वैदिक धर्म: बुद्धिष्ट देशों में!: भाग-०४

Hindu gods
भगवान राम और रामायण बुद्धिष्टो के देश मे
हिन्दुओ के आराध्य देव पुरुषोत्तम राम की भी ध्वजा पूरे दुनिया मे है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भगवान राम के बारे में नहीं जनता हो, सभी भारतीय धर्मग्रंथों में राम का नाम आदर से लिया गया है। राम के बिना हिन्दू धर्म और संस्कृति अधूरी है। जैसे हिन्दू अभिवादन के लिए "राम राम" शब्द का प्रयोग करते है, मृत्यु बाद भी राम नाम सत्य है कहते हैं।

बैंगकॉक का वास्तविक नाम

भारत के बाहर भी थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में “राम-राज्य” है, और वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट "भूमिबल अतुल्य तेज" राज्य कर रहे हैं, जिन्हें नौवां राम ( Rama 9th ) कहा जाता है। लोग थाईलैंड की राजधानी को अँग्रेजी में बैंगकॉक (Bangkok) कहते हैं, क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है, की इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है। इसका नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है, देवनागरी लिपि में पूरा नाम इस प्रकार है-
"क्रुंग देवमहानगर अमररत्नकोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महातिलकभव नवरत्नरजधानी पुरीरम्य उत्तमराजनिवेशन महास्थान अमरविमान अवतारस्थित शक्रदत्तिय विष्णुकर्मप्रसिद्धि "
बैंकॉक का पूरा नाम थाई भाषा मे!
थाई भाषा में इस पूरे नाम में कुल 163 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। इस नाम की एक और विशेषता है, इसे बोला नहीं बल्कि गाकर कहा जाता है। कुछ लोग आसानी के लिए इसे "महेंद्र अयोध्या" भी कहते है अर्थात इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्या। थाई लैंड के जितने भी राम (राजा) हुए हैं, सभी इसी अयोध्या में रहते आये हैं। यद्यपि थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के लोग बहुसंख्यक हैं, वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है,जिसे थाई भाषा में "राम कियेन" कहते हैं, जिसका अर्थ “राम कीर्ति” होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में नष्ट हो गयी थी, जिससे चक्री राजा प्रथम राम (1736–1809), ने अपनी स्मरण शक्ति से फिर से लिख लिया था।
थाईलैंड में रामायण को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करना इसलिए संभव हुआ, क्योंकि वहां भारत की तरह दोगले हिन्दू (मलमूत्र-निवासी और शेखुलर) नहीं है, जो नाम के हिन्दू हैं, लेकिन उनके असली बाप का नाम, उनकी माँ भी नहीं बता सकती। हिन्दुओं के दुश्मन यही लोग है।

राम कियेन के प्रमुख पत्रों के नाम

थाई लैंड में राम कियेन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता है। राम कियेन के मुख्य पात्रों के नाम इस प्रकार हैं-
१- फ्र राम (राम ),    २- फ्र लक (लक्ष्मण)
३- पाली (बाली)      ४- सुक्रीप (सुग्रीव),
५- ओन्कोट (अंगद), ६- खोम्पून (जाम्बवन्त),
७- बिपेक (विभीषण) ८- तोतस कन (दशकण्ठ) रावण,
९- सदायु (जटायु)    १०- सुपन मच्छा (शूर्पणखा),
११- मारित (मारीच) १२- इन्द्रचित (इंद्रजीत) मेघनाद,
१३- फ्र पाई (वायु देव)  इत्यादि।
थाई राम कियेन में हनुमान की पुत्री और विभीषण की पत्नी का नाम भी है, जो यहाँ के लोग नहीं जानते।
Ramayan in thailand
हनुमान, रामकिएन से।

“गरुड” थाईलैंड का “राष्ट्रीय चिन्ह” कैसे?

