फारस के पारसी! जिन्हें अपने देश से भागना पड़ा!

‘किस्सा-ए-संजान’ जोरास्ट्रियन का सबसे पुराना लिखित इतिहास है। जिसमें बताया गया है कि इस्लामी शासन के तहत फारस में पारसी समुदाय को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
7वीं शताब्दी के इस्लामी आक्रमण ने पारसियों को अपनी धरती से भागने पर मजबूर कर दिया। मुस्लिम शासकों ने ऐसी नीतियां लागू कीं, जिसने पारसियों को हाशिए पर डाल दिया। इसमें पारसियों पर जाजिया कर टैक्स और धार्मिक प्रतिबंध शामिल थे।

फारस में पारसी

      जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है। इसकी स्थापना पैगंबर ज़राथुस्ट्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी। एक हजार सालों तक जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा। 600 BCE से 650 CE तक इस ईरान का यह आधिकारिक धर्म रहा, लेकिन आज की तारीख में पारसी धर्म दुनिया का सबसे छोटा धर्म है। सबसे दुखद यह है कि पारसी अपने ही देश में अल्पसंख्यक और उपेक्षित हो गए हैं।

पर्शिया का प्राचीन नक्शा

   पारसी या जोरास्ट्रियन का नाम इसके संस्थापक जरथुस्ट्र के नाम पर रखा गया है। 1800 से 1000 ईसा पूर्व के बीच में जुराद्रथ ने धार्मिक उपदेश दिए। पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्ट्र ने ईश्वरीय गुण वाले इंसान अहुरमज्दा की बात की। कुछ ही समय में ईसाई और इस्लाम में भी ऐसी अवधारणाएं शामिल कर ली गईं। पारसी धर्म की यह अवधारणा भी दूसरे धर्मों ने आत्मसात कर ली कि हर आत्मा को मृत्यु के बाद न्याय का सामना करना पड़ता है। स्वर्ग, नरक में जाने से पहले हर आत्मा को न्याय के दिन का सामना करना पड़ता है। 

‘किस्सा-ए-संजान’ जोरास्ट्रियन का सबसे पुराना लिखित इतिहास है। जिसमें बताया गया है कि इस्लामी शासन के तहत फारस में पारसी समुदाय को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

पारसी अपने देश से भागकर भारत आये

   “अगर हम इस देश को छोड़ दें तो अच्छा होगा। हमें इस देश से तुरंत बाहर चले जाना चाहिए नहीं तो हम सभी एक जाल में फंस जाएंगे और हमारी सारी बुद्धि बेकार चली जाएगी। …हमारा काम बर्बाद हो जाएगा। इसलिए, हमारे लिए बेहतर होगा कि हम इन शैतानों और बदमाशों से बचकर हिंदुस्तान की ओर भाग जाएं। हम अपनी जान और धर्म बचाने के लिए भारत की तरफ भाग जाए…!”- पारसियों की ऐतिहासिक किताब “किस्सा- ए- संजान” में कुछ पारसियों के ईरान से भागने का जिक्र कुछ इस तरह से किया गया है।

   करीब 1,200 साल पहले, पारसी लोगों का एक समूह जहाज से भारत की यात्रा पर निकला था क्योंकि उनकी मातृभूमि फारस (आधुनिक ईरान) पर इस्लामी सेनाओं ने कब्जा कर लिया था। वे गुजरात के तट पर संजन नामक स्थान पर उतरे, जहां उन्हें हिंदू राजा ने शरण दी थी। 

   यहूदियों की तरह, हिंदुओं ने पारसियों को भी शरण दी और यहां की धरती पर रहने की जगह दी। पहले इन्हें जोरास्ट्रियन के नाम से जाना जाता था, जो बाद में चलकर पारसी कहलाए। पारसी भारत आकर यहां के समाज में 'दूध में चीनी' की तरह घुलमिल गए।

इस्लामिक आक्रमणकारियों से भागकर भारत आए पारसी

   हालांकि, 7वीं शताब्दी के इस्लामी आक्रमण ने पारसियों को अपनी धरती से भागने पर मजबूर कर दिया। नए मुस्लिम शासकों ने ऐसी नीतियां लागू कीं, जिसने पारसियों को हाशिए पर डाल दिया। इसमें पारसियों पर जजिया कर लगाना और धार्मिक प्रतिबंध शामिल थे।

‘किस्सा-ए-संजान’ जोरास्ट्रियन का सबसे पुराना लिखित इतिहास है। जिसमें बताया गया है कि इस्लामी शासन के तहत फारस में पारसी समुदाय को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

