इस खास सीरीज के तीसरे भाग में आपका स्वागत है। पिछले दो भाग में मैंने आपको बताया था कि किस तरह से भारतीय इलाकों के मुसलमानों ने जिन्ना, मुस्लिम लीग और पाकिस्तान को वोट दिया था। और इसके बाद भी इनमें से ज्यादातर मुसलमान पाकिस्तान नही गए। यह सब नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति की वजह से हुआ था। मैंने आपको यह भी बताया था कि किस तरह से नेहरू ने जिन्ना की “आबादी की अदला-बदली” का सुझाव ठुकरा दिया था।
दरअसल भारत-पाकिस्तान के बीच हिंदु-मुस्लिम जनसंख्या की अदला- बदली क्यों नहीं हुई? इसे लेकर पिछले 70 वर्ष से बहस चल रही है। दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोग यह मानते हैं कि बंटवारे के दौरान सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए था! वहीं विरोधी पक्ष इससे सहमत नहीं होता है। ऐसे में इस मुद्दे पर हमें उस महान व्यक्ति के विचार जानना चाहिए जो इस मामले में पूरी तरह निष्पक्ष होकर सारी घटनाओं पर पैनी नजर रखे हुए थे और नाम था डॉ भीमराव बाबासाहेब आंबेडकर!
आखिर क्यों डॉक्टर अंबेडकर भारत के सभी मसलमानों को पाकिस्तान भेजना चाहते थे!
इस भाग में तर्कों, तथ्यों और सबूतों के साथ बताऊंगा कि आखिर क्यों डॉक्टर अंबेडकर भारत के सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना चाहते थे! और डॉक्टर अंबेडकर की सोच का सबूत “पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” नामक पुस्तक है! जो डॉक्टर अंबेडकर ने आजादी के ठीक पहले लिखी इस किताब में पाकिस्तान की मांग से जुड़े हर पहलू पर गंभीरता से प्रकाश डाला था। जिसमें जनसंख्या की अदला-बदली का मुद्दा भी शामिल था।
उस दौर में डॉक्टर अंबेडकर यह महसूस कर रहे थे कि सांप्रदायिक शांति तभी हो सकती है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पूरी तरह से हिंदू- मुस्लिम आबादी की अदला-बदली हो जाए। उन्होंने इस मसले पर एक लंबा रिसर्च किया था और उनके इस रिसर्च का आधार टर्की और यूनान था, जिसे हम ग्रीस के नाम से भी जानते हैं। टर्की और यूनान के बीच हुई जनसंख्या की अदला-बदली दरअसल 1923 में एक लंबे खूनी विवाद के बाद मुस्लिम देश टर्की और इसाई देश ग्रीस के बीच यह समझौता हुआ था कि वह एक दूसरे की अल्पसंख्यक आबादी की अदला-बदली करेंगे। यानि ग्रीस पर रहने वाले सारे मुसलमान टर्की चले जाएंगे और टर्की में रहने वाले सारे ईसाई ग्रीस भेज दिए जाएंगे। दोनों देशों की सरकारों की देख-रेख में बिना किसी खूनखराबे के यह अदला-बदली पूरी सफलता के साथ पूरी हुई थी।
डॉक्टर अंबेडकर इसी को आधार बनाकर, अपनी इस किताब के पेज नंबर-123 पर लिखते हैं कि-
“यह राज्य (टर्की और यूनान) इस बात पर सहमत हो गए कि सर्वोत्तम हल यही है कि दोनों राज अपनी-अपनी सीमाओं में, अपने-अपने अल्पसंख्यकों की अदला-बदली कर लें। ताकि एक ही जाति यानी एक ही धर्म वाला राज्य यानी देश बन सके। तुर्की, यूनान और बुलगारिया में यही हुआ। जनसंख्या के तबादले का मजाक उड़ाने वालों को इन देशों की अल्पसंख्यकों की समस्याओं का अध्ययन करना चाहिए। ताकि वह जान पाएं कि अल्पसंख्यकों से जुड़ी समस्या का एकमात्र हल जनसंख्या की अदला-बदली ही है।”
अब यूनान और तुर्की की मुस्लिम और इसाई जनसंख्या की संपूर्ण अदला बदली का उदाहरण देकर डॉक्टर अंबेडकर अपनी इस किताब के पेज नंबर-124 पर आगे लिखते हैं कि-
