नेहरू देश के सीक्रेट एडविना मॉन्टबेटन को बताते थे

 नेहरू देश के सीक्रेट एडविना मॉन्टबेटन को बताते थे

नेहरू ने प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ का किया था उल्लंघन! लेडी एडविना माउंटबेटन को बता दिये थे चीन से जुड़े भारत के राज़!

   नेहरू के चमचे, गुलाम और भक्त मुझसे नाराज़ हों, उसके पहले मैं ये साफ कर देना चाहता हूं कि ये बात मैं नहीं बोल रहा हूँ, बल्कि ये महान विचार व्यक्त किये हैं गांधी-नेहरू परिवार के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नटवर सिंह ने! पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह अपनी आत्मकथा "One Life Is Not Enough is : an autobiography" के पेज नंबर 100 पर लिखते हैं –

    “चीन से लौटने के बाद पंडित नेहरू कलकत्ता में ठहरे। उन्होने यहां से पहला खत एडविना माउंटबेटन को लिखा और उनके साथ अपने चीन के अनुभव बांटे। यदि कड़े शब्दों में कहा जाये तो, चीनी नेताओं से हुई बातचीत को एडविना के साथ बांटना, पीएम नेहरू के द्वारा ली गई गोपनीयता की शपथ के विरुद्ध था। निसंदेह, तब तो उस पत्र के बारे में कोई नहीं जानता था और ये तभी दुनिया के सामने आया, जब नेहरू के लेखन को सर्वपल्ली गोपाल ने प्रकाशित किया।”

   दरअसल 2 नवंबर 1954 को जो पत्र उन्होने लेडी माउंटबेटन को लिखा था, उसमें उन्होने चीन को लेकर अपनी पूरी सोच को सामने रख दिया था। इस लंबे पत्र में उन्होने अपनी चीन यात्रा का पूरा वर्णन लेडी माउंटबेटन से किया है- वो कहां गये, किससे मिले, उन्हे क्या अच्छा लगा, क्या बुरा लगा! सब कुछ उन्होने इस लेटर में लिख दिया था। 

एडविन कट्टर वमपंथन थी

  एडविना माउंटबेटन के बारे में सबसे खतरनाक बात ये थी कि वो कट्टर वामपंथी विचारों की समर्थक थीं। ब्रिटेन में कई बार उन पर प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े होने के आरोप लग चुके थे। मशहूर ब्रिटिश लेखक रिचर्ड हॉग की किताब "एडविना : द काउंटेस माउंटबेटन ऑफ बर्मा" में उन्हे कट्टर सोवियत समर्थक बताया गया है। इतना ही नहीं कुछ साल पहले ये भी दावा किया गया कि लेडी माउंटबेटन सोवियत संघ की खुफिया ऐजेंसी केजीबी के लिए जासूसी का काम करती थीं।

   ये वो दौर था जब अमेरिका भारत को चीन से दूर रहने की सलाह दे रहा था। लेकिन नेहरू खुद वामपंथी विचारों से प्रभावित थे और ऊपर से वो दो लोगों पर आंखें बंद करके भरोसा करते थे- पहले थे कट्टर कॉमरेड वी. के. मेनन (1962 के युद्ध के समय भारत का खलनायक रक्षामंत्री) और दूसरी कॉमरेड एडविना माउंटबेटन। अमेरिकी खुफिया ऐजेंसी सीआईए की 5 मई 1951 की एक रिपोर्ट (जिसे 50 साल बाद 2001 में सार्वजनिक किया गया) में लिखा गया है कि -

   “भारत में अमेरिका के राजदूत हेंडरसन ने जानकारी दी है कि नेहरू पिछले कुछ दिनों से लेडी माउंटबेटन और वीके मेनन के प्रभाव में हैं। भारत के जिम्मेदार अधिकारियों ने राजदूत हेंडरसन को बताया है कि "मेनन ने नेहरू को कहा है कि वो अमेरिका की किसी भी तरह की मदद न लें... और साथ में ये चर्चा भी आम है कि नेहरू पर लेडी माउंटबेटन के अमेरिकी विरोधी विचारों का प्रभाव है।" एक प्रभावशाली भारतीय जिसने हाल ही में जवाहर लाल नेहरू, लेडी माउंटबेटन और मेनन के साथ डिनर किया है, उसने राजदूत हेंडरसन को बताया है कि ये तीनों डिनर के दौरान भी अमेरिकी विरोधी बातें ही करते हैं।”

नेहरू और एडविना के ऊपर CIA रिपोर्ट

   विषय ये नहीं है कि नेहरू अमेरिका को पसंद करते थे या नहीं! मुद्दा ये है कि नेहरू को प्रभाव में लेकर भारत की विदेश नीति में किस तरह से दखल दिया जा रहा था और ऐसे ही लोगों को नेहरू अपनी चाइना पॉलिसी के सीक्रेट बता देते थे।


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