भाग-01 प्रोजेक्ट जोशुआ और 10/40 Window क्या है?

जोशुआ प्रोजेक्ट क्या है
जोशुआ प्रोजेक्ट और 10/40 Window
सभी लोग वेटिकन और मिशनरी द्वारा संगठित, सुविचारित एवं धूर्त षडयंत्र सहित किए जाने वाले ईसाई धर्मान्तरण के बारे में जानते हैं। यह पूरा धर्मांतरण अभियान बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से वर्षों से जारी है। समूचे विश्व को ईसाई बनाने का उद्देश्य लेकर बने हुए “जोशुआ प्रोजेक्ट” के अंतर्गत धर्मांतरण हेतु सर्वाधिक ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्र के रूप में एक काल्पनिक “10/40 खिड़की” को लक्ष्य बनाया गया है।
10/40 Windows क्या है?
10/40 Window, यह शब्द सुनने में थोड़ा अजीब ज़रूर है, लेकिन इतना कठिन नहीं है। ग्लोब पर नज़र डालेंगे तो यह काफ़ी आसान है। 10/40 Window शब्द सबसे पहले लूईस बुश द्वारा उछाला गया जो की पूर्वी गोलार्ध तथा पश्चिमी  में यूरोप तथा अफ़्रीका के भूभाग जो की उत्तरी ध्रुव के 10-40 डिग्री (10 डिग्री अक्षांश 40 डिग्री देशांश) में बसते हैं।  इस जोशुआ प्रोजेक्ट के अनुसार पृथ्वी के नक़्शे पर, दस डिग्री अक्षांश एवं चालीस डिग्री देशांश के चौकोर क्षेत्र में पड़ने वाले सभी देशों को “10/40 Window” के नाम से पुकारा जाता है। इस खिड़की (विंडो) में उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व एवं एशिया का एक बड़ा भूभाग आता है।  
10/40 Window में आने वाले देश (लाल घेरे में)
उद्देश्य
वेटिकन के अनुसार इस 10/40 खिड़की के देशों में सबसे कम ईसाई धर्मांतरण हुआ है। वेटिकन का लक्ष्य है कि इस खिड़की के बीच स्थित देशों में तेजी से, आक्रामक तरीके से, चालबाजी से, सेवा के नाम पर या किसी भी अन्य तरीके से अधिकाधिक ईसाई धर्मांतरण होना चाहिए। जोशुआ प्रोजेक्ट के आकलन के अनुसार इस “खिड़की” में विश्व के तीन प्रमुख धर्म स्थित हैं, इस्लाम, हिन्दू एवं बौद्ध। यह तीनों ही धर्म ईसाई धर्मांतरण के प्रति बहुत प्रतिरोधक हैं।
प्रभावित देश
पहले इस खिड़की के अंदर दक्षिण कोरिया और फिलीपींस भी शामिल थे, परन्तु इन देशों की जनसंख्या 70% से अधिक ईसाई हो जाने के बाद उन्हें इस खिड़की से बाहर रख दिया गया है। वेटिकन के अनुसार “इस खिड़की में शामिल देशों में सबसे ‘मुलायम और आसान” लक्ष्य भारत है, जबकि सबसे कठिन लक्ष्य इस्लामी देश मोरक्को है।” वेटिकन ने गत वर्ष ही “सॉफ्ट इस्लामी” इंडोनेशिया को भी इस खिड़की में शामिल कर लिया है।
विश्व की कुल आबादी में से चार अरब से अधिक लोग इस 10/40 खिड़की के तहत आती है, इसलिए यदि ईसाई धर्म का अधिकाधिक प्रसार करना हो तो इन देशों को टारगेट बनाना जरूरी है। क्योंकि इस “खिड़की” से बाहर स्थित देशों जैसे यूरोपीय देश, रूस, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में से अधिकाँश देश पहले ही “घोषित रूप से ईसाई देश” हैं और अधिकाँश देशों में “बाइबल” की शपथ ली जाती है।
एशियाई देशों में चर्च ने सर्वाधिक सफलता हासिल की है “नास्तिक” माने जाने वाले “वामपंथी” चीन में। आज की तारीख में चीन में लगभग 17 करोड़ ईसाई (कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट मिलाकर) हैं। चीन में वेटिकन के प्रवक्ता डॉक्टर जॉन संग कहते हैं कि हमें विश्वास है कि सन 2025 तक चीन में ईसाईयों की आबादी 25 करोड़ पार कर जाएगी। भारत में “घोषित रूप से” ईसाईयों की आबादी लगभग छह करोड़ है, जबकि अघोषित रूप से छद्म नामों से रह रही ईसाई आबादी का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।

(अगले भाग:०२ में पढ़ेंगे कि “जोशुआ प्रोजेक्ट” का जन्म कहा हुआ?, जोशुआ प्रोजेक्ट से पहले इसका क्या नाम था?, इस संगठन में कौन-कौन संस्थाएं थी ? भारत मे जोशुआ प्रोजेक्ट के मददगार कौन-कौन है ?)


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1 Comments

  1. कृपया सम्पर्क स्थापित कीजिए

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