स्वामी अग्निवेश और 'नोबेल' कैलाश सत्यार्थी |
जब NGO में आए ‘वेटिकन फंड’ को हड़पने के लिए एक-दूसरे से लड़ पड़े थे स्वामी अग्निवेश और ‘नोबेल’ कैलाश सत्यार्थी!
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स्वामी अग्निवेश की 17 जुलाई 2018 को झारखंड में हुई पिटाई को देखते हुए वरिष्ठ पत्रकार मधु किश्वर ने अग्निवेश और कैलाश सत्यार्थी को साथ जोड़कर एक ट्वीट किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि “कैलाश सत्यार्थी क्रिश्चनिटी समूहों के साथ काफी करीब रहकर काम करते रहे हैं। यही वजह रही कि वे अपने पूर्व सहयोगी स्वामी अग्निवेश द्वारा भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामलों में केस दर्ज कराने के बावजूद नोबेल पुरस्कार मैनेज कर पाने में कामयाब रहे!” कैलाश सत्यार्थी पर ट्रस्ट कब्जाने का आरोप है, तो अग्निवेश पर दिल्ली में बंगला और आर्य समाज की संपत्ति हथियाने का आरोप!
Satyarthi works very closely with evangelical groups. That is how he managed the Nobel prize despite ongoing fraud and cheating cases against him by his former patron & soul mate Agnivesh https://t.co/x4DAK76hEC— MadhuPurnima Kishwar (@madhukishwar) July 18, 2018
ऐसा बहुत कम बार देखने को मिलता है कि पुरस्कार विजेता के कारण पुरस्कार की साख पर बट्टा लग गया हो, लेकिन कैलाश सत्यार्थी और नोबेल पुरस्कार के साथ ऐसा ही हुआ जान पड़ता है! सत्यार्थी का सम्मान तो जरूर बढ़ा लेकिन नोबेल प्राइज की साख कम हो गई। कैलाश सत्यार्थी को जब नोबेल प्राइज मिला तो खुशी से ज्यादा आश्चर्य हुआ कि आखिर उस व्यक्ति को कैसे नोबल मिल सकता है?, जिस पर गरीबों का हिस्सा मारने का आरोप उसके अपने सहयोगी ने लगाया हो और मामला अदालत में लंबित हो? मधु किश्वर जैसी पत्रकार ने आरोप लगाया है कि कैलाश सत्यार्थी को अपने काम के लिए नहीं बल्कि ईसाई संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है।
स्वामी अग्निवेश और कैलाश सत्यार्थी दोनों के चरित्र पर मुकदमे का दाग है!
भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले में दोनों एक-दूसरे से केस भी लड़ रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी और स्वामी अग्निवेश में एक समानता और है, और वह है क्रिश्चनिटी समूहों के साथ मिलकर करीब से काम करना। अग्निवेश जहां ‘बंधुआ मुक्ति’ आंदोलन से जुड़े रहे हैं वहीं कैलाश सत्यार्थी ‘बचपन बचाओ’ आंदोलन से। एक समय दोनों मिलकर काम भी किया करते थे। लेकिन एनजीओ में आए विदेशी फंड ने दोनों के मध्य विद्वेष पैदा किया। लालच ने लड़ाई कराई और दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे। दोनों का मामला कोर्ट में चल रहा है। सत्यार्थी पर ट्रस्ट कब्जाने का आरोप है, तो अग्निवेश पर दिल्ली में बंगला और आर्य समाज की संपत्ति हथियाने का आरोप! लेकिन दोनों के अपने अपने दावे हैं और अपनी अपनी महानता का ढिंढोरा है, जिसे उनके अनुयायी पीटते रहते हैं।
‘मुक्ति प्रतिष्ठान ट्रस्ट’ में कभी साथ काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी और स्वामी अग्निवेश एनजीओ में फंडिंग को लेकर आपसी विवाद में उलझे हैं। 1997 में ट्रस्ट के सहयोगियों ने सत्यार्थी के खिलाफ केस दायर करते हुए उन पर गबन करने का आरोप लगाया था। इस मामले में ताज सिंह नाम के एक शख्स ने उनके खिलाफ केस दर्ज कराया था। अपने ऊपर लगे गबन के आरोप के जवाब में सत्यार्थी ने स्वामी अग्निवेश के खिलाफ एनजीओ की संपत्तियां हड़पने का आरोप लगा दिया। सत्यार्थी ने कहा कि ताज सिंह और स्वामी अग्निवेश का आर्य सभा से संबंध है। सत्यार्थी ने अग्निवेश पर ट्रस्ट के फंड के दुरुपयोग का आरोप लगा दिया।
If he didn't work with evangelists are they fools to give him Nobel Prize https://t.co/R24kk26MTR— S Gurumurthy (@sgurumurthy) July 18, 2018
स्वामी अग्निवेश पर दिल्ली स्थित जंतर-मंतर के बंगला नंबर-7 पर अवैध कब्जा करने का भी आरोप रहा है। इसके अलावा अरुणा आसफ रोड स्थित करोड़ों की आर्य समाज की संपत्ति हड़पने के आरोप के अलावा क्रिश्चयन मिशनरीज के इशारे पर मासूम आदिवासियों को भड़काने का भी आरोप है। वैसे भी नक्सलियों का साथ देने के कारण ही उन्हें अपनी प्रोफेसरी छोड़कर कलकत्ता से जान बचाकर भागना पड़ा था। यह घटना तब की है जब पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सत्ता में थी और उसके तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ने नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रखा था। वहीं से भागने के बाद आंध्र प्रदेश के मूल निवासी श्याम राव ने छत्तीसगढ़ में शरण ली थी, और स्वामी अग्निवेश बनकर तरह-तरह के गोरखंधे को अंजाम देने में जुट गये!
इस संबंध में इतिहासकार रामेश्वर मिश्र पंकज लिखते हैं, “अग्निवेश जी के उत्साही समर्थकों को मैं थोड़ी बातें याद दिला देना चाहता हूं। उन्होंने और कैलाश सत्यार्थी ने मिलकर जो ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ बनाया था, उस मोर्चे को कालीन के उत्पादक अनेक देशों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भांति-भांति का समर्थन और धन प्राप्त होता था ताकि भारत का कालीन उद्योग ठप पड़ जाए। यह बात मैं 1989-90 में उठा चुका हूँ। जनसत्ता के कई अंकों में मेरी भदोही क्षेत्र के कालीन उद्योग औऱ बाल श्रम की स्थिति पर रिपोर्ट छपी थी।”
प्रस्तुति- अवधेश मिश्रा (इंडिया स्पीक्स डेली )