"मनुवाद" शब्द वर्तमान समय मे भीमवादियों का एक अचूक-अस्त्र बन गया है। अक्सर भीमवादी किसी के भी ऊपर मनुवादी होने का आरोप लगा देते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि मनुवाद है क्या? मनुवादी का अर्थ होता है "मनु के बनाये विधान (मनुस्मृति) पर अमल करने वाला।" भीमवादियों के घोषित मसीहा डा० अम्बेडकर भी पूरे जीवन मनुस्मृति की आलोचना करते रहे, और गैर-सवर्णों को उसका डर दिखाकर अपने साथ भीड़ जुटाने का प्रयत्न भी करते थे। पर अम्बेडकर के पुस्तक पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि वे भी मनुस्मृति पर कोई ठीक-ठाक आरोप लगाने मे सफल नही रहे।
{tocify} $title={विषय सूचि}
अम्बेडकर पर मनु महाराज का भूत
अम्बेडकर मनु के इतने विरोधी थे कि वे कहते थे "मेरे ऊपर मनु का भूत सवार है, और मै भलीभाँति जानता हूँ कि मुझमे इतनी क्षमता नही है कि मै अपने जीते-जी उसे उतार सकूँ" (भारत मे जातियाँ, पृष्ठ-24, चित्र-1) अम्बेडकर के इस कथन से स्पष्ट है कि अम्बेडकर मनु से कितने चिढ़े हुये थे? पर वास्तव मे अम्बेडकर ने अपना पूरा जीवन भ्रम मे ही जिया! अम्बेडकर अच्छे से जानते थे कि जिस तरह शैतान के बिना भगवान का कोई अस्तित्व नही है, ठीक उसी तरह मनुवाद-मनुवाद चिल्लाये बिना मेरे आन्दोलन मे भी धार नही आ सकती।
चारों वर्णों के लिए अलग दंड विधान
अम्बेडकर मनु पर आरोप लगाते थे कि मनु ने चारो वर्णों के लिये अलग-अलग दण्डविधान बनाया! हालाकि अम्बेडकर स्वयं यह कहते थे कि "वर्णव्यवस्था मनु ने नही बनायी, यह तो वेदों से आयी, पर मनु ने उसका पोषण किया"!
अम्बेडकर की बात सही थी, वर्णव्यवस्था वेदों से ही आयी, पर मनु ने वर्णानुसार जो दण्डविधान बनाया, उसमे तो ब्राह्मण को ही अधिक दण्ड देने का प्रावधान किया था! क्योंकि मनु के अनुसार ब्राह्मण अधिक बुद्धिमान होता है, और यदि बुद्धिमान अपराध करे तो उसे दण्ड भी अधिक मिलना चाहिये।
मनु ने मनुस्मृति-8/337-338 (चित्र-2) मे लिखा है- "चोरी करने से पाप लगता है, और इसे जानने के बाद भी यदि शूद्र चोरी करे तो उससे माल का आठ गुना, वैश्य करे तो सोलह गुना, क्षत्रिय करे तो बत्तीस गुना, और यदि ब्राह्मण करे तो उसे चौंसठ गुना या एक सौ अट्ठाइस गुना दण्ड देना चाहिये।" अब बताइये कि मनु कहाँ ब्राह्मणों के पक्षधर थे?
क्या जातिव्यवस्था मनु महाराज की देन है?
भीमवादी अक्सर जाति-व्यवस्था का आरोप भी मनु के ऊपर ही लगा देते हैं। आज भीमवादियों को उसका भी जवाब उनके अपने पितामह अम्बेडकर की किताब से ही दे देता हूँ।
अम्बेडकर ने "भारत मे जातियाँ" नामक एक बड़ी चर्चित किताब लिखी थी, उसमे उन्होने यह बताया है कि भारत मे जातिवाद कैसे बना? इसी किताब के पृष्ठ-24 (चित्र-3) पर अम्बेडकर ने लिखा है कि "मै आपको एक बात बताना चाहता हूँ कि जातिविधान मनु ने नही बनाया है, और वह इसे बना भी नही सकते थे!"
