31 अक्टूबर 1984! भारत का इतिहास बदल देने वाली एक तारीख है। इस दिन भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई थी। लेकिन तीन दशक गुजर जाने के बाद भी इंदिरा गांधी की हत्या का असली सच कभी देश के सामने नहीं आया है। यह तो सबको पता है कि उनकी हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध व्यक्त की गई थी। और सभी लोग यह बात भी जानते हैं कि उनके बॉडीगार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उन्हें गोली मारी थी। लेकिन यह इतनी सी कहानी नहीं है। इस कहानी के कई किरदार है। और हर किरदार से कई राज जुड़े है।
आपको तथ्यों व तर्कों और सबूतों के साथ इंदिरा गांधी हत्याकांड का पूरा सच पढ़ेंगे! आज आपको पता चलेगा कि-
- इंदिरा गांधी हत्याकांड की जांच के लिए बने ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट क्यों दबा दी गई?
- आज आप जानेंगे कि इंदिरा गांधी हत्याकांड की जांच करने वाली एसआईटी की रिपोर्ट को क्यों छुपाने की कोशिश हुई?
- आज ही ये राज खुलेगा है कि आखिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या का पूरा सच कभी देश को क्यों नहीं बताया?
- आज आपको पता चलेगा कि वह कौन से विदेशी शक्ति थी जिस ने इंदिरा गांधी की जान ली?
- आज मैं आपके सामने अमेरिकी संसद की वह रिपोर्ट भी पेश करूंगा, जो इस हत्याकांड के कई राज खोल सकती है!
- आज मैं आपको बताऊंगा इंदिरा गांधी के उस बेहद करीबी का नाम! जिसकी तरफ में शक की सुई घूमी थी!
- आज मैं आपको बताऊंगा राहुल गांधी का वो दर्द! जो उनकी दादी की हत्या से जुड़ा हुआ है! 14 साल के राहुल गांधी अगर उस समय एक राज सबको बता देते तो शायद इंदिरा गांधी की जान बच सकती थी!
तो बिना देर किए, खोलते हैं इंदिरा गांधी हत्याकांड कि वह फाइल, जिसे हमेशा इस देश से छुपाया गया।
इंदिरा गांधी की हत्या
अपनी हत्या से एक दिन पहले इंदिरा गांधी उड़ीसा में थी। जहां उन्होंने अपने अंतिम और ऐतिहासिक भाषण में कही था कि “जब मेरी जान जाएगी तो मेरे में एक-एक कतरा भारत का निर्माण करेगा।” लेकिन कोई नहीं जानता था कि इंदिरा गांधी ने जो कहा है, वो अगले कुछ ही घंटों में सच साबित हो जाएगा। इंदिरा गांधी उसी शाम उड़ीसा से दिल्ली पहुंच चुकी थी।
31 अक्टूबर 1984 की सुबह 8:30 मशहूर ब्रिटिश एक्टर पीटर उस्तीनोव के साथ उनका इंटरव्यू था। यह इंटरव्यू उनके घर 1-सफदरजंग रोड पर ही होना था। इंदिरा गांधी पूरी तरह से तैयार होकर अपने घर से बाहर निकली। उस वक्त उनके प्राइवेट सेक्रेट्री आरके धवन, कॉन्सटेबल नारायण सिंह और उनके निजी सहायक नाथूराम उनके साथ थे। इंदिरा गांधी के रास्ते में दिल्ली पुलिस का सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह खड़ा हुआ था, जो कई सालों से इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात था। बेअंत सिंह ने पहले तो इंदिरा गांधी का अभिवादन किया और अपनी सर्विस रिवॉल्वर निकालकर एक के बाद एक पांच गोलियां दागी। बेअंत फायरिंग कर ही रहा था, तब ठीक उसी समय सतवंत सिंह नाम का दूसरा बॉडीगार्ड आया और उसने अपनी स्टेनगन का मुंह इंदिरा गांधी पर खोल दिया। इंदिरा गांधी को पूरी तीस गोलियां मारी गई थी। गोलियों की आवाज सुनकर प्रधानमंत्री निवास में तैनात आईटीबीपी के जवान मौके पर पहुंचे, तब तक बेअंत और सतवंत ने अपने हथियार ज़मीन पर रख दिए थे।
इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत सचिव आर के धवन |
उधर खून से लथपथ इंदिरा गांधी की सांसें तब भी चल रही थी। उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत थी। लेकिन हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री आवास में तैनात एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने के लिए गया हुआ था। इसलिए इंदिरा गांधी को एक सफेद एंबेसडर कार में एम्स ले जाया गया। उनके साथ उनकी बहू सोनिया गांधी, आरके धवन और कांग्रेस नेता माखन लाल फोतेदार भी थे।
बेअंत सिंह और सतवंत सिंह के आत्मसमर्पण के बाद गोली क्यो मारी गई?
