हकीकत यही है कि ये लोग सफेदपोश कायर आतंकवादी है। जो खुद हथियार तो नहीं उठाते लेकिन गांव के गरीब और आदिवासियों को एक झूठे भविष्य का ऐसा फरेबी सपना दिखाते हैं कि लोग इनके पीछे अपनी जिंदगी तक तबाह कर लेते हैं, बंदूक उठाना तो छोटी सी बात है।
गौतम नौलखा को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिल गई, वो हाउस अरेस्ट में थे। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार करने की प्रक्रिया का सही पालन नहीं किया। हो सकता है कि पुलिस ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया हो, हो सकता है कि गिरफ्तारी जल्दीबाजी में की गई, ये भी हो सकता है कि पुलिस के पास प्रयाप्त सबूत न हो, ये भी हो सकता है कि भीमाकोरेगांव में इन लोगों की भूमिका नहीं रही हो। लेकिन ये कतई नहीं माना जा सकता है कि ये नक्सली नहीं है या नक्सलियों के समर्थक नहीं है! अगर ये माआवादियों के समर्थक नहीं हैं तो आखिर ये हैं कौन? इनकी क्या विचारधारा है? ये कोई मूर्ख ही होगा जो इन्हें सिर्फ समाजसेवी मान कर इनका महिमामंडन करे। हकीकत यही है कि ये लोग सफेदपोश कायर आतंकवादी है। जो खुद हथियार तो नहीं उठाते लेकिन गांव के गरीब और आदिवासियों को एक झूठे भविष्य का ऐसा फरेबी सपना दिखाते हैं कि लोग इनके पीछे अपनी जिंदगी तक तबाह कर लेते हैं, बंदूक उठाना तो छोटी सी बात है।
सवाल ये है कि ये शहरी नक्सली चाहते क्या हैं?
ये देशद्रोहियों का वो गैंग है, जो भारत के टुकड़े टुकड़े करना चाहता है। क्योंकि क्रांति तो ला नहीं सके, सर्वहारा को जोड़ न सके, चुनाव जीत न सके तो अब इनके एजेंडे में सबसे पहले कश्मीर को भारत से अलग करना है। फिर नार्थ इस्ट को और उसके बाद एक एक करके हर प्रांत को अलग अलग देश में विभाजित करने का मनसूबा ये पालते हैं। ये दुनिया भर में हिंदुस्तान को बदनाम करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते हैं। ये साधारण लोग नहीं है, ये काफी ताकतवर लोग हैं। सरकार भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ये हत्या, उगाही और लूट की साजिश भी रचते हैं लेकिन देश का मीडिया इन्हें कार्यकर्ता और एक्टिविस्ट बताता हैं। ये सिर्फ हिंदुस्तान में ही हो सकता है कि जहां समाज के कैंसर को इज्जत मिलती हो। यही वजह है कि जब पुलिस ने इनके सिर्फ 5 प्यादों को गिरफ्तार किया है तो बवाल मच गया। देश के प्रजातंत्र पर ही सवाल उठ गया, लेकिन कोर्ट को तो प्रक्रिया का ध्यान देना है.... विरोध की आवाज को जिंदा रखना है।
जब अमेरिका मे फाई पकड़ा गया तो श्रीनगर में इसके खिलाफ एक सेमिनार में गिलानी ने अमेरिका को धमकी दी थी। लेकिन गौतम नौलखा का ISI-प्रेम देखिए! वो खुद तो इस सेमिनार में शामिल नहीं हुए लेकिन उन्होंने अपना एक मैसेज लिख कर भेजा था.. जिसे डा. जावेद इकबाल ने पढ़ा था। मतलब साफ है कि गौतम नौलखा न सिर्फ माओवादियों के समर्थक हैं बल्कि कश्मीर में आंतकवादियों और अलगाववादियों के साथ भी रिश्ते हैं।
कौन है गौतम नौलखा
गौतम नौलखा, जिसे मीडिया में एक एक्टिविस्ट बताया तो जा रहा है, लेकिन ये कोई नहीं बता रहा है कि आखिर ये किस विचारधारा या पार्टी का एक्टिविस्ट है! लुटियन मीडिया में एक टैग बना दिया है एक्टिविस्ट का..! तो सारे माओवादी और नक्सली टीवी और सेमिनार में पहुचते हैं तो नीचे एक्टिविस्ट लिख दिया जाता है। देश की भोली भाली जनता समझती है कि जरूर ही ये कोई अच्छा आदमी होगा। असलियत ये है कि गौतम नौलखा एक अतिवादी-वामपंथी है। ये कितना लेनिनवादी और कितना माओवादी है, ये तो पता नहीं लेकिन इनके रग रग में भारत-विरोध रचा-बसा