बौद्ध धर्म का भौकाल Glorification of Buddhism in India | Hindus Vs Buddhist debate

बौद्ध धर्म का भौकाल Glorification of Buddhism in India | Hindus Vs Buddhist debate

 भारत में वामपंथियों और कांग्रेसी इतिहासकारों लेखकों ने बुद्ध और बौद्धों का ऐसा भारत रूपी चित्रण किया कि बहुत सारे लोग उसके आगे तत्क्षण नतमस्तक होते चले गए। यह भौकाल कुछ ऐसा था कि मानो बुद्ध और बौद्ध किसी अन्य नक्षत्र से भारत की धरती पर आ टपके और 100-150 वर्षों में ही वैदिक धर्म हिंदुओं की सारी कुरीतियों जड़ताओ सीमाओं पर प्रहार करते हुए उन्हें पराजित ध्वस्त कर दिया। 
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    हिंदू तो बलि देने वाले जात-पात करने वाले स्त्रियों का शोषण करने वाले लोग थे। गतानुगतिक, पोंगा पंथी, भेदभाव पोषक और अवैज्ञानिक! यह आक्षेप सही थे या नहीं! यह बाद का विषय है। पहले यह सोचने वाली बात है कि-   

  • बौद्धों के भीतर क्या चल रहा था?
  • वे हिंदुओं से कितने भिन्न थे?
  • वैदिक धर्म की कथित कुरीतियों से मुक्ति दिलाने वाले स्वयं कितने मुक्त थे?
  • उनकी सामाजिक स्थिति कैसी थी?
  • स्त्रियों की वहां क्या स्थिति थी?
  • उनका कोई लोक भी था?

    इन सब बातों को जानने के प्रयास नहीं किए जाते।  

बौद्धों का लौकिक स्वरूप क्या था? कैसा था? उसका कोई आधार भी था? 

    यह बात स्पष्ट है कि इस्लाम के आक्रमणों के बाद बौद्धों का पराभव सबसे तेजी से हुआ। स्वयं डॉ अंबेडकर ने भारत में बौद्धों के पराभव और लगभग निर्मूली का सबसे बड़ा कारण इस्लामी आक्रमणों को ही माना है। नालंदा, उदंतपुरी और विक्रमशिला जैसे विद्यालयों और मठों के समाप्त होने के 100-150 वर्ष बाद ही बौद्ध भारत से लगभग समाप्त होते चले गए  जिन बौद्धों को भारतीय समाज का अगुआ, उनका पथ प्रदर्शक नवोन्मेषी कहा गया। जिन्हें भारत के बौद्धिको ने हमेशा हिंदुओं से श्रेष्ठतर ठहराया, वह मूलत एक आधारहीन संप्रदाय था। 

गौतम बुद्धा द्वारा यज्ञोपवित धारण कि हुई मुर्तिया तथा माथे पर लगा हुआ तिलक

   क्योंकि हर धर्म का एक समाज होता है। उसका कोई सुदृढ़ समाज या लोक रहा होता तो वह यूं निर्मूल हो गया होता? बात साफ है कि बौद्ध मठों और महाविहार तक सीमित थे। लोक में उनकी कोई प्रवाहमान उपस्थिति नहीं थी, जैसी कि वैदिक धर्म की रही है। हिंदुओं ने हजारों वर्ष की सभ्यता संस्कृति में अपने धर्म को लोकाभिमुख किया। एक तरह से वह लोक से उपजा और लोक को ही समर्पित रहा। उसके देवता मूलतः लौकिक सारे उत्सव, पर्व, त्यौहार, रीतियां, नीतियां, लौकिक! बल्कि वे इतने लौकिक और हमारे जीवन से नाभिनाबद्ध हैं कि उनके बिना हिंदू जीवन धारा की कल्पना ही बेमानी है। 

   इसीलिए उस लोक धर्म की रक्षा हेतु हम हजार वर्ष तक लड़ते रहे। कभी हार नहीं माने। लेकिन बौद्धों ने कितना संघर्ष किया? संघर्ष तब करते, जब लोक में उनकी पैठ होती! उत्सव, संस्कार, रीति, पर्व रहे होते! बौद्ध भारत से इतर जिन देशों में पनपे या टिके, उन देशों में उन्होंने धर्म-अधर्म के सनातनी दर्शन को ही अपनाया। यह दर्शन मूलत उपनिषदों से आता है। उन देशों में उन्होंने अधर्मियों हों को सबक सिखाया, तभी टिके रहे। 

   उन संस्कृतियों के लोक में भी उनकी गहरी पैठ बनी, तो वे बचे रहे। भारत में बौद्धों की पूरी उपस्थिति बड़ी अकादमिक और मठीय प्रतीत होती है। वह उपस्थिति केवल मठों, बहारों और मंदिरों से नहीं बचने वाली थी। आश्चर्य इस बात का भी है कि भारत में हिंदुओं और बौद्ध, जैन मतालंबियां को परमशत्रु के रूप में चित्रित किया गया। लेकिन इन तीनों ही पंथ के वास्तविक शत्रु (जिहादियो) को महान समावेशी और परिवर्तनकारी सिद्ध कर दिया गया। 

हिन्दू और बौद्ध पंथ में कभी संघर्ष क्यो नही मिलता है??