उधर प्रधानमंत्री आवास में एक बार फिर गोलियों की आवाज गूंजने लगे। इस बार गोलियां चलाने वाले थे आईटीबीपी के जवान और गोलियां खाने वाले थे इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह और सतवंत सिंह। दरअसल इन दोनों ने जब आत्मसमर्पण कर दिया तो इन्हें प्रधानमंत्री आवास के अंदर ही बने आईटीबीपी के एक छोटे से गार्ड रूम में रखा गया था। आईटीबीपी के जवानों का कहना था कि जब बेअंत सिंह ने कमरे के अंदर हथियार छीनने की कोशिश की तो उन्हें मजबूरी में गोलियां चलानी पड़ीं। इस गोलीबारी में बेअंत सिंह तत्काल मारा गया। वहीं सतवंत सिंह को पूरी 12 गोलियां लगी, फिर भी वह बच गया।
बुरी तरह से घायल सतवंत सिंह से जब पूछताछ की गई तो उसने अस्पताल में बेहद चौंकाने वाला बयान दिया। उस पर कहा कि सिक्योरिटी स्टाफ हमें आईटीबीपी के गार्ड रूम में ले गया, जहां हमें कुर्सियों पर बैठा दिया गया। आईटीबीपी के जवानों ने हम पर अपनी स्टेनगन तान कर पोजीशन ले रखी थी। कुछ देर बाद उन्होंने हम पर गोलियों की बौछार शुरु कर दिए।
सतवंत सिंह ने जो बयान दिया था, वह कई सवाल खड़े करता है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बेअंत सिंह और सतवंत सिंह निहत्थे थे। अगर ऐसे में जयंत सिंह ने हथियार छीनने की भी कोशिश की थी तो उसे आसानी से आईटीबीपी के जवान काबू में कर सकते थे। क्योंकि उस समय काफी संख्या में आईटीबीपी के जवान मौजूद थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को इसलिए गोली मारी गई क्योंकि वह कई राज और कई नाम उगल सकते थे?
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बेअंत सिंह ने इस हत्याकांड को लीड किया था। 21 साल की कच्ची उम्र का सतवंत सिंह दरअसल बेअंत सिंह का सिर्फ एक मोहरा भर था। और उसी के बहकावे पर वह षड्यंत्र में शामिल हुआ था। इस हत्याकांड के बारे में बेअंत सिंह को सतवंत सिंह से कहीं अधिक जानकारी थी। लेकिन आईटीबीपी की भूल की वजह से बेअंत सिंह की जान चली गई। और कई राज उसकी मौत के साथ ही दफन हो गए।
दिल्ली पुलिस के वर्दी में 3 व्यक्ति कौन थे?
उधर घायल हो जाने के बाद सतवंत सिंह को कड़ी सुरक्षा के बीच दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती करवाया गया। उस दौर में 6 नवंबर 1984 को ब्रिटिश अखबार संडे टाइम्स ने सतवंत सिंह को लेकर एक सनसनीखेज खबर छापी। इस ख़बर में लिखा था कि-
“1 नवंबर की रात डेढ़ बजे जब सतवंत सिंह बेहोशी की अवस्था में राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती था, तो वहां दिल्ली पुलिस की वर्दी में तीन सिख आये थे। उनका कहना था कि वह सतवंत सिंह से पूछताछ करना चाहते हैं। जब सतवंत सिंह की सुरक्षा में तैनात अधिकारी ने उन्हें अंदर जाने की इजाजत नहीं दी तो उन तीनों ने वहां जमकर बहस की। इसके बाद तीनों आराम से वहां से चले गए। किसी ने भी उन लोगों से पूछताछ नहीं की।”
-Sunday Times, London (6 Nov. 1984)
सवाल उठता है कि क्या पीएम आवास में जिंदा बच जाने के बाद सतवंत सिंह को अस्पताल में भी मारने का प्लान बनाया गया था या फिर यह लोग उसे छुड़ाने के लिए वहां पहुंचे थे?
