वेटिकन ओपस दाई (Opus Dei) और परिवार पार्ट-3

राजीव गांधी 400 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या सीधे तौर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार का नतीजा थी।

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तीसरा घटनाक्रम

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई। सीधा नतीजा यह निकला कि सहानुभूति लहर पर सवार राजीव गांधी 400 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या सीधे तौर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार का नतीजा थी।

वेटिकन और ओपस दाई का खालिस्तान आतंकवादियों को समर्थन

खुला रहस्य यह है कि सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, कनाडा सहित कई और पश्चिमी देश खुलेआम खालिस्तानी आतंकवादियों का समर्थन कर रहे थे। गुपचुप तरीके से ब्रिटेन व अमेरिका भी इनका समर्थन कर रहे थे। लेकिन एक अंजान तथ्य यह है कि वेटिकन और ओपस दाई भी जमकर खालिस्तानियों के समर्थन में थे।
1980-81 में वेटिकन उन कथित बुद्धिजीवियों के लगातार संपर्क में था जो खालिस्तानी आंदोलन की हिमायत करते थे। वेटिकन का कहना था कि “धार्मिक संगठनों में दिलचस्पी रखने का उसका अधिकार है”। पुख्ता खुफिया जानकारियां थीं कि ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद वेटिकन हरसंभव तरीके से खालिस्तान समर्थकों की मदद कर रहा था।  
राजीव गांधी 400 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या सीधे तौर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार का नतीजा थी।
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उधर, केजीबी लगातार आगाह कर रही थी कि “इंदिरा गांधी कई पश्चिमी खुफिया एजेंसियों के निशाने पर हैं और उनकी हत्या की जा सकती है। इसे रोकने के लिए इंदिरा गांधी के सुरक्षा तंत्र मे आमूल बदलाव की जरूरत है” भारतीय खुफिया एजेंसियों ने एक बार उन्हें इस खतरे के बारे में औपचारिक रूप से ब्रीफ किया और दो बार दो अन्य मौकों पर उन्हें स्थिति की गंभीरता समझाई गई।
खास बात यह कि उन दिनों इंदिरा गांधी की किचेन कैबिनेट के एक सदस्य और उनके सबसे खासम-खास रहे व्यक्ति ने खुफिया एजेंसियों के हर सुझाव का तीखा विरोध किया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन पर शक के छींटे तो पड़े लेकिन कुछ ही दिन बाद वे राजीव गांधी के किचेन कैबिनेट में शामिल हो गए और उनके सबसे खासम-खास हो गए (उनका नाम स्वयं ही समझ गए होंगे)। हालांकि बाद में खुफिया एजेंसियों को पता चला कि इस बार किचेन कैबिनेट में उनकी भर्ती सोनिया गांधी ने कराई थी।

चौथा घटनाक्रम

21 मई 1991 को तमिलनाडु में एक चुनावी जनसभा में लिट्टे की एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी को बम से उड़ा दिया। खुफिया एजेंसियों के यह बड़ा झटका था। उनका “मारने की धारण” (Threat perception) अलग था। कि यदि कोई पश्चिमी खुफिया एजेंसी राजीव गांधी को हटाना चाहती है तो वह पाकिस्तान के जरिए इस्लामी आतंकियों से हमला कराएगी, या चीन कुछ भाड़े के अति प्रशिक्षित हमलावरों के जरिए वार कर सकता है या राजीव गांधी से नाराज केजीबी का कोई एजेंट अपने स्तर पर हमला करा सकता है।  

कहीं से भी लिट्टे तस्वीर में नहीं था

लेकिन लिट्टे की पश्चिमी खुफिया एजेंसियों से सांठगांठ हत्या के बाद पड़ताल में जाहिर हुई। लिट्टे की सबसे बड़ी सहयोगी नार्वे की खुफिया एजेंसी Norwegian Intelligence Unit (NIS) थी। एनआईएस और सारे स्कैंडिनेवियाई देशों की खुफिया एजेंसियों के ओपस दाई और वेटिकन से गहरे रिश्ते थे। तब स्कैडिनेवियाई देशों और वेटिकन के साझा हित थे। स्कैडिनेवियाई देश अपने पड़ोस में कम्यूनिस्ट रूस से आतंकित थे और वेटिकन किसी भी हालत में कम्यूनिस्टों को उखाड़ फेंककर वहां के आर्थोडॉक्स चर्च को उनके चंगुल से आजाद कराना चाहता था।  
राजीव गांधी 400 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या सीधे तौर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार का नतीजा थी।

