माओवादी आतंकवाद का सहायक शहरी माओवादी गौतम नवलखा को पुणे पुलिस 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार करके ट्रांजिट रिमांड लेकर 29 अगस्त 2018 को पुणे ले जाना चाहती थी। तब न्यायाधीश डॉ एस मुरलीधर ने केस की सुनवाई 29 अगस्त को प्रातः 6 बजे किया और आदेश निर्गत किया कि “गौतम नवलखा को दिल्ली से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है”। जब इसका विरोध किया गया कि न्यायाधीश ने ऐसे मामले में हाउस अरेस्ट का आदेश दे दिया था तो जज मान गए और हाउस अरेस्ट समाप्त कर दिया। न्यायाधीशों का तर्क बड़ा ही कच्चा/हल्का प्रकार का था।
न्यायाधीश ने कहा- “एक-एक मिनट जो कस्टडी में रखा जा रहा है, यह चिंता का विषय है”। और दूसरा तर्क था कि “महाराष्ट्र पुलिस सर्च वारंट और अरेस्ट मेमो गौतम नवलखा को मराठी से हिंदी में अनुवाद करके नहीं दिया”। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा कि अरेस्ट मेमो मराठी में था। उन्होंने प्रश्न किया कि यह बहुत व्यवहारिक बात है कि जब गिरफ्तारी का आधार मराठी में होगा तो व्यक्ति गिरफ्तारी के पीछे के कारण कैसे समझ पाएगा?
अब प्रश्न उठता है कि-
1. क्या न्यायमूर्ति, उनके स्टाफ और गौत्तम नवलखा की टीम में कोई विशेष संचार चल रहा है?
1. क्या न्यायमूर्ति, उनके स्टाफ और गौत्तम नवलखा की टीम में कोई विशेष संचार चल रहा है?
क्या किसी भी साधारण केस में या किसी राजनीतिक आरोपों के केस में भी न्यायधीश 6 बजे सुबह कोर्ट रूम में आते हैं? फिर गौतम नवलखा को विशेष महत्व देने का कारण क्या था? यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि न्यायमूर्ति को 6 बजे कोर्टरूम में उपस्थित होने के लिए कम से कम 4 बजे भोर में जागना पड़ा होगा। और केवल न्यायमूर्ति नहीं तो सारे स्टाफ को एक समान दिनचर्या पालन करना पड़ा होगा। और यही टाइमिंग गौतम नवलखा के परिवारजनों अर्थात पैरवीकर्ताओं को भी पालन करना पड़ा होगा। जबकि सामान्य रूप से यह दिनचर्या न्यायालय का होता नहीं। तो फिर क्या न्यायमूर्ति, उनके स्टाफ और गौत्तम नवलखा की टीम में कोई विशेष संचार चल रहा था? बिना तालमेल और व्यक्तिगत प्रभाव के यह टाइमिंग और विशेष ट्रीटमेंट संभव नहीं था।
2. गिरफ्तारी में भाषा का बैरियर कैसे अवरोध है ?
एक राष्ट्रीय स्तर के अपराधी जो प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र का दोषी है और कश्मीर से लेकर झारखंड तक और गुजरात महाराष्ट्र में भी हिंसा फैलाने के षड्यंत्र का दोषी है, ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी में कोई भाषा का बैरियर कैसे कारण बन सकता है? राज्य पुलिस को गिरफ्तारी से रोकने का यह ग्राउंड हास्यास्पद है। वह भी तब जब वह भाषा भी आठवी अनुसूची में वर्णित एक राष्ट्रीय भाषा है। न्यायालय स्वयं अनुवाद करवाकर इसका उपयोग कर सकता था।
3. हाउस अरेस्ट पहले संवैधानिक, अब असंवैधानिक कैसे ?
आज उन्ही न्यायधीश एस. मुरलीधर ने हाउस अरेस्ट को अवैधानिक घोषित कर दिया। फिर 29 अगस्त को अहले सुबह 6 बजे हाउस अरेस्ट देते समय क्या उनको हाउस अरेस्ट की अवैधानिकता का ज्ञान नहीं था?
4. आरेस्टिंग मेमो पर सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध क्यो?
हरीश साल्वे में सुप्रीम कोर्ट में बहस करते हुए कहा था कि “इस केस में गिरफ्तारी से पूर्व कोई अरेस्टिंग मेमो दिखाने की आवश्यक्ता नहीं थी क्योंकि यह वॉर अगेंस्ट नेशन का केस था”। इसको सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और अन्य जजों ने माना भी था। फिर मुरलीधर का यह जजमेंट सुप्रीम कोर्ट की सहमति के विरुद्ध कैसे चला गया?
