- सीपी सिंह
कोई पूछे विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा कौन है? तो तुरंत जवाब मिल जाएगा- अंग्रेजी। सही जवाब है। अगर दूसरा सवाल यह पूछा जाए कि दुनिया की सबसे महत्त्वपूर्ण भाषा कौन सी है? तो भी प्रायः सभी का जवाब अंग्रेजी ही होगा। कोई माने या न माने, यह जवाब भी सही है। अंग्रेजी न केवल अनेक देशों में आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग में है बल्कि वह वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक, व्यावसायिक, राजनयिक और इंटरनेट के क्षेत्रों में भी सर्वाधिक प्रभुत्ववाली भाषा है। लेकिन हम अंग्रेज़ी के इन आयामों पर नहीं बल्कि एक अलग पहलू पर चर्चा करेंगे।
अंग्रेजी से हमारा परिचय ब्रिटिश दासता की वजह से हुआ। साम्राज्यवादियों ने राजनीतिक सत्ता हथियाने के बाद हमारी भाषाओं और संस्कृति को बहुत क्षति पहुंचाई। अंग्रेजी भाषा थोपी गई और हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं को पनपने का कोई अवसर नहीं दिया गया। लगभग दो सौ वर्षों के गुलामी के दौर में अंग्रेजी हमारे समाज पर इस कदर हावी हो गई कि अब वह एक अनिवार्यता सी लगने लगी है। औपनिवेशिक दमन के दौरान हमारी भाषाएं तमाम हमले झेलते हुए भी केवल जन प्रयोग के दम पर फलती फूलती और विकसित होती रहीं। यह अलग बात है कि विदेशी शासक हमारी भाषाओं को हेय दृष्टि से देखते रहे।
अब यदि मैं कहूं कि एक ऐसा दौर था जब इंग्लैंड में ही अंग्रेजी को निम्नवर्गीय लोगों की अशिष्ट और हेय देशी भाषा के तौर पर देखा जाता था तो थोड़ा आश्चर्य होना स्वाभाविक है। लेकिन यह सच है।
फ्रांस के दक्षिण तटीय क्षेत्र में नारमैंडी (Normandy) में नार्मन सामंतों का प्रभुत्व था। फ्रांस के सम्राट के अधीन होने के बावजूद धीरे-धीरे यह जमींदारी बहुत बड़ी और शक्तिशाली बन गई थी। वर्ष 1002 में इंग्लैंड के राजा ने एक युद्ध में पराजित होने के बाद नारमैंडी में शरण ली। उनका बेटा एडवर्ड-III (Edward-III 'the Confessor') वहीं पला बढ़ा। वर्ष 1042 में एडवर्ड को इंग्लैंड की गद्दी मिली। चूंकि उसकी मां नारमैंडी की थीं और वह एक फ्रांसीसी के रूप में फ्रांसीसी परिवेश में बड़ा हुआ था तो उसने अपने दरबार में अपने साथ लाए हुए फ्रांसीसी लोगों को खुले हाथ सामंती पद और जागीरें बांटीं। दरबार का माहौल पूरी तरह फ्रांसीसी हो गया।
इंग्लैंड में फ्रांसीसी का बोलबाला
एडवर्ड का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उसकी मृत्यु होने पर सिंहासन के कई दावेदारों में युद्ध हुआ, जिसमें नारमैंडी के ड्यूक विलियम की विजय हुई। वर्ष 1066 में क्रिसमस के दिन वह इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठा। बस यहीं से इंग्लैंड में अंग्रेजी भाषा की दुर्दशा शुरू हो गई।
विलियम ने सबसे पहले अंग्रेज सामंतों को और फिर चर्च के पुरोहितों को हटाकर पूरे दरबार एवं प्रशासन में तमाम फ्रांसीसियों को काबिज कर दिया। लैटिन अभिलेख की भाषा बनी रही, परंतु दरबार से लेकर निचले स्तर तक कामकाज के लिए फ्रांसीसी भाषा का प्रयोग ज़रूरी हो गया। दरबार और शासन के नजदीक रहने और उसमें शामिल होने के लोभ में कुलीन और उच्च वर्ग के अंग्रेज भी फ्रांसीसी भाषा सीखने, लिखने, बोलने को बेताब होने लगे। धीरे-धीरे अंग्रेजी को असंस्कृत, असभ्य, देहाती और सामाजिक रूप से हेय भाषा माना जाने लगा।
अब फ्रांसीसी भाषा दरबार, अदालत और उच्चवर्ग की भाषा बन गई तथा अंग्रेजी भाषा निम्नमध्यम वर्ग की देशी भाषा बनकर रह गई। जैसे ब्रिटिश हमारी भाषाओं को वर्नाकुलर बोलते हैं, वैसे ही फ्रांसीसी अंग्रेजी को वर्नाकुलर कहते थे। यह इंग्लैंड में अंग्रेजी की दुर्दशा का काल था।
वर्ष 1204 में फ्रांस के साथ हुए संघर्ष के बाद नारमैंडी इंग्लैंड के हाथों से निकल गई। लेकिन अंग्रेजी की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ, क्योंकि दरबार और कुलीन वर्ग की भाषा के रूप में वह अपनी जड़ें जमा चुकी थी। राजा हेनरी तृतीय (King Henry III 1216-1272) के शासनकाल में फ्रांसीसी का प्रभुत्व बरकरार रहा। संसद, अदालत, उच्च वर्ग, शिक्षा की भाषा फ्रांसीसी ही बनी रही।