“भारत और पाकिस्तान के बीच भी ऐसा ही होना चाहिए। सांप्रदायिक शांति स्थापित करने का टिकाऊ तरीका अल्पसंख्यकों की अदला-बदली ही है। यह तो व्यर्थ होगा कि हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को संरक्षण देने के ऐसे उपाय अपने में लगे रहे, जो असुरक्षित पाए गए हैं। यदि यूनान, तुर्की और बुल्गारिया जैसे सीमित साधनों वाले छोटे-छोटे देश भी यह काम पूरा कर चुके हैं, तो ये मानने का कोई कारण नहीं है कि हिंदुस्तानी ऐसा नहीं कर सकते।”
मुसलमानों के कारण देश मे कभी भी साम्प्रदायिक शांति नही रहेगी
हिंदू-मुस्लिम समस्या को लेकर डॉक्टर अंबेडकर के अंदर एक दूरदृष्टि थी। आज जो सब हो रहा है, उसे डॉक्टर अंबेडकर 1940 के दशक में ही भाप गए थे। उनका मानना था कि अगर बंटवारे के बाद मुसलमान इस देश में रह गए तो यहां कभी सांप्रदायिक शांति नहीं होगी। वह अपनी किताब के पेज नंबर-125 पर आगे लिखते हैं कि-
“यह बात स्वीकार कर लेना चाहिए कि पाकिस्तान बनने के बाद भी भारत में सांप्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो पाएगा। सीमाओं को बांट देने से पाकिस्तान तो एक ही धर्म का देश बन जाएगा, लेकिन भारत एक मिली-जुली आबादी का ही देश बना रहेगा। मुसलमान पूरे भारत में बिखरे हुए हैं, इसलिए यहां किसी भी तरह की सीमाएं बनाने से हिंदुस्तान एक ही धर्म का देश नहीं बन पाएगा। भारत को एक ही धर्म का देश बनाने का एममात्र तरीका यही है कि जनसंख्या की अदला-बदली की जाए। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, भारत में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की समस्या बनी रहेगी।”
डॉक्टर अंबेडकर यह चाहते थे कि बंटवारे के वक्त सारे मुसलमान पाकिस्तान चले जाए। अब यह बात जयभीम जयमीम का नारा लगाने वाले मुसलमानों, वामपंथियों और चंद्रशेखर रावण जैसे लोगों को बता दी जाए तो यह झटके में डॉक्टर अंबेडकर के लिए उनकी सारी सोच हिल जाएगी। दरअसल वामपंथी इतिहासकारों ने बहुत चालाकी के साथ डॉ आंबेडकर के इन विचारों को कभी जनता के सामने नहीं आने दिया। यह सिर्फ आपको यह बताते रहे हैं कि डॉ आंबेडकर सिर्फ हिंदू धर्म के खिलाफ थे, जबकि यह पूरा सच नहीं है।
जब देश का बंटवारा हो गया, तब भी डॉक्टर अंबेडकर का यही मानना था कि दोनों देशों के बीच जनसंख्या की अदला-बदली होना चाहिए। यहां तक कि डॉक्टर अंबेडकर ने पाकिस्तान में फंसे हिंदू दलितों को सुरक्षित भारत लाने के लिए एक बहुत बड़ी मुहिम चलाई थी। दरअसल हुआ यूं था कि बंटवारे के बाद जिन्ना के चेलों ने दलित समुदाय को जबर्दस्ती पाकिस्तान में रोक लिया था। इसकी वजह यह थी कि पाकिस्तान को सफाई कर्मचारियों की जरूरत थी और इसीलिए वह हिंदू दलितों को किसी भी कीमत पर भारत नहीं जाने देना चाहते थे।
खुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहा था कि अगर दलित पाकिस्तान से चले गए तो हमारे शहरों की सफाई कौन करेगा? पाकिस्तान की इस नीच हरकत से डॉक्टर अंबेडकर बहुत नाराज़ थे। इसी दौरान उन्होंने मशहूर लेख लिखा, जो 27 नवंबर 1947 मैं इसको “फ्री प्रेस जर्नल” में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में डॉक्टर अंबेडकर ने लिखा था कि-
“पाकिस्तान में फंसा दलित समाज हर उपलब्ध मार्ग और साधन से भारत आ जाए। मैं यह कहना चाहता हूं कि पाकिस्तान और हैदराबाद रियासत के मुसलमानों पर भरोसा करने से दलित समाज का विनाश होगा। दलित वर्ग हिंदू समाज से नफरत करता है, इसीलिए मुसलमान हमारे मित्र हैं, यह मानने की बुरी आदत दलितों को लग गई है! जो अत्यंत गलत है। मुसलमान तो अपने लिए दलितों का साथ चाहते हैं, लेकिन बदले में वह कभी दलितों का साथ नहीं देते हैं।”