आर.के. धवन को गोली नही लगनी चाहिए- बेअंत सिंह
उधर बाद में जब सतवंत सिंह से पूछताछ की गई तो उसने जो खुलासा किया! उसने देश के पूरे सुरक्षा तंत्र को हिलाकर रख दिया उस पर इस साज़िश में एक ऐसे शख्स का नाम लिया जो इंदिरा गांधी का सबसे भरोसेमंद आदमी था। इंदिरा गांधी हत्याकांड की जांच के लिए बने जस्टिस ठक्कर कमीशन के सामने सतवंत सिंह ने जो कहा था, उसे भारत की नंबर वन मैगजीन इंडिया टुडे ने अपने 31 जुलाई 1986 के अंक में छपा था। इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट को तैयार किया था मशहूर पत्रकार शेखर गुप्ता ने! जो उस समय देश के जाने-माने खोजी रिपोर्टर थे। शेखर गुप्ता आज भी एक बहुत बड़ा नाम है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक-
“सतवंत सिंह ने कहा था कि इंदिरा गांधी जब आने वाली थी तो बेअंत सिंह ने मुझसे कहा था कि वह पहले फायर करेगा और उसके बाद मुझे पर करना है। बेअंत सिंह ने मुझे साफ-साफ कहा था कि ध्यान रखना आरके धवन को गोली नहीं लगना चाहिए, उस पर हमारी बहुत मदद की है।”
अगर इंडिया टुडे और शेखर गुप्ता पर भरोसा किया जाए तो सतवंत के मुताबिक देवेंद्र सिंह ने उसे कहा था कि इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी आर के धवन को गोली नहीं लगना चाहिए। आपको यहां यह बताना बहुत जरूरी है कि आरके धवन 60 के दशक से इंदिरा गांधी के करीबी थे। उस दौर में बेहद ताकतवर माने जाते थे। उनकी इच्छा के बिना प्रधानमंत्री दफ्तर में एक पत्ता भी नहीं हिलता था। बात बचाकर धवन नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने।
आर.के. धवन ने इंदिरा गांधी के इंटरव्यू के टाइम क्यो बदला था?
इंदिरा गांधी हत्याकांड की जांच के लिए बने जस्टिस ठक्कर कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में आरके धवन पर कई सवाल उठाए थे। रिपोर्ट के 314 पेजों में से 213 पेजों पर आरके धवन का जिक्र था। ठक्कर आयोग को आरके धवन पर सबसे बड़ा शंका इस बात पर था, क्योंकि धवन ने ही इंदिरा गांधी के आखिरी इंटरव्यू के टाइम को बदला था। उस समय इंडिया टुडे और शेखर गुप्ता के दावे के मुताबिक-
“इंदिरा गांधी ने सुबह साढे आठ बजे इंटरव्यू का टाइम तय किया था। लेकिन डायरी में यह टाइम मिटाकर उसके ऊपर टाइम 08:45 लिख दिया गया था।
ठक्कर कमीशन ने इंफ्रारेड टेक्नोलॉजी से डायरी की जांच करवाने के बाद यह पुष्टि की है। मुलाकातों की प्रिंटेड लिस्ट में इंटरव्यू के लिए टाइम 9:00 का लिखा हुआ था। इंटरव्यू लेने वाले पीटर उस्तीनोव ने भी पूछताछ में बताया है कि 31 अक्टूबर की सुबह इंदिरा गांधी के दफ्तर से एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन किया और यह कहा कि वह सुबह साढे आठ के बजाय नौ बजे प्रधानमंत्री के आवास पहुंचे।”
-इंडिया टुडे, रिपोर्टर- शेखर गुप्ता (31 जुलाई 1986)
ठक्कर कमीशन का यह मानना था कि अगर इंदिरा गांधी का इंटरव्यू जल्द होता और वह सुबह 8:00 ही घर से निकल जाती हैं तो बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को एक साथ, एक जगह पर आने का मौका नहीं मिलता। दरअसल यह बताना बहुत जरूरी है कि सतवंत सिंह की ड्यूटी उस जगह पर नहीं थी, जहां इंदिरा गांधी की हत्या हुई। दरअसल उसमें अपने सीनियर के सामने यह बहाना बनाया था कि उसका पेट खराब है और से बार-बार टॉयलेट जाना पड़ रहा है। इसलिए उसे ऐसी जगह तैनात कर दिया जाए जहां से टॉयलेट पास है। और इस तरह उस जगह तैनात हो गया। जहां पहले से ही बेअंत सिंह की ड्यूटी लगी थी। यानी ठीक वह जगह जहां से इंदिरा गांधी गुजरने वाली थी।
इंदिरा गांधी की सुरक्षा के साथ भयंकर खिलवाड़ क्यो?