आम जनता द्वारा अंग्रेजी के प्रयोग ललक और विवशता तथा फ्रांसीसी प्रभाव कम होने से फ्रांसीसी भाषा के उपयोग और स्तर दोनों में गिरावट आने लगी थी। यहां तक कि साधारण आवेदन आदि फ्रांसीसी में लिखने पर गलतियां दिखने लगी थीं। फिर भी शासन और कुलीन वर्ग द्वारा फ्रांसीसी को बनाए रखने के लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे थे। चर्च और विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी की बजाए फ्रांसीसी या लैटिन में वार्तालाप करने के दिशानिर्देश जारी किए जा रहे थे। वर्ष 1332 में संसद ने समस्त लार्ड, बैरन, निष्ठावान जनता से अपने बच्चों को फ्रांसीसी पढ़ाने का आह्वान किया। अंग्रेजों की फ्रांसीसी भाषा के गिरते स्तर का कुलीन वर्ग द्वारा उपहास उड़ाना शुरू हुआ। अधिक समृद्ध और महत्वाकांक्षी कुलीन लोग अपने बच्चों को बड़ा होने के लिए फ्रांस भेजते थे, जिससे उनकी अंग्रेजी भाषा की अशिष्टता दूर हो सके। कला, साहित्य, संस्कृति और फैशन के क्षेत्र में फ्रांसीसी भाषा का बोलबाला था।
इंग्लैंड में अंग्रेजी की वापसी
इस बीच वर्ष 1337 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच युद्ध शुरू हो गया, जो रुक-रुक कर वर्ष 1453 तक चलता रहा। इसे सौ वर्षीय युद्ध कहा जाता है। युद्ध के कारण इंग्लैंड में राष्ट्रीय चेतना का संचार उत्तरोत्तर बढ़ता गया। अपनी भाषा के प्रति लगाव और बढ़ने लगा। वर्ष 1356 में लंदन व मिडिलसेक्स नगर पालिकाओं की कार्रवाई पहली बार अंग्रेजी में हुई। वर्ष 1362 में विधिक बहस अंग्रेजी में करने की व्यवस्था के लिए स्टेट्यूट आफ प्लीडिंग ऐक्ट पारित किया गया। लिखित कार्यवाही अभी भी फ्रांसीसी और लैटिन में होने का विधान जारी रहा। वर्ष 1385 तक स्कूलों में अंग्रेजी की पढ़ाई होने लगी। वर्ष 1423 में संसद में पिटीशन अंग्रेजी में देने की अनुमति मिली। वर्ष 1430 में गांवों और कस्बों के अभिलेख अंग्रेजी में लिखे जाने लगे।
अंग्रेजी में लिखित विधेयक वर्ष 1485 से संसद में स्वीकार किए जाने की अनुमति मिली, लेकिन वह भी फ्रांसीसी पाठ के साथ। वर्ष 1489 से केवल अंग्रेजी विधेयक स्वीकार किए जाने लगे। न्यायालयों की भाषा बनने के लिये अंग्रेजी को वर्ष 1730 तक इंतजार करना पड़ा। वर्ष 1066 में फ्रांसीसी भाषा द्वारा हाशिए पर धकेल दिए जाने के बाद अंग्रेजी को फिर से उबरने में लगभग 500 साल लगे। जबकि फ्रांसीसी केन्द्रित सत्ता प्रतिष्ठान वर्ष 1204 में अर्थात 138 वर्ष में ही नारमैंडी के पतन के बाद समाप्त हो गया था। तो फिर इंग्लैंड में उसके बाद अंग्रेजी को इतना लंबा संघर्ष क्यों करना पड़ा? क्योंकि राज दरबार, पुरोहित, प्रशासक, कुलीन और सामंत वर्ग काफी बाद तक फ्रांसीसी के पोषक बने रहे।
लगभग वर्ष 1500 के बाद अंग्रेजी भाषा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसने न केवल देश से फ्रांसीसी भाषा का वर्चस्व खत्म किया बल्कि दुनिया में तमाम देशी भाषाओं का दमन करते हुए अपना कब्जा जमाया। दुनिया में अंग्रेजी का वर्चस्व आजतक बरकरार है। बढ़ता ही जा रहा है। यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि जिस तरह फ्रांसीसी ने सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर इंग्लैंड में अंग्रेजी को बेदखल करते हुए उसे एक हेय भाषा करार दिया था, ठीक उसी तरह अंग्रेजी ने ब्रिटिश उपनिवेशों में वहां की भाषाओं को हेय बताकर हाशिए पर धकेल दिया और वे वहां से बाहर निकलने के लिए अब भी छटपटा रही हैं।
ब्रिटेन का राजनीतिक साम्राज्यवाद जरूर खत्म हो गया है, लेकिन अंग्रेजी का भाषिक साम्राज्यवाद और मजबूत होता जा रहा है। यह भी समझने की बात है कि अंग्रेजी की पुनर्स्थापना में इंग्लैंड की राष्ट्रीय चेतना और आम जनता का विशेष योगदान था। कोई भी भाषा तभी पनप सकती है, जब उसके बोलने वाले स्वेच्छा और उत्साह से उसका व्यापक प्रयोग करें। हमारी भाषाएं हर दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। जरूरत है कि हम उनके महत्व को समझें और उनका स्वत:स्फूर्त प्रयोग करते रहें। समय के साथ हमारी सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन अवश्यंभावी है।
सीपी सिंह
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