वेटिकन उत्तरी श्रीलंका में भी ईसाइयों को बौद्धों के कथित दमन से मुक्त करा के एक आजाद कैथोलिक देश बनाना चाहता था। कैथोलिक प्रभाकरण इसीलिए उनका सबसे चहेता मोहरा था जबकि उत्तर-पश्चिमी तमिल गुट का नेता करुणा इसके विरोध में था। एनआईएस ने प्रभाकरण को मुंहमांगी रकम और हथियार दिए और उसके लड़ाकों को प्रशिक्षित करने के लिए शिविर भी लगाए।  
आखिर में एनआईएस (Norwegian Intelligence Unit) ने जब राजीव गांधी की हत्या के वारंट पर दस्तख़त किए तो प्रभाकरण को उनका आदेश और आश्वासन बिलकुल स्पष्ट था- “हत्या चुनाव के ऐन पहले या हर हाल में चुनाव के दौरान की जाए और आश्वासन यह था कि भारत की तरफ से ऐसी कोई जवाबी कार्रवाई नहीं होगी, जिससे लिट्टे नेस्तनाबूद हो जाए”।
इस बाबत टेलीफोन पर टेप की हुई बातचीत रूसी खुफिया एजेंसियों ने भारत से साझा की। यानी सीधे तौर से कोई भारत के चुनावों को प्रभावित करना चाहता था और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति लहर को दोहराना चाहता था। यद्यपि हत्या के बाद भी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया। क्योंकि एकाध चरण के चुनाव पहले ही हो चुके थे और कुछ बोफोर्स के दाग भी थे।

वेटिकन की जांच के नतीजे

राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिंह राव ने मामले की जांच के लिए कई खुफिया टीमें गठित की। इसमें रॉ के शीर्ष पांच अफसरों की एक टीम भी थी। जिसे साज़िश के कोण से मामले की पड़ताल के लिए कहा गया। आदेश था कि वे सीधे और सिर्फ प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौपेंगे। जिस रॉ अफसर के लेख से ये तथ्य उठाए गए हैं, वे भी इस टीम में शामिल थे। और जांच जब आगे बढ़ने लगी तो वेटिकन और ओपस दाई के गांधी परिवार में 50 साल से चली आ रही गहरी रुचि की परतें उधड़नी शुरू हुईं।  
हर हत्या के बाद कुछ लोग एकदम हाशिये पर पहुंचा दिए गए, कुछ नए लोग भी आए। हत्या यदि एक है तो किसी वजह से हो सकती है, दूसरी शायद संयोग हो सकती है। लेकिन यदि तीसरी है, इसमें निश्चित रूप से एक पैटर्न है। विवाह से लेकर समय-समय पर तीन हत्याओं में एक खास देश और खास एजेंसी की भूमिका पूरी तरह साफ थी।  
यह भी स्पष्ट था कि इन तीनों हत्याओं से आखिर में लाभान्वित कौन होने वाला था?  यह बाद में हुआ भी।
लेकिन यह जांच भी किसी नतीजे पर पहुंचने वाली नहीं थी। एक दिन नरसिंह राव ने इन अफसरों की मीटिंग बुलाई और कहा कि ये वेटिकन और ओपस दाई वाले एंगल से जांच बंद करो, तुरंत प्रभाव से। इसमें सीआईए की भूमिका की जांच करो। यानी स्पष्ट संकेत था कि यह असुविधाजनक हो चला है, इसे बंद किया जाए। इसके बाद "राजीव ब्रीफ" पर पूर्ण विराम लग गया।
शायद किसी को पता लग गया कि एक जांच टीम वेटिकन एंगल से मामले की जांच कर रही है। शायद किसी खास पते से फोन आया हो कि गांधी परिवार की बहू को बदनाम करने की कोशिश महंगी पड़ सकती है।  

किसी रॉ-अफसर का लेख है

किसी रॉ अफसर ने मई, 2012 में यह पोस्ट लिखी थी। तब उन्होंने तीन पोस्ट लिखने का वादा किया था। लेकिन इसके बाद कोई दूसरी पोस्ट नहीं आई। बाद में एक संक्षिप्त पोस्ट में उन्होंने बस यही बताया कि वे किसी दूर देश में किसी फर्जी पहचान के साथ रह रहे हैं और सुरक्षित हैं। वे अगली पोस्ट में विस्तार से यह बताने वाले थे कि “राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने तुरंत राजनीति में उतरने में रुचि क्यों नहीं दिखाई?” लेकिन एक ही पोस्ट पर मामला सिमट गया और बहुत से राज दफन ही रह गए।
लेकिन सिर्फ पहली किस्त से ही एक तथ्य स्थापित हो जाता है। 23 जून 1980 से 21 मई 1991 के बीच शीर्ष परिवार के तीन शीर्ष सदस्य निपटा दिए गए। इन सारे में एक कामन कड़ी है, ओपस दाई और वेटिकन। और बिलकुल शुरुआत में ही बता दिया गया था कि परिवार में आने वाले एक सदस्य के ओपस दाई से क्या संबंध हैं। आखिर में वहीं हुआ जो पहले से योजनाबद्ध था।
हमारे देश को कुछ विदेशी ताकतें कितना बढ़िया से जानती हैं। उन्हें पता है कि सत्ता तो परिवार की ही रहनी है। आखिर में जो बचेगा वो अपना आदमी होगा और कमान उसके हाथ में होगी। आखिर में वही हुआ। “It happened exactly as planned- One wedding and three funerals.

आदर्श सिंह

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