गरुड़ एक बड़े आकार का पक्षी है, जो लगभग लुप्त हो गया है। अंगरेजी में इसे ब्राह्मणी पक्षी (The brahminy kite ) कहा जाता है, इसका वैज्ञानिक नाम "Haliastur indus" है। फ्रैंच पक्षी विशेषज्ञ “Mathurin Jacques Brisson” ने इसे सन 1760 में पहली बार देखा था, और इसका नाम Falco indus रख दिया था। इसने दक्षिण भारत के पाण्डीचेरी शहर के पहाड़ों में गरुड़ देखा था। इस से सिद्ध होता है कि गरुड़ काल्पनिक पक्षी नहीं है, इसीलिए भारतीय पौराणिक ग्रंथों में गरुड़ को विष्णु का वाहन माना गया है। चूँकि राम विष्णु के अवतार हैं और थाईलैंड के राजा राम के वंशज मानते है और बौद्ध होने पर भी हिन्दू धर्म पर अटूट आस्था रखते हैं। इसलिए उन्होंने "गरुड़" को राष्ट्रीय चिन्ह घोषित किया है, यहां तक कि थाई संसद के सामने गरुड़ बना हुआ है।
गरुण थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह
"गरुण" थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह

विभिन्न देशों में रामकथा के विभिन्न नाम

कंपूचिया नामक देश में राम कथा, रामकेर्ति नाम से प्रसिद्ध है। मलयेशिया की राम कथा और “हिकायत सेरी राम” है।  फिलिपींस की राम कथा “महालादिया लावन” है। नेपाल की राम कथा “भानुभक्त कृत रामायण” है।
कंपूचिया की राजधानी फ्नाम-पेंह में एक बौद्ध संस्थान है, जहाँ ख्मेर लिपि में दो हजार ताड पत्रों पर लिपिबद्ध पांडुलिपियाँ संकलित हैं। इस संकलन में कंपूचिया की रामायण की प्रति भी है। फ्नाम-पेंह बौद्ध संस्थान के तत्कालीन निदेशक एस. कार्पेल्स द्वारा रामकेर्ति के उपलब्ध सोलह सर्गों (१-१० तथा ७६-८०) का प्रकाशन अलग-अलग पुस्तिकाओं में हुआ था। इसकी प्रत्येक पुस्तिका पर रामायण के किसी न किसी आख्यान का चित्र है।१ कंपूचिया की रामायण को वहाँ के लोग 'रिआमकेर' के नाम से जानते हैं, किंतु साहित्य जगत में यह 'रामकेर्ति' के नाम से विख्यात है।
'रामकेर्ति' ख्मेर साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृति है। 'ख्मेर' कंपूचिया की भाषा का नाम है। इसके प्रथम खंड की कथा विश्वामित्र यज्ञ से आरंभ होती है और इंद्रजित-वध पर आकर अंटक जाती है, दूसरे खंड में सीता त्याग से उनके पृथ्वी प्रवेश तक की कथा है। 'रामकेर्ति' का रचनाकार कोई बौद्ध भिक्षुक ज्ञात होता है, क्योंकि वह राम को नारायण का अवतार मानते हुए उनको 'बोधिसत्व' की उपाधि प्रदान करता है। इसके बावजूद 'रामकेर्ति' और वाल्मीकि रामायण में अत्यधिक साम्य है।
बर्मा में राम (Yama) और सीता (Thida) को “Yama Zatdaw” नामक रामायण ग्रन्थ में लोप्रियता प्राप्त है। इसके अतिरिक्त जावा, बाली, मलाया, बर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस सहित कई बुद्धिस्ट देशो में रामायण अति लोकप्रिय है। दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिमो वाले देश इंडोनेशिया में रामलीला मुस्लिम करते है और वह विश्व प्रसिद्ध है।
