देश के बंटवारे के दौरान भारत के मुसलमान क्यों नहीं गए पाकिस्तान? इस विषय पर इस खास सीरीज के दूसरे भाग में आपका स्वागत है। जैसा कि पिछले भाग में मैंने आपको बताया था कि पंजाब को छोड़कर देश के बाकी इलाकों से ना के बराबर मुसलमान पाकिस्तान गए थे, और इनमें देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश भी शामिल था। जैसा कि मैंने आपको बताया था कि दिल्ली और यूपी से सिर्फ 4 लाख 65 हजार मुसलमान ही पाकिस्तान गए थे। यानी जिस यूपी के मुसलमानों ने 1946 के चुनावों में दिल खोलकर जिन्ना मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के पक्ष में मतदान किया था, वहां से सिर्फ मात्र दो-ढाई लाख मुसलमान ही पाकिस्तान गए। नतीजा आज पूरे यूपी ने करीब 5 करोड़ मुस्लिम आबादी है, जो कुल आबादी का 20% है।
{tocify} $title={विषय सूची}
आखिर क्या वजह थी कि यूपी के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए?
इस भाग में मैं आपको तथ्यों और तर्कों और सबूतों के साथ बताऊंगा कि कैसे नेहरू ने पूरे उत्तर प्रदेश में “मुस्लिम रोको अभियान” चलाया था! जी हां! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके, यूपी के मुसलमानों को भारत में शरण दी! जैसा कि मैंने आपको पिछले भाग में बताया था कि किस तरह से नेहरू ने जिन्ना के जनसंख्या की अदला-बदली के सुझाव को ठुकरा दिया था। बल्कि पूरी शिद्दत से यूपी में मुसलमानों को रोकने की कोशिश भी जवाहरलाल नेहरू ने की थी।
नेहरू ने मुस्लिम रोको अभियान चलाया था
नेहरू को उत्तर प्रदेश में जहां से भी यह खबर मिलती थी कि मुसलमानों का पलायन पाकिस्तान की तरफ हो रहा है, तो वो उस इलाके के प्रशासन और यूपी की सरकार पर शख्त हो जाते थे। मिसाल के तौर पर 8 सितंबर 1947 को पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में दंगा भड़क गया। आजादी के पहले इन सारे इलाकों के ज्यादातर मुसलमानों ने जिन्ना और मुस्लिम लीग को तगड़ा समर्थन दिया था। जब यहां से कुछ मुसलमानों के पाकिस्तान जाने की खबर आई, तो नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को 12 सितंबर 1947 को एक पत्र लिखा। यह पत्र प्रकाशित हुआ है “सिलेक्टेड वर्क्स आफ जवाहरलाल नेहरू” की सीरीज-2 के वॉल्यूम- 4 के पेज नंबर 68! पर इस पत्र में नेहरू ने जीबी पंत को लिखा था कि-
“मुझे आशा है कि आप यूपी में शांति बनाए रखने में सफल होंगे। मैं यह भी आशा करता हूं कि यूपी से मुसलमानों का पलायन नहीं होगा। जितना अधिक मैं इस पलायन के बारे में सोचता हूं, यह मुझे भविष्य के लिए इतना ही ख़तरनाक लगता है। गांधी जी का भी यही मानना है उन्हें पंजाब से होने वाला पलायन भी पसंद नहीं है।”
नेहरू किसी भी कीमत पर यूपी के मुसलमानों को भारत में ही रोकना चाहते थे। यूपी कांग्रेस में नेहरू की पकड़ भी ज़बरदस्त थी। जिसका फायदा नेहरू को मिल रहा था। लेकिन यहाँ आपके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि 1946 के चुनावों में नेहरू के इस पकड़ का कोई फायदा नहीं हुआ था। यूपी के मुसलमानों ने नेहरू को जबरदस्त तरीके से धोखा दिया था। यूपी की 66 मुस्लिम रिजर्व सीटों में से 54 पर जिन्ना की मुस्लिम लीग जबरदस्त तरीके से चुनाव जीती थी।
यूपी मुस्लिम लीग का गढ़ था
यूपी किस तरह से मुस्लिम लीग का गढ़ था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान केंद्रीय एसेंबली के चुनावों में लाहौर या कराची से नहीं, बल्कि मेरठ की ग्रामीण सीट से चुनाव जीते थे। वहीं जिन्ना और लियाकत के बाद मुस्लिम लीग के तीसरे नंबर के नेता नवाब मोहम्मद इस्माइल खान मेरठ शहर से चुनाव जीते थे। वहीं बाद में पाकिस्तान मुस्लिम लीग अध्यक्ष बने खलीकुज्जमा लखनऊ से चुनाव में विजयी हुए थे। वहीं मुस्लिम लीग की सबसे ताकतवर महिला नेता बेगम इज्जाज रसूल भी यूपी से ही चुनाव जीती थी।
लेकिन आपको यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि नवाब इस्माइल खान और बेगम एजाज रसूल भी बंटवारे के बाद कभी पाकिस्तान नहीं गए और मरते दम तक भारत में ही रहे। नवाब स्माइल को नेहरू ने आजादी के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनाया। तो नेहरू की मेहरबानी से ही बेगम एजाज रसूल कांग्रेस में शामिल हो गई और बाद में जाकर कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा की सदस्य बनी थीं।
हिन्दू भी देशभक्त नही होते-नेहरू
आजादी के बाद नेहरू ने पूरे यूपी में मुसलमानों को भारत में रोकने के लिए मुहिम छेड़ रखी थी। इसी सिलसिले में नेहरू ने 19 अक्टूबर 1947 को लखनऊ में एक रैली की, जिसमें उन्होंने गोविंद बल्लभ पंत की सरकार की इस बात की तारीफ की कि वह यूपी में मुसलमानों को रोकने में कामयाब रही हैं। नेहरू का यह भाषण “सिलेक्टेड वर्क्स आफ जवाहरलाल नेहरू” की सीरीज-2 के वॉल्यूम-4 के पेज नंबर-172 पर प्रकाशित हुआ है! इस भाषा में नेहरू ने कहा था कि-
“मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि यूपी की सरकार ने यह साफ कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति को इसी लिए यूपी से बाहर नहीं किया जाएगा, क्योंकि वह एक खास समुदाय से है। अगर कोई व्यक्ति देशद्रोही है तो उसके साथ कानून के हिसाब से व्यवहार किया जाएगा। देखा जाए तो सभी हिंदू भी देशभक्त नहीं होते हैं!”