है। ये हिंसा में भरोसा रखते हैं, हत्या लूट और अराजकता को समाजिक परिवर्तन का एक टूल मानते हैं। बंदूक की इज्जत करते हैं, खुलेआम देश में राष्ट्रविरोधी सभी आंतकी गतिविधियों को आंदोलन बताते हैं। सामजिक-आर्थिक समस्या बता कर लोगों को बरगलाते हैं। इनता ही नहीं, कश्मीर के आंतकियों और अलगाववादियों का भी समर्थन करते हैं। उनके सेमिनार और मीटिंग्स में हिस्सा लेते हैं, भाषण देते हैं, यू-ट्यूब पर इनके कई वीडियोज हैं जो इन सभी बातों के सबूत हैं। लेकिन, लुटियन मीडिया इन्हें एक महान पत्रकार मानता है।
गौतम नौलखा! आईएसआई एजेंट गुलाम नबी फाई के गैंग का एक सक्रिय सदस्य था। वो फाई नोटवर्क के कई सीक्रेट और आपेन कार्यक्रम में हिस्सा ले चुका है। जब अमेरिका मे फाई पकड़ा गया तो श्रीनगर में इसके खिलाफ एक सेमिनार में गिलानी ने अमेरिका को धमकी दी थी। लेकिन गौतम नौलखा का ISI-प्रेम देखिए! वो खुद तो इस सेमिनार में शामिल नहीं हुए लेकिन उन्होंने अपना एक मैसेज लिख कर भेजा था.. जिसे डा. जावेद इकबाल ने पढ़ा था। मतलब साफ है कि गौतम नौलखा न सिर्फ माओवादियों के समर्थक हैं बल्कि कश्मीर में आंतकवादियों और अलगाववादियों के साथ भी रिश्ते हैं। यही वजह है कि जब आंतकवादी बुरहान वानी को सेना ने जब मार गिराया तो इनके कलेजा फट गया। नौलखा जैसे ही ISI परस्त नक्सलियों ने अखबारों में लंबे लंबे लेख लिखे जैसे कि बुरहान कोई भगत सिंह हो।
दुनिया भर में लेफ्ट विंग टेररिज्म के इतिहास को पढ़ना चाहिए। पुलिस और सेना के बाद ये लोग न्यायालय के जज को ही अपना निशाना बनाते हैं। लेकिन, जज भी क्या कर सकते हैं, महाराष्ट्र पुलिस ने प्रकिया का पालन नहीं किया होगा?
ये तो मोदी सरकार एक कमजोर सरकार है कि जिसके शासनकाल में एक आंतकी का महिमामंडन होता रहा और सरकार हाथ पर हाथ थाम कर बैठी रही और इन लोगों ने भारत को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया। बुहरान वानी अगर जिंदा रहता तो वो 26/11 जैसी घटना को अंजाम दे सकता था..। तब क्या नौलखा जैसे लोग इसकी जिम्मेदारी लेते? क्या कोर्ट को ये नहीं पूछना चाहिए कि जिन अलगाववादियों और अांतकवादियों का ये लोग समर्थन करते हैं। जिनके हाथों आए दिन हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं, उसकी जिम्मैेदारी किसकी है? क्या इनसे ये नहीं पूछा जाना चाहिए कि इन लोगों ने बाटला हाउस में भी सरकार और एजेंसी पर आरोप किस आधार पर लगाए थे? लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट को इससे क्या लेना देना? जजों को तो सिर्फ प्रक्रिया से मतलब होता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को अगर लगता है कि इंडियन स्टेट और भारतीय सेना खिलाफ और आंतकिवादियों के समर्थन में खुले रुप से लिखना व लोगों को भ्रमित करना और तो और हथियार उठाने के लिए प्रेरित करना, विरोध की आवाज है और ये प्रजातंत्र के लिए जरूरी है तो क्षमा कीजिए। कल किसी जज की हत्या इन नक्सलियों और आतंकवादियों के हाथ होती है तो आप जनता की सहानुभूति के लायक भी नहीं बेचेंगे। ये कोई हैरान करने वाली बात नहीं है, क्योंकि जेएनयू में हमने इन्हें कई बार ये नारा लगाते हुए सुना है – “देश की न्यायव्यवस्था को जला दो.. मिटा दो.. देश के संसद को .. जला दो... मिटा दो..”। जिन जजों को विरोध की आवाज को बचाने चिंता है, उन्हें दुनिया भर में लेफ्ट विंग टेररिज्म के इतिहास को पढ़ना चाहिए। पुलिस और सेना के बाद ये लोग न्यायालय के जज को ही अपना निशाना बनाते हैं। लेकिन, जज भी क्या कर सकते हैं, महाराष्ट्र पुलिस ने प्रकिया का पालन नहीं किया होगा?