   ‘किस्सा-ए-संजान’ जोरास्ट्रियन का सबसे पुराना लिखित इतिहास है। जिसमें बताया गया है कि इस्लामी शासन के तहत फारस में पारसी समुदाय को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किस्सा-ए-संजान को 16वीं शताब्दी में गुजराती शहर नवसारी में बहमन के कोबाद संजाना नाम के एक पारसी पुजारी ने लिखा था। इसमें यह बताया गया है कि पारसी भारत कैसे पहुंचे थे।

   इसकी ऐतिहासिक सटीकता पर सवाल खड़े किए जाते हैं, बावजूद इसके, किस्सा-ए-संजान भारत में पारसी समुदाय के प्रारंभिक इतिहास को समझने के लिए एक जरूरी नैरेटिव बनी हुई है।

   किस्सा-ए-संजान के अनुसार, 8वीं शताब्दी में, पारसी लोगों का एक समूह गुजरात के तट पर संजान नामक स्थान पर उतरा। यहां समुदाय का स्वागत स्थानीय हिंदू राजा जदी राणा ने की। किस्सा-ए-संजान के अंग्रेजी अनुवाद में लिखा है, 'उस क्षेत्र में एक परोपकारी राजा था, जिसने परोपकार के लिए अपना हृदय खोल दिया था। उसका नाम जदी राणा था; वह उदार और बुद्धिमान था।'

बुद्धिमान पारसी पुजारी ने हिंदू राजा को किया राजी

   एक बुद्धिमान जरथुष्ट्र पुजारी उपहार लेकर राजा के पास गया और उसकी भूमि में शरण मांगी। किताब में लिखा गया है, “हे राजाओं के राजा, हमें इस नगर में स्थान दीजिए: हम अजनबी हैं जो सुरक्षा की तलाश में आपके नगर में आए हैं। हम यहां केवल अपने धर्म के लिए आए हैं।”

   राजा शुरू में उन्हें अपनी जमीन पर बसने की अनुमति देने में हिचकिचा रहे थे। बढ़ती आबादी और स्थानीय संसाधनों पर पड़ रहे दबाव के बारे में अपनी चिंता जताने के लिए जदी राणा ने जोरास्ट्रियन लोगों को दूध से भरा एक पूरा गिलास भेजा। राजा पारसियों को यह संदेश देना चाहते थे कि उनका राज्य पहले से ही भरा हुआ और अब और अधिक लोगों के रहने की जगह नहीं है।

पारसियों का भारत मे आगमन

   पारसी पुजारी ने बुद्धि और कूटनीति का परिचय देते हुए, एक बूंद चीनी को दूध में मिला दिया। इससे एक बूंद भी दूध नहीं गिरा और पुजारी ने गिलास राजा को लौटा दिया। यह इशारा इस बात का प्रतीक था कि पारसी स्थानीय समुदाय में घुलमिल जाएंगे और यहां कोई मुश्किल खड़ी नहीं करेंगे। संदेश साफ था: वे स्थानीय संस्कृति को समृद्ध करेंगे, बिना उस पर हावी हुए।

   पुजारी की बुद्धि और विनम्रता से प्रभावित होकर राजा जदी राणा ने उन्हें अपने राज्य में बसने की अनुमति दे दी। उन्होंने कुछ शर्तें भी रखीं: पारसियों को स्थानीय भाषा और वेशभूषा अपनाना होगा और हथियार त्यागना होगा। 

    जोरास्ट्रियन राजा की शर्तों से सहमत हो गए और गुजरात में बस गए। समय के साथ, स्थानीय आबादी उन्हें पारसी कहने लगी, जिसका शाब्दिक अर्थ है "फारस के लोग"। 

बचे हुए पारसियों के साथ 

   ईरान जहां कभी पारसी धर्म ने जन्म लिया था, अब उसी देश में उनके धर्म के तौर-तरीके कब्र में दफन होने के कगार पर हैं। पारसी अंतिम संस्कार के दौरान जुलूस निकालते हैं, लेकिन उनकी शांति इस्लामिक विस्फोट और गोलीबारी की आवाजों से भंग हो जाती है। उनके इस धार्मिक क्रियाकलाप के रास्ते में इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स का अभ्यास आड़े आता है। पारसियों के धार्मिक क्रियाकलाप के खातिर इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी के गार्ड्स अपनी ट्रेनिंग नहीं रोकते हैं। पारसी धर्म में 24 घंटे के अंदर शव का अंतिम संस्कार करने की परंपरा है, लेकिन इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड ने उनका रास्ता अवरुद्ध कर दिया है। इस्लामिक राज्य में धार्मिक आजादी की बलि चढ़ने की ओर यह केवल एक इशारा भर है। 

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