तो पढ़ा आपने! डॉक्टर अंबेडकर ने क्या कहा था! उन्होंने कहा था कि मुसलमान तो अपने लिए दलितों का साथ चाहते हैं, लेकिन बदले में वह कभी दलितों का साथ नहीं देते हैं।
इतना ही नहीं! बंटवारे के समय डॉक्टर अंबेडकर नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को भी पहचान गए थे। बंटवारे के बाद कि नेहरू को भारत में रह गए मुसलमानों की सुरक्षा की तो बहुत चिंता थी, लेकिन उन्हें पाकिस्तान में बच गए दलित समुदाय की जरा सी भी फ़िक्र नहीं थी। डॉक्टर अंबेडकर ने बाद में यह आरोप भी लगाया था कि नेहरू ने पाकिस्तान में फंसे दलितों को बाहर निकालने में मदद नहीं की। डॉ अंबेडकर ने 27 अक्टूबर 1951 को जालंधर में दिए अपने भाषण में कहा था कि-
“मैंने नेहरू से पाकिस्तान से दलितों को निकालने के लिए कुछ करने के लिए कहा था। लेकिन नेहरू ने कुछ नहीं किया। मैंने दलितों को निकालने के लिए दो व्यक्तियों को पाकिस्तान भेजा और हमारी महार बटालियन के कुछ लोगों को भी दलितों की सुरक्षा के लिए वहां भेजा गया। अगर खुद कांग्रेस के नेता यानि नेहरू को दलितों के लिए इतनी सहानुभूति थी, तो सोचिए! यह कांग्रेस हमारे लिए क्या करेगी?”
आइए अब हम इस पर विचार करते हैं कि आखिर डॉक्टर अंबेडकर ने मुसलमानों में ऐसा क्या देखा कि वो उन्हें पूरी तरह पाकिस्तान भेजने की हिमायत कर रहे थे। दरअसल उनका मानना यह था कि इस देश के मुसलमान, कभी भी किसी भी हिंदूवादी सरकार को कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। डॉ आंबेडकर अपनी किताब के पेज नंबर-303 पर लिखते हैं कि-
“हिंदुओं से नियंत्रित और शासित सरकार की सत्ता, मुसलमानों को किस सीमा तक स्वीकार होगी? इसके लिए ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है। मुसलमानों के लिए हिंदू काफिर है और उनके कोई सामाजिक स्थिति यानि हैसियत नहीं होती है। इसलिए जिस देश में काफिरों का शासन हो, वह देश मुसलमानों के लिए “दारूल हरब” है। ऐसी स्थिति में यह साबित करने के लिए सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमानों के अंदर हिंदू सरकार के शासन को स्वीकार करने की शक्ति मौजूद ही नहीं है।”
डॉ आंबेडकर आगे लिखते हैं कि-
“जब खिलाफत आंदोलन के दौरान मुसलमानों की मदद के लिए हिंदू काफी कुछ कर रहे थे, तब भी मुसलमान यह नहीं भूले कि उनकी तुलना में हिंदू निम्न और घटिया कौम है।”
तो सोचिए! अंबेडकर ने यह साफ लिखा था कि मुसलमान हिंदुओं की सरकार को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। क्योंकि उनकी नजर में हिंदू काफिर होते हैं। यानी आज जो हो रहा है, डॉक्टर अंबेडकर उसे 70 साल पहले ही भांप गए थे। आपने देखा होगा कि आज भी मोदी सरकार के किसी भी फैसले का विरोध करने में सबसे आगे कौन रहता है, मुझे बताने की जरूरत नहीं है।
खैर तो इस तरह डॉक्टर अंबेडकर ने बंटवारे के समय आबादी की अदला-बदली का समर्थन किया था। लेकिन नेहरू और कांग्रेस ने उनके इस विचार पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
फिलहाल इस खास सीरीज के तीसरे भाग में इतना ही। अगले यानि चौथे भाग में मैं आपको बताऊंगा कि-
- सरदार पटेल यह चाहते थे कि पाकिस्तान का समर्थन करने वालों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए।