मुहम्मद बिन कासिम का नाम इतिहास को जानने वाले लोगों ने सुना होगा। एक ऐसा मुस्लिम आक्रांता, जिसका जीवन काल मात्र 20 वर्षों का ही था। लेकिन उसने ऐसे-ऐसे कुकृत्य किए कि इतिहास उसे आज भी लानतें भेजता है।
सिंध के राजा दाहिर के साथ हुए उसके युद्ध को भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के सबसे शुरुआती आक्रमणों में से एक माना जाता है। पाकिस्तान में उसे लेकर आज भी बहस होती है! क्योंकि हिन्दू से मुस्लिम बने पाकिस्तानी एक हिन्दू राजा दाहिर को भला कैसे अपना पूर्वज मान सकते हैं।
अरब के मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ई. में हमला किया। उत्तर भारत मे इस्लाम का प्रथम आगमन इसी अभियान के पश्चात माना जाता है। सिंध प्रदेश को कासिम ने सफलतापूर्वक जीत लिया था। सिंध प्रदेश की अपनी एक आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्व था। मुहम्मद बिन कासिम द्वारा प्रथम आक्रमण ‘देवल’ (कराची) पर करके वहाँ मंदिर को तोड़ा था। स्थानीय राजाओं को हराने के बाद सामुहिक कत्लेआम किया गया था। इन घटनाओं के विवरण खुद ‘मुहम्मद बिन कासिम’ के फतेह अभियान का वर्णन देने वाले लेखक “अलक्रुफी” ने “चचनामा” नामक पुस्तक में वर्णन किया हुआ है। जिसमे लिखा है कि-
“सिविस्तान और सिसाम के किले पहले जीत लिए गए हैं! काफिरों को मजहब में ले लिया गया है और जो काफिर इस्लाम नहीं कबूले उनका कत्ल कर दिया गया है। मूर्ति वाले मंदिरों के स्थान पर मस्जिद बना दी गई है।” -(चचनामा, खंड एक, पृष्ठ 163-164)
जब कासिम ने सिन्ध के सभी किलों को जीत लिया, तब इस्लामी सल्तनत के खलीफा को संदेश भेजा गया। कासिम ने जब सिंध विजय की तब कई लोग कैद भी कर लिए गए और लूट का खूब माल हाथ लगा। इस लूट में स्त्रियाँ, बच्चे भी थे, स्त्रियों में सिन्ध के राजा की दो पुत्रियाँ परिमल व सूरजदेवी को भी खलीफा के हरम में भेजा गया।
खलीफा हज्जाज ने आदेश दे रखा था कि- "काफिरों, के प्रति कोई दया न दिखाई जाए उनका कत्ल कर दिया जाए और महिलाओं व बच्चों को कैदी बना लिया जाए" (पृष्ठ-173)।
◆ सिन्ध पश्चात् 'रेवार' की फतेह संपन्न हुई। रेवार में कासिम तीन दिन रुका। रेवार में छह हजार काफिरों का कत्ल किया गया। 30 हजार काफिरो को कैद कर लिए गया। जिनमें तीस सेनापतियों जो अलग-अलग जंग में हारे सरदारों की पुत्रियाँ थी, उन्हें खलीफा हज्जाज के पास भेज दिया गया (पृष्ठ 172-173)।
◆ इसके पश्चात मुहम्मद कासिम 'देवालयपुर' (कराची) पहुँचा। देवालयपुर में 'कासिम' ने जो कुछ किया, उसका विवरण 'अल-बिदौरी' नामक लेखक कुछ ऐसे देते हैं:-
"कासिम की सेना जैसे देवालयपुर पहुँची, उन्होंने काफिरों का कत्लेआम, लूटपाट, बलात्कार कर उत्सव मनाया गया, यह तीन दिन तक चला, सारा किला एक जेल खाना बना दिया गया। पकड़े गए सभी काफिर सैनिकों का कत्ल अथवा अंग-भंग कर दिया गया। सभी काफिर स्त्रियों को कैद करके इस्लामी योद्धाओं में बाँट दिया गया। मुख्य मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बना दिया गया, मंदिर पर भागवा रंग के झंडे के स्थान पर इस्लामी हरा झंडा फहरा दिया गया देवालयपुर (कराची) से जितने काफिर कैद किए गए, इनमें तीस हजार काफिर औरतों को बागदाद भेजा गया" (पृष्ठ 113-130)
'मुहम्मद कासिम' द्वारा छत्तीस हजार काफिरों का कत्ल, एक लाख से ज्यादा काफिर भारतीयों (हिंदुओं) को गुलाम बनाने व तीस हजार स्त्रियों को जबरन भारत से उठाकर बागदाद (ईराक) ले जाकर बेचने या हरम में जाने का विवरण खुद कासिम के साथ वाले लेखकों ने दिया है।
राजा दाहिर की दोनों बेटियाँ युवा ही थीं। कुछ ही दिनों बाद इस्लाम के खलीफा ने उनके बारे में सुना और दोनों को अपने दरबार में बुलाया। राजा दाहिर की बड़ी बेटी का नाम सूरजदेवी और छोटी बेटी का नाम परिमल देवी था। खलीफा वालिद बिन अब्दुल मलिक सुरजदेवी के सौंदर्य को देख कर मोहित हो गया और उसके भीतर हवस की आग जाग उठी। इसके बाद उसने आदेश दिया कि परिमल देवी को वहाँ से ले जाया जाए। तत्पश्चात उसने राजा दाहिर की बड़ी बेटी सूरजदेवी के साथ जोर-जबरदस्ती शुरू कर दी।
वहाँ खलीफा को पता चला कि मुहम्मद बिन कासिम ने दोनों बहनों को 3 दिनों तक बंधक बना कर रखा था और इस दौरान कासिम ने उनका रेप भी किया था। ये जानने के बाद खलीफा का खून खौल उठा और उसने तुरंत कलम, दवात और कागज़ मँगाई।
असल में तो खलीफा इस बात से नाराज था कि मुहम्मद बिन कासिम ने सूरजदेवी के ‘सतीत्व’ को भंग कर दिया है, जबकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ उसे, यानी खलीफा को ही था। वो इस बात से नाराज था कि उससे पहले किसी ने रेप क्यों किया।
उसने तुरंत आदेश जारी किया कि मुहम्मद बिन कासिम जहाँ भी और जिस भी अवस्था में हो, उसे कच्चे खाल में सिलकर खलीफा के दरबार में पेश किया जाए। इसके बाद खलीफा का आदेश मानते हुए उसके सैनिकों ने उसे बैल के चमड़े में सिलकर एक ट्रंक में डाल दिया और डमस्कस के लिए निकल गए।
कहते हैं कि खलीफा के आदेश के मुताबिक उसने ही सैनिकों से ऐसा करने को कहा था। हालाँकि, रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। जिस अल्लाह के नाम पर उसने मारकाट और खून-खराबा मचाया था, वो उसे ही प्यारा हो गया। खलीफा उसकी लाश देख कर खुश हुआ।
हालाँकि, इस्लामी इतिहास के हिसाब से लिखा गया चचनामा, इसके बाद ये भी लिखता है कि सूरजदेवी ने अपने पिता राजा दाहिर की हत्या का बदला लेने के लिए खलीफा से झूठ बोला था और इसका पता चलते ही खलीफा ने दोनों बहनों को घोड़े की पूछ से बाँधकर तब तक घसीटे जाने की आज्ञा दी, जब तक उनकी मौत न हो जाए।
यहाँ आजकल दावा किया जाता है कि 18 वर्ष के कम उम्र में व्यक्ति ‘नाबालिग’ होता है और बच्चा होता है, लेकिन ये भी तथ्य है कि उस ‘बच्चे’ की परवरिश किस माहौल में हुई है और उसे क्या सिखाया गया है, उसके क्रियाकलाप उस पर ही निर्भर करते हैं। इसीलिए, इस्लामी आक्रांताओं में से लगभग सारे मूर्तिभंजक और क्रूर हत्यारे हुए।
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