यहां यह बताना भी जरूरी है कि सतवंत सिंह का ड्यूटी रिकार्ड बेहद खराब था। के.आर. मलकानी की किताब पॉलिटिकल मिस्ट्रीज के पेज नंबर 111 के मुताबिक-
“सतवंत सिंह ने प्रधानमंत्री आवास पर एक साल तक ड्यूटी की थी। इस दौरान उसे 35 बार अनुशासन तोड़ने की सजा मिली थी। उसके बॉस इंस्पेक्टर योगेश शर्मा ने 27 जुलाई 1984 को सतवंत सिंह और दूसरे 12 सुरक्षाकर्मियों को पीएम की सुरक्षा ड्यूटी के लिए अनफिट बताया था। लेकिन फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया।”
-पॉलिटिकल मिस्ट्रीज (के.आर. मलकानी) पेज- 111
इतना ही नहीं! सतवंत सिंह इंदिरा गांधी की हत्या करने से ठीक पहले, दो महीने की छुट्टी मनाकर लौटा था। इस दौरान वह ज्यादातर पंजाब के गुरदासपुर में रहा था, जो उन दिनों आतंकवाद का गढ़ माना जाता था। लेकिन इसके बाद भी सतवंत से बिना कोई पूछताछ किए, उसे फिर से इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात कर दिया गया। उधर सतवंत की तरह ही बेअंत सिंह का रिकॉर्ड भी बहुत खराब था। 1981 में दिल्ली पुलिस की नौकरी के दौरान उस पर कई गंभीर आरोप लगे थे। उसके ऊपर विभागीय जांच भी चल रही थी। फिर भी वह देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात था।
जाहिर है इंदिरा गांधी की सुरक्षा के साथ भयंकर खिलवाड़ किया जा रहा था। बेअंत सिंह की पहुंच का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वह गांधी के पोते राहुल गांधी के साथ भी अक्सर खेलता था। इंदिरा गांधी की हत्या के समय राहुल गांधी की उम्र महज 14 साल थी। बहुत बाद में जाकर 2013 में राहुल गांधी ने बेअंत सिंह के बारे में सनसनीखेज जानकारी दी थी। उन्होंने राजस्थान के चुरू में एक भाषण में कहा था कि-
“बेअंत सिंह मुझे बैडमिंटन खेलना सिखाया था। एक बार उसने मुझसे पूछा कि मेरी दादी इंदिरा गांधी कहां सोती हैं? और तब उनकी सुरक्षा में कौन होता है? एक बार बेअंत सिंह ने मुझसे कहा था कि अगर कोई बम से हमला कर दे, तो तुम नीचे जमीन पर लेट जाना। बाद में मुझे पता चला कि बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दीवाली के दिन मेरी दादी पर ग्रेनेड से हमला करने वाले थे।”
-राहुल गंधी का भाषण (वर्ष 2013)
दरअसल राहुल गांधी ने सही कहा था। इंदिरा गांधी की हत्या के सात दिन पहले यानी 24 अक्टूबर 1984 को बेअंत और सतवंत सिंह दिवाली की आतिशबाजी की आवाज के बीच इंदिरा गांधी पर बमों से हमला करके उनकी हत्या करना चाहते थे। लेकिन उनका इरादा कभी भी गांधी परिवार के बाकी सदस्यों को नुकसान पहुंचाने का नहीं था। तभी तो बेअंत सिंह ने 14 साल के राहुल गांधी को यह बताया था कि अगर कोई बम से हमला करें तो कैसे नीचे लेट जाना चाहिए और अपनी जान बचाना चाहिए। अफसोस राहुल गांधी तब इतने छोटे थे कि वह बेअंत सिंह की साजिश को नहीं समझ पाया! नहीं महसूस कर पाए। राहुल गांधी अगर यह बात उस समय किसी को बता देते तो शायद उनकी दादी इंदिरा गांधी की जान बच सकती थी।
आरके धवन पर लगे आरोप का जबाब
ठक्कर कमीशन के सामने कुछ लोगों ने अपनी गवाही में कहा है कि बेअंत सिंह, आरके धवन का बेहद करीबी था। इसलिये कई सवाल उठाते हुए ठक्कर कमीशन ने आरके धवन को कटघरे में खड़ा किया था। कमीशन ने जो सवाल उठाए थे, वह कुछ इस तरह थे-
- “सिख होने के बाद भी बेअंत सिंह को इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड की ड्यूटी से हटाया क्यों नहीं गया?”
