भारत के मुसलमान क्यो नही गए पाकिस्तान | कितने लाख मुसलमान पाकिस्तान गए थे? भाग- 1

कितने लाख मुसलमान पाकिस्तान गए थे? | भारत के मुसलमान क्यो नही गए पाकिस्तान  भाग- 1

भारत का बटवारा एक ऐसा विषय है, जिस पर आज भी चर्चा होती है। और साथ ही यह सवाल उठाया जाता है कि-

"जब भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था तो भारत में रहने वाले मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं गए?” लोग यह सवाल उठाते हैं कि “जब भारतीय इलाकों के रहने वाले ज्यादातर मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया था, तो पाकिस्तान बन जाने के बाद, उन्हें पाकिस्तान क्यों नहीं भेजा गया?” 

   दरअसल 1945-46 में अंग्रेजों ने केंद्रीय असेंबली और प्रांतीय असेंबलियों के लिए चुनाव करवाए थे। जिसमें भारतीय इलाकों की मुस्लिम रिजर्व सीटों पर भारतीय मुसलमानों ने एक तरफा जिन्ना की मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान किया था। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि अंग्रेज सरकार के कानून के मुताबिक “इन मुस्लिम सीटों पर सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार ही खड़े हो सकते थे और इन सीटों पर वोट डालने का अधिकार भी सिर्फ मुसलमानों को था।” जिसके बाद यूपी, बिहार, बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश यहां तक कि दक्षिण भारत के मुसलमानों ने भी जिन्ना और मुस्लिम लीग के पक्ष में बंपर वोटिंग की थी। लेकिन आजादी के बाद यह मुसलमान पाकिस्तान नही गए। 

     इस स्पेशल सीरीज में हम तथ्यों, तर्कों और सबूतों के साथ आज इस बात की पड़ताल करेंगे कि- 

  • कैसे नेहरू और गांधी ने आजादी के बाद देश में मुस्लिम रोको अभियान चलाया! 
  • आखिर क्यों सरदार पटेल और डॉक्टर बी.आर. अंबेडकर जैसे महान नेता मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने का समर्थन कर रहे थे

भारत से कितने मुसलमान पाकिस्तान गए थे?

   पिछले 75 साल से सुलग रहे इस धमाकेदार मुद्दे की हकीकत जानने से पहले, आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर बंटवारे के बाद भारत से कितने मुसलमान पाकिस्तान गए थे? और आपको यह समझाने के लिए मैं कुछ आंकड़ों का सहारा लूंगा। इन आंकड़ों को आप बहुत ध्यान से पढ़िए और समझ लीजिए। क्योंकि इनको समझे बिना आप असली मुद्दे को नहीं समझ पाएंगे।  

1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो भारतीय इलाके! यानी भारत के हिस्से में वाली जमीन पर करीब 4.25 करोड़ मुस्लिम रहते थे। लेकिन इनमें से सिर्फ 72 लाख 26 हजार मुसलमान ही भारत से पाकिस्तान गए। बाकी के करीब साढे तीन करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गए। 

    1945-46 के चुनावों में करीब 90 से 95 प्रतिशत भारतीय मुसलमानों ने जिन्ना, मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया था। लेकिन जब पाकिस्तान जाने की बारी आई तो सिर्फ 72 लाख 26 हजार मुसलमान ही पाकिस्तान गए और बाकी के साढ़े तीन करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गए। अगर आपको लगता है कि 72 लाख मुसलमान भारत के सभी इलाकों से गए होंगे तो आप गलत हैं! भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों में से करीब 75 प्रतिशत मुसलमान सिर्फ पंजाब के रहने वाले थे। जी हाँ! यह भारत के पंजाब इलाके से सबसे ज्यादा मुसलमान पाकिस्तान गए! वहीं यूपी, बिहार, बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट्र से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों की संख्या ना के बराबर थी। 

   सोचिए! जिन राज्यों के मुसलमानों ने तन-मन-धन से पाकिस्तान बनाने में योगदान दिया था, उन्हीं इलाकों के मुसलमान पाकिस्तान नही गए। आइए आकड़ो के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि भारत के किस इलाके से कितने मुसलमान पाकिस्तान गए।  

पाकिस्तान का समर्थन करने वाले मुसलमान पाकिस्तान नही गए

   पंजाब से सबसे ज्यादा 55 लाख 50 हजार मुसलमान पाकिस्तान गए। आप कह सकते हैं कि भारतीय इलाके के पंजाब में रहने वाले करीब-करीब सभी मुसलमान पाकिस्तान चले गए थे। वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार से सिर्फ 7 लाख मुसलमान ही पाकिस्तान गए, जबकि इन राज्यों में हमेशा मुस्लिम लीग को समर्थन मिलता था। वहीं उत्तर प्रदेश और दिल्ली से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों की संख्या चार लाख 65 हजार थी। जिन मुस्लिमो ने जिन्ना और मुस्लिम लीग को असली खाद-पानी दिया वहां के सिर्फ चार लाख 65 हजार मुसलमान ही पाकिस्तान गए। वहीं राजस्थान के अलवर और भरतपुर इलाके के करीब दो लाख 35 हजार मुसलमान पाकिस्तान गए। जबकि महाराष्ट्र और गुजरात से करीब एक लाख 60 हजार मुसलमानों ने पाकिस्तान जाना पसंद किया। उधर भोपाल और हैदराबाद विरासत से करीब 95,000 मुसलमान पाकिस्तान गए। जबकि तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक से सिर्फ 18,000 मुसलमान पाकिस्तान में जाकर बसे। 