भीमवादी जाति-व्यवस्था बनाने का आरोप ब्राह्मणों पर भी लगाते हैं, पर इनके उपास्य अम्बेडकर ने तो इससे भी इनकार कर दिया है! इसी किताब के पृष्ठ-25 (चित्र-4) पर अम्बेडकर लिखते हैं कि "ब्राह्मण अनेक गलतियाँ करने के दोषी रहे होंगे, और उन्होने ऐसा किया भी होगा, लेकिन जातिव्यवस्था बनाकर उसे गैर-ब्राह्मणों पर लाद देने की उनमे क्षमता नही थी"! मतलब साफ है कि अम्बेडकर ने जातिव्यवस्था का दोष न तो मनु को दिया और न ही ब्राह्मणों को। फिर भीमवादी कहाँ से ज्ञान लाकर ब्राह्मणों और मनु को दोषी बताते हैं, और अपने पितामह अम्बेडकर को झूठा साबित करते हैं।
वर्ण-व्यवस्था कर्म के अनुसार
यहाँ एक बात मै और बताता चलूँ कि भीमवादी कहते हैं कि वर्ण-व्यवस्था कर्मानुसार नही थी, और वर्णों मे परिवर्तन नही होता था। लेकिन अम्बेडकर ने अपनी किताब मे ठीक इसके विपरीत लिखा है! इसी किताब के पृष्ठ-26 (चित्र-5) पर अम्बेडकर लिखते हैं कि "प्रारम्भ मे वर्ण-व्यवस्था, वर्ग-व्यवस्था जैसी ही थी। प्रारम्भ मे सुविदित पुरोहित, सैनिक, व्यवसायी और सेवक चार वर्ग थे, और इसमे योग्यता प्राप्त कर लेने के बाद व्यक्ति अपना वर्ग बदल सकते थे।"
वैसे मनुस्मृति-10/65 मे भी वर्ण-परिवर्तन की बात लिखी है, जिस पर अम्बेडकर ने अपनी किताब के माध्यम से मुहर भी लगा दी है। अब सवाल यह है कि जब मनुस्मृति और अम्बेडकर दोनो ही वर्ण-परिवर्तन की बात मानते हैं तो भीमवादी किस आधार इससे इनकार करते हैं?
भीमवादी एक कुतर्क और करते हैं, और कहते हैं कि ब्राह्मणों ने रंगभेद की नीति अपनायी थी! उन्होने काले मूलनिवासियों को अछूत और नीच जाति बनाया, तथा गोरे आर्यों को उच्च-जाति माना। भीमवादी और बामसेफियों की इस धारणा का भी अम्बेडकर ने विरोध किया है, और उन्होने इसे अंग्रेजों की चाल बतायी है।
अम्बेडकर ने इसी किताब के पृष्ठ-31 (चित्र-6) पर लिखा है कि- "जाति-व्यवस्था पर अनुसंधान करने वालों ने मेरे मतानुसार अनेक गलतियाँ की हैं, जिसके फलस्वरूप उन्होने गलत मार्ग अपना लिया। जाति-व्यवस्था के यूरोपीय अध्ययन-कर्ताओं ने इस सम्बन्ध मे वर्ण (रंग) की भूमिका पर अनावश्यक बल दिया! क्योंकि वे (यूरोपीय) रंगभेद के शिकार हैं, अतः उन्होने सरलतापूर्वक यह सोच लिया कि भारत की जाति-व्यवस्था मे भी वर्ण (रंग) की भूमिका रही है। लेकिन इससे अधिक सत्य से परे और कोई बात नही हो सकती है"
अब आप लोग जरा विचार करो कि भीमवादी आज जितने भी मनगढ़ंत आरोप लगाते हैं, उन्हे अम्बेडकर लगभग 70 साल पहले ही खारिज कर चुके हैं। भीमवादी ब्राह्मणों को और मनु को दोषी बनाने के प्रयास मे अपने ही महापुरुष अम्बेडकर को झूठा साबित करने पर तुले हैं।
भीमवादियों को लज्जा नही आती कि जिस अम्बेडकर के नाम की वे जय-जयकार करते हैं, उनकी ही बात नही मानते और थोड़े से फायदे के लिये स्वतः अम्बेडकर का अपमान करते हैं।
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