- “भीम सिंह की विधवा विमल कौर खालसा के मुताबिक बेअंत सिंह आरके धवन का करीबी था।
- “इंदिरा गांधी को गोली मारी गई तो आरके धवन उन्हें बचाने के लिए क्यों नहीं आए?”
ठक्कर आयोग आरके धवन पर कई गंभीर आरोप लगाए। लेकिन आरके धवन के पास भी अपने बचाव के जबरदस्त तर्क थे। अपनी सफाई में आरके धवन ने जो तर्क दिए, जो उनके पक्ष को बहुत मजबूत बनाते हैं। इंदिरा गांधी का इंटरव्यू टाइम बदलने से लेकर बेअंत सिंह तक धवन ने हर सवाल का बेहद तार्किक उत्तर दिया। उनका कहना था कि-
“इंदिरा गांधी जब भी दौरे से लौटी थी, तो अगले दिन सुबह के उनके सारे अपॉइंटमेंट देर से कर दिए जाते थे और इसीलिए उन्होंने उनके इस इंटरव्यू का समय बदला था। बेअंत सिंह को ड्यूटी से हटा दिया गया था। लेकिन इंदिरा गांधी के कहने पर ही उसे वापस डयूटी पर रखा गया। इंदिरा गांधी नहीं चाहती थी कि सिख होने की कारण उनके किसी बॉडीगार्ड को हटाया जाए। इंदिरा गांधी का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव ब्लड था, और यही ब्लड ग्रुप बेअंत सिंह का भी था। इसलिए किसी दुर्घटना के समय अगर इंदिरा गांधी को खून की जरूरत पड़ती है तो वह उनके ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति का होना जरूरी होता है। इसलिए बेअंत सिंह को इंदिरा गांधी के साथ रखा जाता था। उनका यह भी कहना था कि अगर वह इस साजिश में शामिल होते तो घटना के वक्त इंदिरा गांधी के इतने पास क्यों होते? हो सकता था कि वो गोलियां मुझे भी छलनी कर सकती थी। उस वक्त यह भी कहा था कि वह इंदिरा गांधी को अपनी मां के समान मानते थे और उनकी मौत के बाद खुद को तनाव महसूस कर रहे हैं।”
जीवन में कभी भी इंदिरा गांधी को धोखा देने का पाप नहीं कर सकते हैं। उनका कहना था। लेकिन उस दौर में कोई भी आरके धवन की दलीलों को नहीं सुन रहा था। कमीशन की जांच के दौरान ही उन्हें राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय से हटा दिया।
बड़ा सवाल उठता है कि-
- क्या आरके धवन को फंसाने के लिए कोई बड़ी साजिश रची जा रही थी?
- क्या जो उनके खिलाफ मैगज़ीनों और अखबारों में छप रहा था?
- क्या उसके पीछे किसी ताकतवर शख्स का हाथ था?
क्या आर.के. धवन को अरुण नेहरू फंसा रहे थे?
