हिंदू जब भी अयोध्या, काशी, मथुरा या संभल जैसे मंदिरों की बात करते हैं, तत्काल एक वर्ग खड़ा होकर कहता है कि वे स्थान वास्तव में बौद्ध विहार थे। हिंदुओं ने बौद्धों के मंदिर और स्तूप तोड़कर मंदिर बनाए। इस क्रम में ईसा से 150 वर्ष पहले हुए राजा पुष्यमित्र शुंग का नाम लिया जाता है। उन्हें ब्राह्मण बताया जाता है और दावा किया जाता है कि Pushyamitra Shunga ने मौर्य वंश Maurya Dynasty को नष्ट करके बौद्ध धर्म का अंत किया। यह दावा अधिकांश वे वामपंथी मार्क्सवादी इतिहासकार करते हैं जो हिंदुओं पर इस्लामी आक्रमणों का बचाव करते हैं। हमने इस लेख में कैलाश पर्वत और येरुशलम और उन्हें पूज्य मानने वाले समुदायों की तुलना की है।
राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ या भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्की के भावी जन्मस्थल को मुक्त कराने का संघर्ष! यह सूची बहुत लंबी है। देश भर में हजारों मंदिर हैं, जिन्हें इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया और उन पर अपने मजहबी ढांचे बना दिए। किसी वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता नहीं, सत्य स्पष्ट रूप से सामने दिखता है।
लेकिन जैसे ही कोई हिंदू इन मंदिरों को वापस लेने की बात करता है, तुरंत एक दलील दी जाती है कि “हिंदुओं ने भी तो बौद्धों के मंदिर तोड़े! जिन मंदिरों को वापस मांगा जा रहा है, वे तो वास्तव में बौद्ध विहार थे!”
इस क्रम में ईसा से 185 वर्ष पहले मगध के शासक रहे पुष्यमित्र शुंग का नाम लिया जाता है। दावा किया जाता है कि “पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण थे, उन्होंने हजारों स्तूप तुड़वाये और बौद्धों का नरसंहार कराया!” यह बात सही है या नहीं, थोड़ी देर के लिए इसे छोड़ देते हैं।
कैलाश पर्वत पर हिन्दू और बौद्ध कहानी
तिब्बत के कैलाश पर्वत को देखिए! हिंदू इसे भगवान शिव और माता पार्वती का निवास मानते हैं। एक बार रावण ने कैलाश पर चढ़ने का प्रयास किया तो शिवजी ने उसे वहां से धक्का दे दिया। रावण के गिरने के कारण कैलाश पर यह निशान बन गया।
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हिन्दू और बौद्ध धर्म की मान्यता एक ही है! |
इसी कैलाश पर्वत को बौद्ध ग्रंथों में मेरु पर्वत कहा गया है। जहां पर डेम चौक अर्थात बुद्ध चक्र संवर और उनकी पत्नी दोरजे फागम निवास करते हैं। बौद्ध कथाओं के अनुसार- एक बार नारो वांगचुंग नाम की व्यक्ति ने कैलाश पर चढ़ने का प्रयास किया तो उसे वहां से धक्का दे दिया गया। उसके फिसलकर नीचे गिरने से कैलाश की चोटी से नीचे तक यह निशान बन गया! अर्थात कैलाश पर्वत को लेकर हिंदुओं और बौद्धों की कहानी बिल्कुल एक है। बस पात्रों के नाम बदल गए हैं।
जनरल जोरावर सिंह का स्तूप
हजारों वर्षों से दुनिया भर के हिंदू और बौद्ध कैलाश पर्वत के दर्शन करने जाते हैं। दोनों लगभग एक ही तरह से कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं। हजारों वर्षों के इतिहास में एक बार भी किसी हिंदू ने किसी बौद्ध या किसी बौद्ध ने किसी हिंदू को कैलाश पर्वत की पूजा से नहीं रोका।