    तो अब तक आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि उस दौर में पाकिस्तान का समर्थन करने वाले मुसलमान, कभी पाकिस्तान गए ही नहीं। इसी वजह से उस समय भी ज्यादातर लोगों की मांग यह थी कि पाकिस्तान का समर्थन करने वाले मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जाना चाहिए। इतना ही नहीं! जब लोगों ने यह देखा कि पाकिस्तान से पूरी तरह से हिंदुओं को जबरन भारत में धकेला जा रहा है तो लोगों ने जनसंख्या की अदला-बदली की मांग उठाई। जनसंख्या की अदला-बदली यानी भारत के सारे मुसलमान पाकिस्तान चले जाए और पाकिस्तान के सारे हिंदू भारत आ जाए। 

जिन्ना ने किया था जनसंख्या अदला बदली का प्रस्ताव

    उस दौर के कई लोगों ने यहां तक कि कई जानकारों का भी यह मानना था कि इससे विभाजन के दौरान हो रही हिंसा पर रोक लगाई जा  सकती है। यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना ने जब पाकिस्तान का ख्वाब बुना था, तभी से उन्हों ने जनसंख्या की अदला-बदली का प्लान बना लिया था। वह पाकिस्तान में एक भी हिंदू और सिखों को नहीं रखना चाहते थे। 1940 से 1947 के बीच जिन्ना ने कई बार इस जनसंख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव दिया। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया। आखिरकार जिन्ना ने 1946 में अपना आखिरी तुरुप का पत्ता “डायरेक्ट एक्शन डे” चला! जिसके बाद पहले कलकत्ता और बाद में नोआखली में दंगे शुरू हो गए। 

   मुस्लिम बहुल रावलपिंडी, हजारा और पेशावर में भी इन दोनों को दोहराया गया। जिन्ना के एक्शन से बंटवारे से पहले ही हिंदू भाग-भाग कर सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे। यानि उन इलाकों में जाने लगे, जहां पर हिंदुओं की तादाद ज्यादा थी। जब हालात पूरी तरह से बिगड़ गए तो जिन्ना ने 25 सितंबर 1946 को एक बयान दिया था, जो मुस्लिम लीग के अखबार डॉन में छपा था। इस बयान में जनसंख्या की अदला-बदली का समर्थन करते हुए जिन्ना ने कहा था कि- 

   “भारत के कई इलाकों में भीषण दंगों को देखते हुए मेरा यह मानना है कि क्रूरता को रोकने के लिए केंद्र और राज्य की सरकारों को तुरंत जनसंख्या की अदला-बदली पर विचार करना चाहिए।” 

कितने लाख मुसलमान पाकिस्तान गए थे? | भारत के मुसलमान क्यो नही गए पाकिस्तान  भाग- 1

    जिन्ना के इस बयान का यह मतलब था कि हिंदू बहुल राज्यों और मुस्लिम बहुल राज्यों के बीच जनसंख्या की अदला-बदली शुरू हो जाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस के नेताओं के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। नतीजा 1947 में बंटवारे का फैसला होते ही दंगे बेकाबू हो गया। अक्टूबर 1947 तक आते-आते उत्तर भारत के शहरों में हिंदू और शिक्षणार्थियों का सैलाब आ गया। दिल्ली समेत कई शहरों में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। ज्यादातर लोग जनसंख्या की अदला-बदली की मांग कर रहे थे। लेकिन फिर भी गांधी और नेहरू मुसलमानों को गले से लगाए रखना चाहते थे। 

गांधी और नेहरू मुसलमानों को नही जाने देना चाहते थे   

   उधर 11 अक्टूबर 1947 को जिन्ना ने एक बार फिर जनसंख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव देते हुए कराची में कहा कि “दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सुलझाने का एक ही हल है और वो बड़े पैमाने पर जनसंख्या की अदला-बदली! यह काम अब सरकारों को अपने हाथों में लेना चाहिए! ना कि इसे उन लोगों पर छोड़ दिया जाए जो खून के प्यासे हैं।” 

    जिन्ना के इस बयान के अगले दिन यानी 12 अक्टूबर 1947 को दिल्ली में प्रधानमंत्री नेहरू ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जब उनसे जिन्ना के प्रस्ताव पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने जो जवाब दिया, उससे आज यह साबित होता है कि नेहरू में दूरदृष्टि का भयंकर किस्म का आभाव था। उस दिन नेहरू ने जो बचकाना बयान दिया था, वह “सिलेक्टेड वर्क्स आफ जवाहरलाल नेहरू” की सीरीज-2 के वॉल्यूम-4 के पेज नंबर 148 पर प्रकाशित हुआ है। नेहरू ने उस दिन कहा था कि- 