नेपाल के राष्ट्रीय अभिलेखागार में वाल्मीकि रामायण की दो प्राचीन पांडुलिपियाँ सुरक्षित हैं। इनमें से एक पांडुलिपि के किष्किंधा कांड की पुष्पिका पर तत्कालीन नेपाल नरेश गांगेय देव और लिपिकार तीरमुक्ति निवासी कायस्थ पंडित गोपति का नाम अंकित है। इसकी तिथि सं. १०७६ तदनुसार १०१९ई. है। दूसरी पांडुलिपि की तिथि नेपाली संवत् ७९५ तदनुसार १६७४-७६ई. है।
नेपाली साहित्य में भानुभक्त कृत रामायण को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। नेपाल के लोग इसे ही अपना आदि रामायण मानते हैं। यद्यपि भनुभक्त के पूर्व भी नेपाली राम काव्य परंपरा में गुमनी पंत और रघुनाथ- का नाम उल्लेखनीय है। रघुनाथ-भ कृत रामायण सुंदर कांड की रचना उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था।
एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग को खोतान कहा जाता है, जिसकी भाषा खोतानी है। एच.डब्लू. बेली ने पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से खोतानी रामायण को खोजकर प्रकाश में लाया। उनकी गणना के अनुसार इसकी तिथि नौवीं शताब्दी है। यह खोतानी रामायण अनेक स्थलों पर तिब्बीती रामायण के समान है, किंतु इसमें अनेक ऐसे वृत्तांत हैं जो तिब्बती रामायण में नहीं हैं।
चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लोगों को राम कथा की विस्तृत जानकारी है। वहाँ के लामाओं के निवास स्थल से वानर-पूजा की अनेक पुस्तकें और प्रतिमाएँ मिली हैं। वानर पूजा का संबंध राम के प्रिय पात्र हनुमान से स्थापित किया गया है। मंगोलिया में राम कथा से संबद्ध काष्ठचित्र और पांडुलिपियाँ भी उपलबध हुई हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि बौद्ध साहित्य के साथ संस्कृत साहित्य की भी बहुत सारी रचनाएँ वहाँ पहुँची। इन्हीं रचनाओं के साथ रामकथा भी वहाँ पहुँच गयी। दम्दिन सुरेन ने मंगोलियाई भाषा में लिखित चार राम कथाओं की खोज की है। इनमें राजा जीवक की कथा विशेष रुप से उल्लेखनीय है जिसकी पांडुलिपि लेलिनगार्द में सुरक्षित है।
जीवक जातक की कथा का अठारहवीं शताब्दी में तिब्बती से मंगोलियाई भाषा में अनुवाद हुआ था, जिसके मूल तिब्बती ग्रंथ की कोई जानकारी नहीं है। आठ अध्यायों में विभक्त जीवक जातक पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ता है। इसमें सर्वप्रथम गुरु तथा बोधिसत्व मंजुश्री की प्रार्थना की गयी है। जीवक पूर्व जन्म में बौद्ध सम्राट थे। उन्होंने अपनी पत्नी तथा पुत्र का परित्याग कर दिया। इसी कारण उन्हें दोनों ने शाप दे दिया कि अगले जन्म में वे संतानहीन हो जायेंगे। जीवक की भेंट भगवान बुद्ध से हुई। उन्होंने श्रद्धा के साथ उनका प्रवचन सुना और उन्हें अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया। इस घटना के बाद जीवक की भेंट दस हज़ार मछुआरों से हुई। उन्होंने उन्हें अहिंसा का उपदेश दिया।
