दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा, बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे, जब उन्हें कृषि विज्ञान का ककहरा भी मालूम नहीं था। उससे भी हजारों वर्ष पूर्व ऋषि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए “कृषि पाराशर" नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे|
तीन खंडों में लिखा गया यह लघु ग्रंथ वृष्टि ज्ञान, मेघ का प्रकार, कृषि भूमि का विभाजन, कृषि में काम आने वाले यंत्रों का वर्गीकरण या आकार प्रकार, वर्षा जल के मापन की विधियां, हिंदी महीने पूस में वायु की गति व दिशा के आधार पर 12 महीनों की बारिश का अनुमान व मात्रा का प्रतिशत निकालने की विधि, बीजों का रक्षण, जल रक्षण की विधियां, कृषि में काम आने वाले वाहक पशुओं की देखभाल पोषण व उनके प्रबंधन के संबंध में अमूल्य जानकारी निर्देश दिया गया है।
ऋषि पाराशर ग्रंथ में लिखते हैं कि “जीवन का आधार कृषि है, कृषि का आधार वृष्टि अर्थात बारिश है। हर किसान को बारिश के विषय में जरूर जानना चाहिए।”
ऋषि पाराशर ने अपने ग्रंथ के द्वितीय खंड “वृष्टि खंड” में बादलों को 4 भागों में वर्गीकृत किया है।
बादलों का यह वर्गीकरण उनके आकार/ पैटर्न के आधार पर किया गया है। ज्ञात हो कि आधुनिक मौसम विज्ञानी भी कंप्यूटर मॉडल एल्गोरिदम के तहत इसी कार्य को आज कर रहे हैं।
▪️आवरत मेघ
▪️सम्रत मेघ
▪️पुष्कर मेघ
▪️द्रोण मेघ
पहले वाला मेघ एक निश्चित स्थान में बारिश करता है, दूसरा मेघ एक समान बारिश करता है, तीसरे मेघ से बहुत कम वर्षा होती है और चौथे मेघ से उत्तम वर्षा होती है।
ऋषि पाराशर का मत है कि 2-3 दिवस पूर्व बारिश का पूर्वानुमान कोई लाभकारी नहीं होता किसान के लिए।
पूरे वर्ष के लिए बारिश की मात्रा ज्ञात करने के लिए एक विधि विकसित की! इसके तहत उन्होंने वर्णन किया है कि पूस महीने के 30 दिन को 60 घंटे के 12 भागो में विभक्त कर, प्रत्येक दिन के सुबह शाम के 1:00 बजे, 1 घंटे में वायु की गति व दिशा के आधार पर पूरे वर्ष के लिए वर्षा की मात्रा, वह किन-किन तिथियों में वर्षा होगी, उसका विश्लेषण किया जा सकता है।
मित्रों आपको जानकर अपार हर्ष होगा कि वर्ष 1966 में काशी के राजा स्वर्गीय डॉक्टर विभूति नारायण सिंह के निर्देश पर एक प्रयोग किया गया था! जिसमें ऋषि पाराशर कि इस विधि को एकदम सटीक पाया गया था।
अब बात हम ऋषि पाराशर के ग्रंथ की कृषि खंड की करते हैं! ऋषि पाराशर ने कृषि भूमि को तीन भागों में विभाजित किया अनूप कृषि भूमि, जांगल कृषि भूमि विकट भूमि।
पहली से दूसरी, दूसरी से तीसरी भूमि को कृषि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया। कृषि खंड में उन्होंने बताया कि किस महीने में बीजों का संग्रह करना चाहिए, बीजों की रक्षा कैसे करनी चाहिए, बीजों का रोपण किस विधि से होना चाहिए! कृषि कार्य में खगोलीय घटनाओं नक्षत्र आदि के प्रभाव का भी उन्होंने विस्तृत वर्णन किया है।
सचमुच अतीत का भारत विश्व गुरु था! जहां ज्ञान, विज्ञान, कला, कौशल की भरमार थी! कोई ऐसा क्षेत्र नही है, जहां हमारे ऋषि-मुनियों ने अमूल्य ग्रंथों की रचना ना की हो!
दुर्भाग्य से महाभारत के महायुद्ध में हजारों लाखों ऋषि महर्षि, योद्धा मारे गए! परिणाम स्वरूप गुरुकुल शिक्षा पद्धति और शिक्षा परंपरा विद्या की वैदिक संस्थाएं लुप्त हो गई। देश की अधिकांश जनता पाखंड, अंधविश्वास, ढोंग, आडंबर, जातिवाद, आलसी, भाग्यवादी, पुरुषार्थ विहीन हो गई। 90 फ़ीसदी से अधिक ज्ञान परंपरा व ग्रंथ लुप्त हो गए। उसका खामियाजा हम और आप क्या पूरी दुनिया उठाएगी। आज जलवायु परिवर्तन के कारण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया की भूमि बंजर होती जा रही है।
यह भारत के ऋषि महर्षि ओं का प्रबल प्रताप ज्ञान ही था कि कृषि के क्षेत्र में लाखों करोड़ों वर्ष के पश्चात भी भारत भूमि बंजर नहीं हो पाई। ऋषि पाराशर का मत था कि “प्रकृति का बलात दोहन हमें नहीं करना चाहिए, पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए प्रकृति का उपयोग हमें करना चाहिए।”
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