   “यह सच है कि यदि जनसंख्या की अदला-बदली का कार्य करना है तो इसे सरकारी स्तर पर बिना किसी जान-माल के नुकसान के करना चाहिए। लेकिन इसे पूरे भारत में करना लगभग असंभव है, और इसकी जरूरत भी नहीं है। अगर आप भारत के जनसंख्या के आंकड़े और वितरण देखें तो हमें इसे सुलझाने में आधी जिंदगी लग जाएगी। फिर भी अगर ऐसा किया गया तो इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा, उत्पादनों पर असर होगा, भूखमरी फैलेगी और जन आंदोलन होंगे। हमारा राष्ट्र डूब जाएगा, संसाधन नहीं होंगे और हमारे पास भूख से मरती हुई आबादी होगी।” 

कितने लाख मुसलमान पाकिस्तान गए थे? | भारत के मुसलमान क्यो नही गए पाकिस्तान  भाग- 1

   सोचकर देखिए! क्या नेहरू के बयान में जरा सी भी समझदारी या सच्चाई नजर आती है? अगर इस बयान के बदले वह यह कहते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां से किसी को धर्म के आधार पर बेदखल नहीं किया जा सकता है! तो कम से कम नेहरू के तर्कों में कुछ दम नजर आता। लेकिन नेहरू ने कहा कि जनसंख्या की अदला-बदली से भारत पर आर्थिक बोझ पड़ेगा, भूखमरी होगी और पूरा देश डूब जाएगा। नेहरू ने जो सोचा था, जो कहा था! क्या भविष्य में ऐसा हुआ? जवाब है बिल्कुल भी नहीं! 

    आज की तारीख में पाकिस्तान से करीब-करीब सारे हिंदू भारत आ चुके हैं। क्या इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई विपरीत असर पड़ा? नहीं बिल्कुल नहीं! बल्कि पाकिस्तान से आने वाले हिंदू और सिख शिक्षणार्थियों ने भारत की आर्थिक उन्नति में एक महान योगदान किया है! इन शरणार्थियों ने देश मे जाने माने बिजनेस हाउस की स्थापना की। और तो और आर्थिक उदारवाद के जनक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद पाकिस्तान से आए हुए एक शरणार्थी हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को कोई कैसे नजरअंदाज कर सकता है। 

नेहरू के नासमझी ने देश को भयंकर बीमारी दे दिया 

   अब जरा यह सोचिए कि अगर जनसंख्या की अदला-बदली के फार्मूले के तहत! उस समय साढ़े तीन करोड़ मुसलमान पाकिस्तान चले जाते तो-  

  • क्या इससे भविष्य में देश की जनसंख्या का बोझ कम नहीं होता! 
  • क्या आज हमारी आबादी 20 करोड़ कम नहीं होती! 
  • क्या इससे हमारी अर्थव्यवस्था में और सुधार नहीं होता! 

   अगर बंटवारे के समय की जनसंख्या को तराजू पर तौलकर भी देखें! तब भी हम जनसंख्या की अदला-बदली करके फायदे में ही रहते। पाकिस्तान से अगर सारे हिंदू और सिख भारत आ जाते, तब भी भारत में रहने वाले मुसलमानों से उनकी संख्या कम ही थी। 

    ये सच है कि ऐसे में हिंदू सिख शरणार्थियों के पुनर्वास में आसानी होती और सरकारी खजाने पर बोझ भी कम पड़ता। लेकिन हुआ क्या! सरकार को शरणार्थियों के साथ-साथ भारत में रह गए गरीब तबके के साढ़े तीन करोड़ मुसलमानों की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ी। आज भी सरकारी खजाने का, सरकारी योजनाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा करीब 20 करोड़ की गरीब मुस्लिम आबादी पर खर्च होता है। इतना ही नहीं! अगर जनसंख्या की पूरी तरह से अदला-बदली हो जाती, तो आज भारत में सांप्रदायिक सौहार्द की स्थिति भी कई गुना बेहतर होती। 

    नेहरू के समर्थक उन्हें दूरदृष्टा बताते नहीं थकते। लेकिन यहाँ उनकी दूरदृष्टि पर सवालिया निशान लग जाता है। आखिर नेहरू ने यह कैसे मान लिया कि जिस पाकिस्तान का निर्माण कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा की बुनियाद पर हुआ है, वह आखिर कब तक अपने देश में हिंदू काफिरों को बर्दाश्त करते? और हुआ भी वही! पाकिस्तान में आज मुट्ठी भर हिंदू रह गए हैं और उन पर भी अत्याचार जारी है। और जब इन लाचार हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए कानून बनता है, तो जबरन भारत में रहने वाले मुसलमान ही सड़कों पर अराजकता यहां पर है और नेहरू-गांधी खानदान के वंशज उस अराजकता को हवा देते हैं। 

   फिलहाल इस भाग में इतना ही! इस सीरीज के अगले भाग में मैं आपको बताऊंगा कि- 





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