कैलाश मानसरोवर का पूरा क्षेत्र जब कश्मीर के राजा के डोगरा सेनापति जनरल जोरावर सिंह के अधिकार क्षेत्र में था। तब भी हिंदुओं ने किसी बौद्ध को कैलाश की पूजा से नहीं रोका। बाद में एक युद्ध में जनरल जोरावर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए, तो स्थानीय तिब्बती बौद्धों ने उनका स्तूप बनाकर उनकी पूजा आरंभ कर दी। क्योंकि जनरल जोरावर सिंह अपनी वीरता और न्याय प्रियता के कारण तिब्बत में भी बहुत लोकप्रिय थे।
कैलाश पर्वत और यरुशलम में तुलना
हिंदू और बौद्ध ही नहीं! जैन, सिख और तिब्बत के बौन-धर्म के लोग भी कैलाश की पूजा करते हैं, और उन सबके बीच कैलाश को लेकर कभी कोई लड़ाई नहीं हुई। अब कैलाश पर्वत की तुलना यरूशलम से कीजिए! तीनों अब्रह्मामिक मजहब यहूदी, ईसाई और इस्लाम, यरूशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं।
तीनों मजहब के बीच यरूशलम पर कब्जे को लेकर इतिहास में सैकड़ों युद्ध हो चुके हैं और आज भी हो रहे हैं। कोई भी एक दूसरे को यरूशलम में सहन करने को तैयार नहीं है। कैलाश और यरूशलम एक उदाहरण है कि आस्था को लेकर सनातन परंपरा के लोग किस तरह से व्यवहार करते हैं और अब्राहम मजहब वाले क्या करते हैं।
हिन्दू और बौद्ध विवाद इतिहास में क्यो नही मिलता?
काशी के पास सारनाथ है, गया के पास बौद्ध गया है, देश भर में ऐसे ढेरों प्राचीन नगर हैं जो हिंदुओं और बौद्धों दोनों के लिए तीर्थ हैं। ऐसे किसी भी नगर के इतिहास में कभी हिंदुओं और बौद्धों के बीच युद्ध का कोई प्रमाण नहीं मिलता। फिर यह बात कहां से आयी कि हिंदुओं ने बौद्ध धर्म को नष्ट कर दिया?
भारत भर में ढेरों बौद्ध स्तूप है, लेकिन उन पर या उनके आसपास कोई भी हिंदू मंदिर नहीं पाया जाता। महाराष्ट्र में बनी अजंता अलोरा की गुफाएं भारतीय धर्मों की सह अस्तित्व भावना का सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां पर एक साथ हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों धर्मों के मंदिर हैं। मुगल लुटेरे औरंगजेब ने इन्हें तुड़वाने के लिए अपनी पूरी फौज लगा दी थी।
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अजन्ता एलोरा में हिन्दू, जैन और बुद्ध एक ही साथ |
बौद्धों के पतन का कारण
भारत में बौद्धों के पतन का असली कारण दलाई लामा बताते हैं। उनके अनुसार- “बौद्ध मत भारत से गायब हो गया, क्योंकि यह मठों तक ही सीमित हो चुका था! इस कारण हम इस्लामी आक्रांताओं का आसान शिकार बन गए। दूसरी ओर हिंदू धर्म, एक पारिवारिक धर्म होने के कारण जनसामान्य में फैला हुआ था। आक्रमणकारी नहीं जान पाए कि उसकी जड़ें कहां तक हैं। इसलिए वे उसे मिटा नहीं सके।”
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दलाई लामा बुद्ध धर्म के खत्म होने के कारण बता रहे है |
