भारत में २१ तोपों की सलामी का क्या इतिहास है?


 देश में २१ तोपों की सलामी की कहानी १५० साल से भी पुरानी है। इस प्रक्रिया से उस दौर में भारत को गुलाम बनाने वाले ईसाइयों की शक्ति की भव्यता और रौब का प्रदर्शन किया जाता था। अंग्रेजों के दौर में दिल्ली में १८७७, १९०३ और १९११ में भव्यता के ये ३ बेधड़क प्रदर्शन आयोजित किए गए थे।

   वायसराय लॉर्ड लिटन ने साल १९७७ में दिल्ली में पहला दरबार आयोजित किया था, जिसे अब कोरोनेशन पार्क कहते हैं। इसमें क्वीन विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित करने के लिए भारत के महाराजाओं और राजकुमारों को एक उद्घोषणा पढ़कर बुलाया गया था। दूसरे दरबार १९०३ में इंग्लैंड एक नए सम्राट की ताजपोशी की गई थी। तीसरा दरबार साल १९११ में आयोजित हुआ, जो किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की वजह से खास था। इनके सम्मान में ५० हजार ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों ने परेड की थी। 

इस आधार पर तय हुए सलामी के मानक

   असल में साल 1877 तक तोपों की सलामी के लिए मानक तय नहीं थे। इसी साल लगे दरबार के दौरान लंदन में सरकार की सलाह पर वायसराय ने एक नया आदेश जारी किया।

    जिसके तहत ब्रिटिश सम्राट के लिए बंदूक की 101 और भारत के वायसराय के लिए 31 सलामी तय की गई। इसके साथ ही ब्रिटिश राज के साथ भारतीय राजाओं के संबंधों के आधार पर उन्हें २१, १९, १७, १५, ११ और ९ बंदूक सलामी देने का पदानुक्रम तय किया गया था।

    भारतीय महाराजा राजा, नवाब आदि को उनके रुतबे के अनुसार २१, १९, १५, ११ और ९ तोपो की सलामी दी जायेगी। यही नहीं!- 

  • १ तोप सलामी वाले महाराजा द्वारा वायसराय को महज़ अपने महल की ड्योढ़ी तक रिसीव करने आना होगा। 
  • १९ तोप सलामी वाला राजा महल के मुख्य द्वार तक आएगा और 
  • इसी प्रकार ९ तोप सलामी वाला राजा महल से कुछ मील दूर तक जाकर अंग्रेज अफ़सरान का स्वागत करेगा।

   तो इन महाराजा राजा और नवाब आदि में प्रतिस्पर्धा रहती कि किसी तरह तोपो की सलामी के अंक में बढ़ोत्तरी हो। ये लोग क़र्ज़ आदि ले कर अंग्रेजों को डालियाँ आदि देते थे ताकि वो खुश हो और तोपों का नंबर बढ़ा दें।

     ब्रिटिश काल वाला हिंदुस्थान तोपों की सलामी में इस प्रकार व्यस्त रहा था! और जाने अनजाने में एक तरह की गुलामी करने के होड़ में लगा रहता था। 

गणतंत्रता दिवस पर 21 तोपो की सलामी देते भारतीय जवान

आजादी के बाद भारत में 21 तोपों की सलामी

  आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला। वह घोड़ा गाड़ी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से इरविन एम्फीथिएटर (मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) देश के राष्ट्रपति को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी लेने आए थे। तब से ही 21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया। 

    वर्ष 1971 के बाद से 21 तोपों को सलामी, राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान बन गई। इसके अलावा, नए राष्ट्रपति की शपथ के दौरान और कुछ खास चुनिंदा अवसरों पर भी यह सलामी दी जाती है।

तोपो की सलामी के लिए कितने तोपें 

   अब जो सलामी दी जाती है, उसमें गोले तो 21 होते हैं, लेकिन तोपें सिर्फ 8 होती हैं। जिसमें से  सलामी के लिए 7 तोपें इस्तेमाल की जाती हैं। हर तोप से 3 गोले फायर किए जाते हैं। सलामी देने के तकरीबन 122 जवानों का एक दस्ता होता है, जिसका हेडक्वार्टर मेरठ में है। ये भारतीय सेना की स्थाई रेजीमेंट नहीं होती है।

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