जीवक नामक राजा को तीन रानियाँ थीं। तीनों को कोई संतान नहीं थी। राजा वंशवृद्धि के लिए बहुत चिंतित थे। एक बार उन्होंने पुत्र का स्वप्न देखा। भविष्यवस्ताओं के कहने पर वे उंदुबरा नामक पुष्प की तलाश में समुद्र तट पर गये। वहाँ से पुष्प लाकर उन्होंने रानी को दिया। पुष्प भक्षण से रानी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम “राम” रखा गया। कालांतर में राम राजा बने। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। उन्होंने अपने राज्य में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु “कुकुचंद” को आमंत्रित किया। बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक के चीनी संस्करण में रामायण से संबद्ध दो रचनाएँ मिलती हैं- 'अनामकं जातकम्' और 'दशरथ कथानम्'। फादर कामिल लुल्के के अनुसार तीसरी शताब्दी ईस्वी में 'अनामकं जातकम्' का कांग-सेंग-हुई द्वारा चीनी भाषा में अनुवाद हुआ था, जिसका मूल भारतीय पाठ अप्राप्य है। चीनी अनुवाद लियेऊ-तुत्सी-किंग नामक पुस्तक में सुरक्षित है।
'अनामकं जातकम्' में किसी पात्र का नामोल्लेख नहीं हुआ है, किंतु कथा के रचनात्मक स्वरुप से ज्ञात होता है कि यह रामायण पर आधारित है। क्योंकि इसमें “राम वन गमन”, “सीता हरण”, “सुग्रीव मैत्री”, “सेतुबंधष लंका विजय” आदि प्रमुख घटनाओं का स्पष्ट संकेत मिलता है। नायिका विहीन 'अनामकं जातकम्', जानकी हरण, वालि वध, लंका दहन, सेतुबंध, रावण वध आदि प्रमुख घटनाओं के अभाव के बावजूद वाल्मीकि रामायण के निकट जान पड़ता है। अहिंसा की प्रमुखता के कारण चीनी, राम कथाओं पर बौद्ध धर्म का प्रभाव स्पष्ट रुप से परिलक्षित होता है।
तिब्बती रामायण की छह प्रतियाँ तुन-हुआंग नामक स्थल से प्राप्त हुई है। उत्तर-पश्चिम चीन स्थित तुन-हुआंग पर ७८७ से ८४८ ई. तक तिब्बतियों का आधिपत्य था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि उसी अवधि में इन गैर-बौद्ध परंपरावादी राम कथाओं का सृजन हुआ। तिब्ब्त की सबसे प्रामाणिक राम कथा “किंरस-पुंस-पा” की है जो 'काव्यदर्श' की श्लोक संख्या २९७ तथा २८९ के संदर्भ में व्याख्यायित हुई है।
किंरस-पुंस-पा की राम कथा के आरंभ में कहा गया है कि “शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण द्वारा दसों सिर अर्पित करने के बाद उसकी दस गर्दनें शेष रह जाती हैं। इसी कारण उसे दशग्रीव कहा जाता है। महेश्वर स्वयं उसके पास जाते हैं और उसे तब तक के लिए अमरता का वरदान देते हैं, जब तक कि उसका अश्वमुख मंजित नहीं हो जाता।”
इंडोनेशिया और मलयेशिया की तरह फिलिपींस के इस्लामीकरण के बाद वहाँ की राम कथा को नये रुप रंग में प्रस्तुत किया गया। ऐसी भी संभावना है कि इसे बौद्ध और जैनियों की तरह जानबूझ कर विकृत किया गया। डॉ. जॉन आर. फ्रुैंसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में संकलित एक विकृत रामकथा की खोज की है, जिसका नाम मसलादिया लाबन है। इसकी कथावस्तु पर सीता के स्वयंवर, विवाह, अपहरण, अन्वेषण और उद्धार की छाप स्पष्ट रुप से दृष्टिगत होता है।  
Ramayan in thailand
थाईलैंड में रामायण का मंचन