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के भाषणों और लेखों की पुस्तक ‘द डिक्लाइन एंड फॉल ऑफ बुद्धिस्म’ में वे बताते हैं- “इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में बौद्ध धर्म का पतन मुसलमानों के आक्रमणों के कारण हुआ। इस्लाम बुध का दुश्मन बनकर सामने आया। बुत अरबी शब्द है, इसका अर्थ होता है। मूर्ति बुत शब्द बुद्ध से बना है। मुस्लिम आक्रमणकारी मूर्ति पूजा को बुद्ध धर्म के साथ जोड़कर देखते थे। इस्लाम ने ना केवल भारत में बल्कि बैक्ट्रिया, पार्थिया, अफगानिस्तान, गंधार, तुर्किस्तान और एशिया के बहुत सारे देशों में बौद्ध धर्म को नष्ट किया। नालंदा, विक्रमशिला, जगदला, उदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों और अनगिनत बौद्ध मठों को मुसलमानों ने मिट्टी में मिला दिया।”
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अंबेडकर बौद्ध धर्म के नष्ट होने का कारण मुसलमानों को बताते हैं! |
इसी पुस्तक में आगे डॉक्टर अंबेडकर लिखते हैं- “पुरोहित वर्ग धर्म के निर्वाह के लिए आवश्यक है। इस्लाम की तलवार बौद्ध धर्म के पुरोहित वर्ग पर भारी पड़ी, वह समाप्त हो गया। इस्लामी आक्रमण हिंदुओं की ब्राह्मण पुरोहित व्यवस्था पर भी हुआ, लेकिन वे बच गए। क्योंकि प्रत्येक ब्राह्मण एक संभावित पुजारी है और आवश्यकता पड़ने पर उसे सेवा में नियुक्त किया जा सकता है। उसे दीक्षा की आवश्यकता नहीं होती। बौद्ध धर्म में यह संभव नहीं था।”
डॉक्टर अंबेडकर दबे स्वरों में मान रहे हैं कि ब्राह्मण पुजारी बचे रहे, क्योंकि वे पारिवारिक परंपरा से निकल रहे थे, जबकि बौद्ध मत में ऐसा नहीं होता था। बौद्ध पुरोहित वर्ग को दोबारा स्थापित करने का प्रयास हुआ। किंतु ब्राह्मण परंपरा की तरह वे सर्वोत्तम नहीं थे।
डॉक्टर अंबेडकर बौद्ध धर्म के नष्ट होने का कारण मुसलमानों को बताते हैं, लेकिन अपनी पुस्तक ‘रेवोल्यूशन एंड काउंटर रेवोल्यूशन इन एसिएंट इंडिया’ में लिखते हैं कि- “कुछ ब्राह्मण राजा बौद्धों पर अत्याचार करते थे, लेकिन यह भी तथ्य है कि कुछ बौद्ध राजा भी हिंदुओं पर अत्याचार करते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अशोक था, जिसने अपने राज्य में यज्ञ करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। अशोक के समय ही हिंदू और जैन विद्वानों को राज्या श्रय मिलना बंद हो गया था। स्पष्ट है कि यह राजनीतिक खींचतान अधिक थी, लेकिन यह भी कुछ गिने चुने राजाओं तक सीमित था।”
हिंदुओं द्वारा बौद्ध विहार और स्तूप तोड़ने के दावे केवल मार्क्सवादी इतिहासकारों के लेखन में मिलते हैं। जो मार्क्सवादी इतिहासकार अपने पूरे लेखन में हिंदुओं और अन्य भारतीय पंथ पर इस्लामी अत्याचार की वास्तविक घटनाओं पर यह कहते हुए पर्दा डालने का प्रयास करते हैं कि “भारत की एकता के लिए ऐसा करना आवश्यक है!” वे ही बताते हैं कि “हिंदूओ ने बौद्धों के मंदिर तोड़े!” जबकि इसका एक भी साक्ष्य नहीं है!