देश के वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की रिपोर्टिंग के बारे में तो मैंने आपको बता दिया है कि किस तरह से उन्होंने ठक्कर आयोग की गुप्त रिपोर्ट के आधार पर लेख लिखे थे। लेकिन अब मैं यहां देश के एक और बहुत बड़े पत्रकार रजत शर्मा के बारे में बताना चाहूंगा। ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट में जब आरके धवन का नाम सामने आ रहा था, तब वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ऑनलाइन मैगजीन के संपादक थे। तब उन्होंने अपनी मैगज़ीन के कवर स्टोरी के जरिए यह दावा किया था कि “आरके धवन को फंसाने के लिए अरुण नेहरू ने ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट तैयार करवाई है।” अरुण नेहरू रिश्ते में राजीव गांधी के भाई लगते थे। उनकी सरकार में मंत्री भी थे। उन्होंने सत्ता के गलियारों में अरुण नेहरू की तूती बोलती थी।
अरुण नेहरू |
वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने एक बार अपने ब्लॉग में दावा किया था कि-
“आर के धवन के जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी तब हुई, जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के मामले में उन्हें शक के घेरे में खड़ा कर दिया गया। उस जमाने में मैं और “ऑन लूकर” पत्रिका में संपादक था। आरके धवन को फंसाने के लिए जिस तरह से ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट तैयार की गई थी, उस पूरे खेल का मैंने पर्दाफाश किया था। उस समय आरके धवन ने मुझे कहा था कि जिन लोगों के खिलाफ आप लिख रहे हैं, वह बहुत ताकतवर लोग हैं और आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मैंने बिना डरे अरुण नेहरू के इस पूरे गेम को जग जाहिर किया, जो कि राजीव गांधी के शासन के दौरान काफी प्रभावशाली थे।”
-रजत शर्मा, एडिटर इन चीफ, इंडिया टीवी (9 अगस्त 2018)
राजीव गांधी को ठक्कर आयोग पर भरोसा क्यों नही था?
हालांकि बाद में ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट का बहुत बुरा हश्र हुआ। यह रिपोर्ट कभी पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं की गई। पहले तो करीब ढाई साल तक इसे पूरी तरह से दबा कर रखा गया। हालांकि अपनी सरकार के अंतिम दिनों में राजीव गांधी ने इस रिपोर्ट के आधे-अधूरे हिस्से को संसद में पेश कर दिया। जिस पर उस समय बहुत विवाद हुआ था। हालांकि बाद में एक SIT की रिपोर्ट के आधार पर आरके धवन के उपर लगे आरोपों को वापस ले लिया गया और धवन की वापस एंट्री हो गई। राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया और बाद में जाकर नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने।
साफ है कि जिससे राजीव गांधी ने आरके धवन को बेदाग माना था, उससे पता चलता है कि राजीव गांधी को भी ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि राजीव गांधी ने आखिर क्यों इंदिरा गांधी की हत्या की असलियत जानने की कोशिश क्यों नहीं की? या फिर ऐसा भी हो सकता है कि राजीव गांधी को सारी असलियत पता थी? लेकिन वो इसे देश से छुपा रहे थे!
राजीव गांधी जांच रिपोर्ट क्यों छुपा रहे थे?
राजीव गांधी की भूमिका पर केआर मलकानी अपनी इस किताब ‘पॉलिटिकल मिस्ट्रीज’ में कई सवाल उठाते हैं। मलकानी ने इंदिरा गांधी हत्याकांड कि एसआईटी जांच करने वाले आईपीएस अधिकारी एस आनंद राम के हवाले से अपनी किताब के पेज नंबर 113 पर लिखा है कि-
“एस आनंदराम ने राजीव गांधी से अपनी मुलाकात में नाखुशी जाहिर की। इस पर राजीव गांधी ने उनसे बोला कि आप एक किताब क्यों नहीं लिखते हैं, जिससे जनता को इस पूरे केस का पूरी सच्चाई पता चल सके। आनंद राम ने जब किताब लिखने का फैसला किया तो उन्हें एसआईटी रिपोर्ट के वह कागज और दस्तावेज नहीं दिए गए, जिसे खुद आनंदराम की देखरेख में तैयार किया गया था। आनंद राम ने खुद को अपमानित महसूस किया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था ‘आसिसनेशन ऑफ प्राइम मिनिस्टर’।”
-पॉलिटिकल मिस्ट्रीज (के.आर. मलकानी) पेज- 113
आखिर वो क्या वजह थी कि राजीव गांधी ने ‘इंदिरा गांधी हत्याकांड’ का पूरा सच देश के सामने नहीं आने दिया। इसकी दो वजहें हो सकती हैं। पहली तो यह कि शायद राजीव गांधी सिख समाज को नाराज नहीं करना चाहते थे और दूसरी महत्वपूर्ण वजह यह हो सकती है कि उन पर किसी भारी किस्म का विदेशी दबाव हो। वैसे इस विदेशी दबाव वाली बात में काफी दम नजर आता है। अब मैं जो आपको बताने वाला हूं कि आप बहुत ध्यान से पढ़िए!