मलयेशिया का इस्लामीकरण तेरहवीं शताब्दी के आस-पास हुआ। मलय रामायण की प्राचीनतम पांडुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में १६३३ई. में जमा की गयी थी। इससे ज्ञात होता है कि मलयवासियों पर रामायण का इतना प्रभाव था कि इस्लामीकरण के बाद भी लोग उसके परित्याग नहीं कर सके। मलयेशिया में रामकथा पर आधरित एक विस्तृत रचना है 'हिकायत सेरीराम'। इसका लेखक अज्ञात है। इसकी रचना तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच हुई थी। इसके अतिरिक्त यहाँ के लोकाख्यानों में उपलब्ध रामकथाएँ भी प्रकाशित हुई हैं। इस संदर्भ में मैक्सवेल द्वारा संपादित 'सेरीराम', विंसटेड द्वारा प्रकाशित 'पातानी रामकथा' और ओवरवेक द्वारा प्रस्तुत ‘हिकायत महाराज रावण’ के नाम उल्लेखनीय हैं।
हिकायत सेरीराम विचित्रताओं का अजायब घर है। इसका आरंभ रावण की जन्म कथा से हुआ है। किंद्रान (स्वर्गलोक) की सुंदरियों के साथ व्यभिचार करने वाले सिरानचक (हिरण्याक्ष) को पृथ्वी पर दस सिर और बीस भुजाओं वाले रावण के रुप में जन्म लेना पड़ा। वह चित्रवह का पुत्र और वोर्मराज (ब्रह्मराज) का पौत्र था। चित्रवह को रावण के अतिरिक्त कुंबकेर्न (कुंभकर्ण) और बिबुसनम (विभीषण) नामक दो पुत्र और सुरपंडकी (शूपंणखा) नामक एक पुत्री थी।
दुराचरण के कारण रावण को उसके पिता ने जहाज से बुटिक सरेन द्वीप भेज दिया। वहाँ उसने अपने पैरों को पेड़ की डाल में बाँध कर तपस्या करने लगा। आदम उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गये। उन्होंने अल्लाह से आग्रह किया और उसे पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल का राजा बनवा दिया। तीनों लोकों का राज्य मिलने पर रावण ने तीन विवाह किया। उसकी पहली पत्नी स्वर्ग की अप्सरा नील-उत्तम, दूसरी पृथ्वी देवी और तीसरी समुद्रों की रानी गंगा महादेवी थी। नीलोत्तमा ने तीन सिरों और छह भुजाओं वाले एंदेरजात (इंद्रजित), पृथ्वी देवी ने पाताल महारायन (महिरावण) और गंगा महादेवी ने गंगमहासुर नाम के पुत्रों को जन्म दिया।
यू-टिन हट्वे ने बर्मा की भाषा में राम कथा साहित्य की सोलह रचनाओं का उल्लेख किया है-
() रामवत्थु (१७७५ई. के पूर्व),
() राम सा-ख्यान (१७७५ई.),
() सीता रा-कान,
() राम रा-कान (१७८४ई.),
() राम प्रजात (१७८९ई.),
() का-ले रामवत्थु
() महारामवत्थु,
() सीरीराम (१८४९ई.),
() पुंटो राम प्रजात (१८३०ई.),
(१०) रम्मासुङ्मुई (१९०४ई.),
(११) पुंटो रालक्खन (१९३५ई.),
(१२) टा राम-सा-ख्यान (१९०६ई.),
(१३) राम रुई (१९०७ई.),
(१४) रामवत्थु (१९३५ई.),
(१५) राम सुम: मुइ (१९३ ई.) और
(१६) रामवत्थु आ-ख्यान (१९५७ई.)।
राम कथा पर आधारित बर्मा की प्राचीनतम गद्यकृति 'रामवत्थु' है। इसकी तिथि अठारहवीं शताब्दी निर्धारित की गयी है। इसमें अयोध्या कांड तक की कथा का छह अध्यायों में वर्णन हुआ है और इसके बाद उत्तर कांड तक की कथा का समावेश चार अध्यायों में ही हो गया है। रामवत्थु में जटायु, संपाति, गरुड़, कबंध आदि प्रकरण का अभाव है।
रामवत्थु की कथा बौद्ध मान्यताओं पर आधारित है, किंतु इसके पात्रों का चरित्र चित्रण वाल्मीकीय आदर्शों के अनुरुप हुआ है।

स्रोत-

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