ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां, वीर्य लाभो भवत्यपि, सुरत्वं मानवो याति, चान्ते याति परां गतिम्
अर्थ: ब्रह्मचर्य का पालन करने से वीर्य का लाभ होता है, ब्रह्मचर्य की रक्षा करने वाले को दिव्यता प्राप्त होती है। साधना पूरी होने पर परमगति मिलती है…
पर कई उदाहरण हैं कि ब्राह्मण वीर्यवान, ब्रह्मचारी, चरित्रवान ही हो इसकी गारंटी नहीं है! बख्तियारपुर की खुदाई में मिले 11वीं सदी के एक शिलालेख से भी यह प्रमाणित होता है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि नालंदा विश्वविद्यालय को ब्राह्मणों ने ही जलाया था।
इससे यह भी पता चलता है कि ब्राह्मण जो अपना वीर्य इधर-उधर छींटते रहते हैं, उससे जो वर्ण संकर यानी दोगले पैदा होते हैं, उन्होंने सनातन को भीषण क्षति पहुँचाई है।
वीर्य होता क्या है?
शिलालेख में जो कुछ उद्धृत है, उससे पहले यह जान लीजिए कि वीर्य होता क्या है? वीर्य यानी सीमेन एक तरल पदार्थ है। यह शरीर की दो मुख्य ग्रंथियों के स्त्राव से बनता है। अंडकोषों में शुक्राणु बनते हैं। ये पुरुष ग्रंथियों के स्त्राव से मिलकर वीर्य की रचना करते हैं। सुश्रुत में लिखा है कि “जो भोजन हम करते हैं, उससे रस तैयार होता है। इस रस से खून, खून से मांस, मांस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा और मज्जा से वीर्य का निर्माण होता है।”
इसमें स्पर्म (शुक्राणु), फ्रुक्टोज और अन्य एंजाइम होते हैं, जो शुक्राणु को सफल निषेचन हेतु जीवित रहने में मदद करते हैं। सीमेन में स्पर्म तैरते हैं। एक बार स्त्री योनि में डिस्चार्ज होने के बाद स्पर्म निषेचन के लिए अंडा (एग) से मिलने को दौड़ लगा देते हैं। स्पर्म के अंडा से मिलने के बाद भ्रूण का निर्माण होता है और महिला गर्भवती होती है। फिर सामान्यत: नौ महीने बाद जायज और बहुत सारे केसों में नाजायज पैदा होते हैं।
अब शिलालेख पर लौटते हैं…
इसके अनुसार मधुबनी जिले के एक गाँव में राघव चेतन नाम का ब्राह्मण रहता था। उसको बौद्धों ने देश निकाला दे दिया। वह भटकते- भटकते अफगानिस्तान के गार्मसीर चला गया। वहाँ की पहाड़ियों में वह प्यास से बेसुध होकर गिर पड़ा। तभी भेड़-बकरी चराती एक बुर्के वाली उधर से गुजरी। उसने राघव चेतन को पानी पिलाया। फिर पहाड़ियों के बीच ही वीर्य ने जोर मारा, फलस्वरुप वह गर्भवती हो गई। नौ महीने बाद बख्तियार खिलजी नाम का एक वर्ण संकर पैदा हुआ। वर्ण संकर मतलब दोगला। दोगला बहुत खतरनाक प्रजाति होती है।
जब यह दोगला बड़ा हुआ तो अपने ‘बाप’ के अपमान का बदला लेने के लिए नालंदा की तरफ आया और उसके बाद जो कुछ हुआ वह तो कई इतिहासकार आपको बता ही चुके हैं। अपने ‘बाप’ के वीर्य के सम्मान में खिलजी ने बख्तियारपुर नाम के एक नगर की भी स्थापना की।
इस शिलालेख से स्पष्ट है कि यदि एक ब्राह्मण ने अपना वीर्य गर्मासीर की पहाड़ियों में नहीं छींटा होता तो नालंदा नहीं जलता। इसलिए नालंदा विश्वविद्यालय के जलने का कोई दोषी है तो वह ब्राह्मण ही है।
अपना वीर्य इधर-उधर छींटने वाला राघव चेतन इकलौता ब्राह्मण नहीं था। ऐसे ब्राह्मण दुनिया भर में गए। कोई उज्बेकिस्तान गया तो कोई इंग्लैंड। फिर जितने भी दोगले पैदा हुए वो अपने बाप के अपमान का बदला लेने भारत आए। असल में भारत को जो गुलामी का समय देखना पड़ा उसके दोषी भी ब्राह्मण ही हैं।
पर ब्राह्मणों को देखिए! देश ने इतना भोगा, उसके टुकड़े हुई, वह फिर भी नहीं सुधरे। इधर-उधर वीर्य छींटते रहे। अब उनकी वही दोगली औलादें उनको क्रेडिट दिलाने के लिए लड़ रही हैं। वे नहीं चाहतीं कि उनके बाप का क्रेडिट कोई बख्तियार खिलजी ले जाए। इन लोगों के सम्मान में आप भी कहिए कि नालंदा विश्वविद्यालय को ब्राह्मणों ने ही जलाया था।
जिन ब्राह्मणों को इस ट्रेंड से दुख हो रहा है, उनके लिए सीख है कि भले ही हस्तमैथुन कर लो, पर अपना वीर्य इधर-उधर छींटना बंद करो। वीर्य भी तुम इतना छींट लेते हो कि यह हिसाब नहीं रहता कि किस-किस घर में दोगले पैदा करके रखे हो।
वैसे भी ‘मरणं बिन्दुपातेण जीवन बिंदु धारयेत’, वीर्य का पतन मृत्यु की ओर ले जाता है। तुम्हारी दोगली पैदाइश तुमको रोज मृत्यु की ओर ही तो धकेल रहीं हैं। इसलिए अब भी चेत जाओ।
नोट: यह मधुबनी जिले के नबटोली ग्राम के एक मैथिल ब्राह्मण का पहला रिसर्च पेपर है। इसे उन्होंने अपने वातानुकूलित कमरे में बैठकर लिखा है। शिलालेख का अध्ययन से लेकर गर्मासीर की पहाड़ियों तक में हुए संभोग को उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा है। यह भी सनद रहे कि इतिहासकार अजीत झा का इतिहास के अध्ययन-अध्यापन से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इस लब्धप्रतिष्ठित इतिहासकार के शोध पर प्रश्न उठाने वाले दोगले माने जाएँगे। माना जाएगा कि किसी ब्राह्मण ने अपना वीर्य इधर-उधर छींटा था।