as ‘New Manu’? Explorations in Education Policies about Dalit and Low Caste Education in Nineteenth-Century India. By PV Rao