लेनिन ने समाज में क्रांति लाने के लिए एक नए किस्म की पार्टी का सिंद्धांत दिया था - “पार्टी ऑफ ए न्यू टाइप” (Party of a new type)! ये एक सीक्रेट पार्टी थी। इसकी गतिविधियां खुफिया तरीके से चलती थी, इसकी कोई सदस्यता नहीं थी। इसका काम आम जनता को सत्ता के खिलाफ भड़काना, संगठित करना, हिंसक आंदोलन में हिस्सा लेना, हथियारों से बर्बर तरीके से क्लास-एनेमी को खत्म करना था
अर्बन नक्सल क्या होता है?
गौतम नौलखा! एक शातिर लेनिनवादी है। लोग पूछते हैं अर्बन नक्सल क्या होता है? जेएनयू में मैं इस शब्द का इस्तेमाल 1996 से करता रहा हूं। ये शब्द भले ही नया हो लेकिन इसकी रूप रेखा लेनिन ने बहुत पहले 1916 में ही रख दी थी। लेनिन ने समाज में क्रांति लाने के लिए एक नए किस्म की पार्टी का सिंद्धांत दिया था - “पार्टी ऑफ ए न्यू टाइप” (Party of a new type)! ये एक सीक्रेट पार्टी थी। इसकी गतिविधियां खुफिया तरीके से चलती थी, इसकी कोई सदस्यता नहीं थी। इसका काम आम जनता को सत्ता के खिलाफ भड़काना, संगठित करना, हिंसक आंदोलन में हिस्सा लेना, हथियारों से बर्बर तरीके से क्लास-एनेमी को खत्म करना था।
इस थ्योरी के पीछे लेनिन की सोच ये थी कि सर्वहारा गधे होते हैं.. मूर्ख होते हैं.. वो अपने आप क्रांति नहीं कर सकते। इसके लिए ‘मिडिल क्लास इंटेलेक्चुअल’ को संगठित होना पड़ेगा जो सर्वहारा का ब्रेनवाश करके उनके हाथों में हथियार देगा। अब हिंदुस्तान में तो मिडिल क्लास इंटेलेक्चुअल तो शहरों में ही मिलेंगे..! इसिलए गौतम नौलखा जैसे लोग उसी लेनिन के सिद्धांत पर अमल करने वाले आंदोलनकारी यानि लेफ्ट-विंग टेररिज्म के ध्वजवाहक हैं। अब कोर्ट अगर ये सोचने लगे कि कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की तरह इनके पास भी कोई आइडेंटिटी प्रूफ मिले तो ये हो ही नहीं सकता है। क्योंकि देश में जितने भी माओवादी और लेनिनवादी आंतकी संगठन हैं वो अंडरग्राउंड ऑपरेट करते हैं। खुफिया तरीके से काम करते हैं, जैसा कि लेनिन बता के मर चुके हैं।
लेनिनवादियो का सपना भारत को टुकड़े-टुकड़े करने का है
सवाल ये है कि गौतम नौलखा जैसे लोग जो बेवकूफी में खुद को वामपंथी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं, ये तो धर्म को नहीं मानते हैं। फिर कश्मीर के जिहादियों, इस्लामी आंतकियों और वहाबियों से इनका क्या रिश्ता है? ये कोई पहेली नहीं है। अगर किसी ने आंख बंद करने का फैसला कर लिया हो तो उसे तो कुछ दिखाया नहीं जा सकता, लेकिन हकीकत ये है कि पिछले करीब 100 सालों से ये वामपंथी हिंदुस्तान में क्रांति का सपना देखते देखते इनता फ्रस्टेट हो चुके हैं कि अब तो भारत या हिंदूओं के खिलाफ जो कुछ भी होता है, उसके साथ शामिल हो जाते हैं। विचारधारा की तिलांजलि तो ये लोग बहुत पहले दे चुके हैं। अब इनका बस एक ही सपना है भारत को टुकड़े टुकड़े में बांटना।
हर वामपंथी पार्टी के वैचारिक दस्तावेजों की पहली लाइन ही यही होती है कि “भारत 17 राष्ट्रों का एक राष्ट्र है और हर राष्ट्र को अलग देश बनाने की स्वतंत्रता है” (लेनिन के बताए सिंद्धात पर)। इसलिए जहां कहीं भी ऐसे आंदोलन चल रहे हों जैसे कि कश्मीर और नार्थ इस्ट में, उसका समर्थन करना इनकी वैचारिक मजबूरी बन जाती है। यही वजह है कि कम्युनिस्ट पार्टी अकेली पार्टी थी, जिसने पाकिस्तान के अलग होने के फैसले को सही कहा था, अभी भी कहते हैं। ये तो इतने बड़े देशद्रोही हैं कि इन्होंने तो खालिस्तान का भी शुरु से समर्थन किया। अब इनके चरित्र में ही देश तोड़ने का दोष लिखा है तो इन्हें देशद्रोही साबित करने के लिए किसी सबूत की जरूरत है क्या?