तो पढ़ा आपने! किस तरह से नेहरू ने यूपी के उन सारे मुसलमानों को क्लीन चिट दे दी, जिन्होंने आजादी के सिर्फ एक साल पहले ही जिन्ना मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के समर्थन में वोट डाला था। यहां तक कि नेहरू ने यह भी कह दिया कि सारे हिंदू भी देशभक्त नहीं होते, इसलिए मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल नहीं खाना चाहिए।
यूपी में नेहरू ने जो “मुस्लिम रोको मुहिम” चला रखी थी, उसमें कांग्रेस के नेता रफी अहमद किदवई और मौलाना आजाद की भी बड़ी भूमिका थी। यहां तक कि महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच के लिए बने कपूर कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे की चर्चा की है। कपूर कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के पार्ट-1 के पेज नंबर-150 पर एक गवाह के हवाले से दर्ज किया है कि-
“तथ्य यह है कि मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए नेहरू ने मौलाना आजाद रफी अहमद किदवई और अन्य मुस्लिम सहयोगियों के साथ मिलकर बहुत मेहनत की। नेहरू ने मुसलमानों की संपत्तियों को सुरक्षित रखने के लिए पैसा और समय दोनों खर्च किया। इससे मुसलमानों के प्रति शत्रुता की भावना पैदा हो गई। शरणार्थियों को लगता था कि अगर उन्हें पाकिस्तान से निकाल दिया गया है तो मुसलमानों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए।”
नेहरू ने मुस्लिम तुष्टीकरण किया- वी. शंकर
आईपीएस अधिकारी वी. शंकर ने भी नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का जबरदस्त विश्लेषण किया है। वी. शंकर सरदार पटेल के व्यक्तिगत सचिव थे और बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू के साथ भी काम किया। वी. शंकर ने बंटवारे के बाद देश की सांप्रदायिक समस्या से निपटने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। शंकर ने अपनी मशहूर किताब “माई रेमेनेंसस विथ सरदार पटेल” के पेज नंबर-92 पर नेहरू की मुस्लिम परस्त मानसिकता के बारे में लिखा है कि-
“कथित पीड़ित मुसलमानों की चिंता में नेहरू अनंत पीड़ा उठाते थे। लेकिन जब पीड़ित किसी दूसरे समुदाय यानी गैर-मुस्लिम होता था, तो नेहरू से इस तरह की पीड़ा उठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। नेहरू यह मानते थे कि प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता के रूप में अल्पसंख्यकों को (विशेष रूप से मुसलमानों के लिए) उनकी एक विशेष जिम्मेदारी हैं। उनकी नजर में मुसलमानों को भारत में बनाए रखना और उनकी जान-माल की सुरक्षा इस देश की धर्मनिरपेक्षता की सर्वोच्च परीक्षा थी। हालांकि एक पूर्व राज्यपाल ने इस बारे में कहा था कि अगर नेहरू मुसलमानों की सरक्षा हालांकि एक पूर्व राज्यपाल ने इस बारे में कहा था कि अगर नेहरू मुसलमानों की सुरक्षा की मांगों को मान लेते हैं, तो एक दिन ऐसी स्थिति आ जाएगी, जब बहुसंख्यक समुदाय की रक्षा करना पड़ेगी।”
रविशंकर ने जो कहा था वह सच साबित हो रहा है। नेहरू की वजह से सारे देश में और खासकर यूपी में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति इतनी आगे बढ़ चुकी है कि समाजवादी पार्टी आम चुनावों में जिन्ना का नाम ले लेती है, तो कांग्रेस मौलवियों को साधने की कोशिश में लगी हुई है।
फिलहाल मुसलमान क्यों नहीं गए पाकिस्तान के पार्ट-2 में इतना ही। इस खास सीरीज के तीसरे विभाग में मैं आपको बताऊंगा कि-
डॉक्टर अंबेडकर भारत के सभी मुसलमानों को पाकिस्तान क्यों भेजना चाहते थे?