   हिंदू और इन दो पंथ के बीच का संघर्ष एक साधारण राजनैतिक और वैचारिक संघर्ष रहा हो, धार्मिक तो कदापि नहीं था। अपवाद स्वरूप कुछ उदाहरण मिल सकते हैं, परंतु वे उदाहरण भी अंततः विराट सनातनी जीवनधारा में गौण हो गए। शास्त्रार्थ तो सामान्य चलन था, लेकिन एक दूसरे के विश्वासों और मान्यताओं का वैसा हिंसक ध्वंस कभी नहीं हुआ, जैसा कि कांग्रेस काल के वामपंथी इतिहासकारों ने सिद्ध करने का भरपूर किंतु हास्यास्पद प्रयास किया। 

   सबसे बड़ा उदाहरण इस देश के हजारों मंदिर हैं। हिंदू, बौद्ध और जैन मतावलंबियां ने तीनों धर्मों के मंदिर बनवाए। एक ही क्षेत्र में हिंदू और बौद्ध, जैन देवालय देख सकते हैं। चंबल और बुंदेलखंड में सैकड़ों देवालय उपस्थित हैं। ध्यातव्य है कि वे सभी देवालय एक ही विश्वास के उन्मादियों (जिहादियों) ने ढहाये! 

एलोरा की गुफाएं एक साथ वैदिक बौद्ध और जैन तीनों ही धाराओं का संगम है
एलोरा की गुफाएं एक साथ वैदिक बौद्ध और जैन तीनों ही धाराओं का संगम है

राम हमारे पूर्वज हैं- बुध्द

    एलोरा की गुफाएं एक साथ वैदिक बौद्ध और जैन तीनों ही धाराओं का संगम है। जिन गौतम बुद्ध को ब्राह्मणवाद और कर्मकांड का विरोधी बताया जाता है, उनकी हर प्राचीन मूर्ति में यज्ञोपवित स्पष्ट दिखाई देता है। बुद्ध ने जिस मत का प्रतिपादन किया, क्या वह हिंदू मत से सर्वथा भिन्न था? बौद्ध राजाओं ने जिन विशाल मंदिरों के निर्माण करवाए, वहां कौन से धार्मिक अनुष्ठान प्रचलित थे? क्या वे निराकार अदृश्य, अधिनायकवादी पूजने के अनुष्ठान थे? क्या वहाँ अन्य मतावलंबियों को समाप्त कर देने के लिए आह्वाहन होते थे? क्या बौद्धों ने हिंसा, अपरिग्रह, परदुख का तरता करुणा के भाव हिंदू धर्म से नहीं लिए थे? बुद्ध क्यों गौरव के साथ कहते थे कि “राम उनके पूर्वज हैं!” 

एलोरा की गुफाएं एक साथ वैदिक बौद्ध और जैन तीनों ही धाराओं का संगम है

    बुद्ध के प्रति लगभग सभी हिंदुओं में अपार आदर्श का भाव है। हिंदुओं का हर मंदिर सनातन धर्म की सभी शाखाओं के साथ बौद्धों का भी स्वागत करता है। वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। तब फिर सीखने की आवश्यकता किसे है? हिंदुओं को या बौद्धों को? या उनके मूढ़ अनुयायियों को? 

    जिन इतिहासकारों अथवा लेखकों ने बौद्ध धर्म को परिवर्तनकारी, महान और समावेशी कहकर हिंदू धर्म का उपहास किया, वह इस प्रश्न पर क्यों नहीं विचार करते कि भारत में इस्लाम के आक्रमण से पूर्व उतने विशाल काय बौद्धमठ क्यों और कैसे फल फूल रहे थे? अगर उन मठों पर हिंदू वरदहस्त नहीं था, तो वे ढाए जाने के साथ ही क्यों समाप्त होने लगे? क्यों बौद्धों ने सामाजिक रूप से उन आक्रमणों का प्रतिकार नहीं किया? अगर वे सामाजिक और लौकिक रूप से दृढ़ थे तो लड़ते! जैसे हिंदू लड़ते रहे। 

    स्पष्ट है कि कोई लौकिक रूप उनका नहीं था। जो था! वह अत्यंत ही वायवीय सैद्धांतिक अकादमिक और मठीय था। वह पारंपरिक लौकिक और सामाजिक रूप से गहरा रहा होता तो लड़ता! उसे तो एक अंधड़ ने उखाड़ फेंका! उसके पास राम, कृष्ण, हनुमान, देवी जैसे प्रतीक रहे होते जो आम जीवन से अभिन्न रहे हो! जिनसे आम प्रेरणा शक्ति पाते रहे हो और उनकी ही शक्तियों से लड़ते भिड़ते हुए धर्म रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हुए हो, तो वे भी बच जाते। 

   उनके पास रीति, नीति, लोक पर्व त्यौहार अनुष्ठान रहे होते तो बचते। परंतु नहीं! नहीं बचे! क्योंकि जड़ ही पोपली हो चुकी थी। हिंदुओं और बौद्धों में समानताएं तो बहुत हैं, बहुत सारी विसंगतियां भी हैं। लेकिन दोनों ही धार्मिक विचारों के आगे चुनौतियां एक जैसी हैं। दोनों के शत्रु एक ही हैं। हिंदू और बौद्ध कभी एक दूसरे के अस्तित्व के लिए चुनौती नहीं बन सकते। क्योंकि दोनों की वैचारिक भूमि एक है। दोनों को यहीं से खाद-पानी मिलना है।  

मुल्ला, मिशनरी और मार्क्सवाद ना हमारे सगे हैं, ना उनके, ना आपके। 

   हमारा एक मात्र उद्देश्य हिंदू समाज को जागृत और एकजुट करना है! इसमें सहभागी बने! धन्यवाद!



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