जस्टिस एस. मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन, गौतम नवलखा की बहुत गहरी दोस्ती हैं
उपरोक्त प्रश्न, जस्टिस मुरलीधर का कोर्ट में दिया गया स्टेटमेंट और आदेश कानून सम्मत कम और परिवार सम्मत अधिक दिखाई दे रहा है। यह सारा वृतांत स्पष्ट संकेत कर रहा है कि गौतम नवलखा का जस्टिस डॉ एस मुरलीधर से बहुत निकट पारिवारिक संबंध है। कई श्रोतों से यह स्पष्ट हो रहा है कि जस्टिस एस मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन गौतम नवलखा की बहुत क्लोज फ्रेंड हैं। यद्यपी जस्टिस मुरलीधर और उषा रामनाथन पब्लिक फोरम पर अपने दाम्पत्य संबंधों को छुपाते हैं, फिर भी सत्य छुपता नहीं है। विशेषकर दाम्पत्य संबंधों को छुपा पाना बहुत कठिन होता है।
उषा रामनाथन माओवादी संगठन “एमनेस्टी इंडिया” की सलाहकार हैं। साथ ही माओवादी न्यूज़ मीडिया “द वायर” के लिए नियमित लेखन भी करती हैं। कुल मिलाकर उषा रामनाथन “एंटी मोदी कम्पेन” चलाने वाले गैंग की प्रमुख सदस्य हैं। लोटिका हाउस इनक़्वायरी मामले में डॉ नंदी ने कहा है कि “कई महत्वपूर्ण लोगों की उपस्थिति में उनको घर का कब्जा दिया गया है, उनमें उषा रामनाथन भी है जो जस्टिस एस मुरलीधर की पत्नी हैं।” यह समाचार 8 मई 2010 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ था। इस समाचार के साथ और भी अनेक साक्ष्य उपलब्ध हैं इनके दाम्पत्य जीवन को सिद्ध करने के लिए।
जस्टिस एस मुरलीधरन की पत्नि उषा रामनाथन और गौतम नवलखा एक साथ |
उषा रामनाथन की गौतम नवलखा से बहुत गहरी दोस्ती है। उषा रामनाथन और गौतम नवलखा कई विषयों पर लंबे समय से साथ काम करते रहे हैं। विशेषकर मोदी विरोधी अभियान में भी दोनो साथ काम करते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की हत्या का प्लाट रचने के मामले में भी उषा रामनाथन गौतम नवलखा की को आईडियोलोग हैं। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के मध्य भी एक्टिविज्म साथ-साथ किया उषा रामनाथन, गौतम नवलखा और कविता कृष्णन ने। हिंदुस्तान टाइम्स में 13 नवंबर 2014 को छपे रिपोर्ट के अनुसार “भोपाल गैस पीड़ितों के भूख हड़ताल को सपोर्ट करने दिल्ली की कई नामी हस्तियाँ पहुँची। उनके नाम हैं- पूर्व जज राजेन्द्र सच्चर, सीपीआई के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव डी राजा, फोटोग्राफर रघु राय, कानूनी एक्टिविस्ट उषा रामनाथन, स्तंभकार प्रफुल्ल बिदवई, प्रोग्रेसिव वीमेन एसोशिएशन की सचिव कविता कृष्णन और माओवादी मानवाधिकार एक्टिविस्ट गौतम नवलखा।” इससे भी सिद्ध होता है गौतम और उषा की निकटता।
Programme in JNU against AFSPA with Usha Ramnath an and Gautam Navlakha |
जेएनयू में 13 मार्च 2010 को “केसी ओपन एयर थिएटर” में संध्या 5:30 बजे से “वॉइस ऑफ रेजिस्टेंस अगेंस्ट द अफ्सपा” नामक कार्यक्रम में चार लोगों के भाषण हुए थे। उन चारों के नाम हैं- एचएस शिवप्रसाद, कमल मित्र चेनॉय, गौत्तम नवलखा एवं उषा रामनाथन। ऐसे अन्य अनेक सबूत हैं जो यह स्पष्ट करते हैं जस्टिस इस मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन गौतम नवलखा की बहुत क्लोज फ्रेंड हैं।
सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि “अक्यूजड के साथ जज या उसकी पत्नी का कोई संबंध हो तो जज को वह केस हैंडल नहीं करना चाहिए। इस जजमेंट के आलोक में जस्टिस एस मुरलीधर ने न्यायालय को धोखा दिया है।”
जस्टिस मुरलीधर का पीएम की हत्या के षड्यंत्रकारियों को बचाने का प्रयत्न यह सिद्ध करता है कि जस्टिस मुरलीधर भी प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र के राजदार और साँझीदार हैं। कर्तव्य पालन में प्रमाणिकता बरतते तो स्वयं ही गौतम नवलखा से उनके और उनकी पत्नी की निकटता को घोषित करते। और इस केस से स्वयं को अलग कर लेते और न्याय का मार्ग प्रशस्त करते। किन्तु न्यायाधीश की अंतरात्मा शुद्ध न होने से वो न्याय के साथ खेलते रहे, आतंकी व अपराधी को बचाते रहे। तथा अपने संबंधों को गौण रखकर इस विषय पर मौन साधते रहे।
~मुरारी शरण शुक्ल।
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