इंदिरा के हत्यारे का अमेरिका कनेक्शन
दरअसल आज की ही तरह उस दौर में भी खालिस्तान आंदोलन अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन से चलाया जा रहा था। इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह ने भी हत्या के एक दिन पहले लंदन और कनाडा में फोन किए थे। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इंदिरा गांधी सोवियत संघ की बेहद करीबी मानी जाती थी। लिहाजा उन्हें अमेरिका बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। उस दौर में अफगानिस्तान में मुजाहिदीन सोवियत सेना से लड़ रहे थे, जिन्हें अमेरिका पाकिस्तान के जरिए मदद पहुंचा रहा था। यानी यह वह वक्त था जब अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती अपने सबसे अच्छे दौर में थी। और यह दोनों ही देश मिलकर पंजाब में खालिस्तान को हवा दे रहे थे।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के रिश्ते खालिस्तानी आतंकवादियों से हैं! ऐसी खबरें भी थी। खुद इंदिरा गांधी को भी इस बात का एहसास था। यही वजह है कि उन्होंने अपनी मौत से कुछ दिन पहले या कुछ महीने पहले दिल्ली में एक भाषण में कही थी कि “अमेरिका भारत सरकार को अस्थिर करने के लिए कोई चाल चल सकता है।” यही वजह है कि इंदिरा गांधी की हत्या के तत्काल बाद सोवियत संघ और अमेरिका के बीच मीडिया छिड़ गया था। सोवियत संघ पूरी दुनिया में यह आरोप लगा रहा था कि इंदिरा गांधी की हत्या के पीछे अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ है। मैंने खुद उस रिपोर्ट का अध्ययन किया है जो दिसंबर 1984 में अमेरिका की संसद को सौंपी गई थी। यह रिपोर्ट ऑनलाइन पड़ी हुई है, आप भी से देख सकते हैं।
इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर रूस और अमेरिका में तनाव क्यो था?
इस रिपोर्ट में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई मीडिया कवरेज का अध्ययन है। जिसमें सोवियत संघ की मीडिया भी शामिल है। और इसी रिपोर्ट के हवाले से मैं आपको बता रहा हूं कि इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर अमेरिका और सोवियत संघ में इतना तनाव हो गया था कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय को अपनी तरफ से सफाई तक देनी पड़ी थी।
कितनी हैरानी की बात है कि एक तरफ तो हमारे देश की सरकार इंदिरा गांधी हत्याकांड पर चुप थी और वहीं दूसरी तरफ वो सोवियत संघ इस मुद्दे पर अमेरिका से सीधे मोर्चा ले रहा था। फिर इसके बाद तेजी से हालात बदले। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 32 दिन बाद भोपाल में गैस कांड हुआ। जिसमें हजारों लोग मारे गए। उस वक्त भी अमेरिकी सरकार के दबाव में राजीव गांधी ने यूनियन कार्बाइड के सीईओ वॉरेन एंडरसन को रिहा कर दिया।
अगले साल यानी 1985 में राजीव गांधी ने अमेरिका का दौरा किया और उसके साथ ही भारत और अमेरिका के रिश्तों की एक नई शुरुआत हुई। लेकिन फिर भी देश को आज तक यह जवाब नहीं मिला है कि क्या इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश में कोई विदेशी शक्ति शामिल थी या नहीं।
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