वापस लौटते हैं पुष्यमित्र शुंग पर
ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार पुष्यमित्र शुंग मौर्य साम्राज्य में सेनापति था। उसने ईसा पूर्व 185 में अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ की हत्या कर दी थी। इस घटना के लगभग 300 वर्ष बाद लिखे गए बौद्ध ग्रंथ ‘दिव्यावदान’ के आधार पर दावा किया जाता है कि “पुष्यमित्र ब्राह्मण था, उसने बौद्धों पर अत्यचार किये।” जबकि ऐसा कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नही है, जिससे सिद्ध हो सके कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था। उसकी जो भी प्राचीन मूर्तिया मिलती है, उनमें उसके शरीर पर जनेऊ तक नही है। सबसे बड़ी बात कि उस काल खंड में पुष्यमित्र द्वारा बौद्ध स्तूप तोड़ने, और भिक्षुओं के नरसंहार का दावा किया जाता है, उसी समय सांची समेत देशभर में कई स्तूपो और विहार में निर्माण कार्य भी चल रहा था।
इतिहासकार एटिनो लेमोटो के अनुसार- “दस्तावेजों के आधार पर पुष्यमित्र शुंग को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया जाना चाहिए।”
हिंदुओं ने बौद्धों के मंदिर तोड़े होते या बौद्धों ने हिंदुओं के तो सामाजिक स्तर पर दोनों समुदायों के बीच एक कड़वाहट अवश्य देखने को मिलती। अब भले ही नव-बौद्धवाद के नाम पर ऐसी कड़वाहट पैदा करने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य इसके ठीक विपरीत है।
बुद्ध मंदिरो को हिन्दुओ ने स्थापित किया
अंग्रेज विद्वान अलेक्जेंडर कनिंघम ने लिखा है कि- “बोध गया में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में राजा अशोक ने महाबोधी मंदिर बनवाया था। बाद में ब्राह्मणों ने उसका पुनर्निर्माण कराया और मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की मूर्ति विधि-विधान से स्थापित की। असम में कामरूप के पाल राजाओं ने इस मंदिर के लिए धन दिया।”
कनिंघम ने इस मंदिर की वास्तुकला का स्केच भी बनाया है। यह पूरी तरह हिंदू वास्तुकला पर आधारित है। क्या इसके बाद भी कोई मान सकता है कि हिंदुओं ने बौद्धों के मंदिर तोड़े? भारत के बाहर जिन भी देशों में बौद्ध धर्म है, उनमें भारतीय हिंदुओं के प्रति सहज सद्भावना देखने को मिलती है। चीन, तिब्बत, थाईलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, वियतनाम, कंबोडिया से लेकर श्रीलंका तक आपको यही देखने को मिलेगा।
थाईलैंड के लोग तो अपने राजा को राम का अवतार मानते हैं। दक्षिण कोरिया के बौद्ध खुद को अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना का वंशज बताते हैं। अयोध्या में जब रामजन्म भूमि मंदिर की आधार शिला रखी गई तो उसके लिए सभी बौद्ध देशों ने अपने यहां से मिट्टी और जल भेजा था। क्या एक दूसरे के मंदिर तोड़ने वाले दो धर्मों के बीच ऐसा सद्भाव संभव है?
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भगवान राम के मंदिर निर्माण में थाईलैंड की मिट्टी |
भारत को बांटने के षड्यंत्र
हिंदू बनाम बौद्ध की सारी समस्या वास्तव में भारत को बांटने के षड्यंत्र का हिस्सा है। अलग-अलग जातियों को बताया जा रहा है कि उन पर बहुत अन्याय हुआ! नया-नया एट्रोसिटी लिटरेचर या अत्याचार साहित्य रचा जा रहा है। यह सब करने वाले वही लोग हैं, जो वियतनाम से लेकर दक्षिण कोरिया में बौद्ध भिक्षुओं पर अत्याचार कर करते हैं। जो अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान तक महात्मा बुद्ध और बौद्ध धर्म के हर चिन्ह को मिटा चुके हैं।
यदि हम इतिहास को सही संदर्भ में नहीं देखेंगे तो वामपंथी और मजहबी दुष्प्रचार में फंसे रहेंगे। जो अपने राष्ट्र, समाज और आने वाली पीढ़ियों का सर्वनाश कर बैठेंगे।