लेकिन पूरी दुनिया, यहां तक की कोर्ट, इन वामपंथी-आतंकियों को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानने की भूल कर रहे हैं। सवाल ये है कि ये किन की मानवाधिकार के लिए लड़ते हैं? ये तो साफ है कि ये नक्सलियों, आतंकवादियों, अलगवावादियों और जिहादियों के मानवाधिकार का समर्थन और भारतीय सेना, पुलिस, सरकार और कोर्ट का विरोध करते हैं।
देश की सेना के खिलाफ प्रचार करने के लिए पाकिस्तान से रुपया मिलता है
मानवाधिकार के नाम पर नौलखा जैसे लोगों ने क्या किया है? वो जरा देखिए- भारतीय सेना की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि 1994 से अब तक सेना पर 1736 मानवाधिकार हनन के आरोप लगे हैं। जिसमें जांच के बाद सिर्फ 66 मामले ही सही पाए गए हैं। इन मामलों में 150 सैनिकों को सजा भी हुई है और 49 मामलों में पीड़तों को हर्जाना भी दिया गया है। मतलब ये कि हर साल औसतन तीन मामले होते हैं। लेकिन मानवाधिकार के ये फर्जी-योद्धा हर साल औसतन 78 झूठे आरोप भारतीय सेना पर लगाते हैं। ये सिर्फ आरोप ही नहीं लगाते, रिपोर्ट लिखते हैं। देश विदेश में इसका प्रचार प्रसार करते हैं। इसके लिए इन्हें विदेश से पैसा मिलता है। पाकिस्तान से भी पैसा आता है।
गौतम नौलखा भारतीय सेना को बदनाम करने वाली इंडस्ट्री का सीईओ है। ये “पीपुल युनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट” नामक एक संस्था चलाता है, जिसके तार जम्मू कश्मीर “कोएलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी” (JKCCS) से जुडे हैं। ये देश विरोधी और पाकिस्तानी समर्थित संगठनों के साथ मिलकर भारत के खिलाफ एजेंडा चलाता है और साजिश रचता है। अगर यकीन नहीं है तो कश्मीर पर आई यूएन की रिपोर्ट को पढ़ लें। इसके फुटनोट में हर जगह JKCCS का जिक्र है। यूएन का कोई आधिकारी हिंदुस्तान नहीं आया था। पूरी की पूरी रिपोर्ट नौलखा जैसे लोगों के फीडबैक पर लिखी गई। उन झूठे आरोप को सच बताया गया जो गुनाह भारतीय सेना ने किया ही नहीं।
ये वाकई शर्मनाक हकीकत है कि जिन लोगों पर देश को चलाने, प्रजातंत्र को बचाने और इसकी व्यवस्था को सुदृढ् रखने की जिम्मेदारी है वो उन लोगों के साथ खड़े हैं जो देश को तोड़ना चाहते हैं। प्रजातंत्र को खत्म करके सोवियत और चीन जैसी महा दमनकारी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते हैं। नौलखा जैसे लोग विरोध की आवाज नहीं है.. ये देशद्रोह की हुंकार है। संवैधानिक व्यवस्था को खत्म करने साजिश है।
मनीष कुमार
(लेखक न्यूज एडिटर है)
★★★★★
#Urban #Naxali, #GautamNaulakha, #LeftWing Terrorism, #BurahanBani, CNN80, CYBER NEWS NETWORK, Middle class Intellectual, #Lutian Media, #Gulam Nabi Fai, #Communist, #Left Wing,
#Urban #Naxali, #GautamNaulakha, #LeftWing Terrorism, #BurahanBani, CNN80, CYBER NEWS NETWORK, Middle class Intellectual, #Lutian Media, #Gulam Nabi Fai, #Communist, #Left Wing,