कामरेड कथा: लव, सेक्स और क्रान्ति!


Kiss of Love
अभी पुष्पा को जेएनयू आये चार ही दिन हुए थे कि उसकी मुलाक़ात एक क्रांतिकारी से हो गयी। लम्बी कद का एक सांवला सा लौंडा। ब्रांडेड जीन्स पर फटा हुआ कुरता पहने क्रान्ति की बोझ में इतना दबा था कि उसे दूर से देखने पर ही यकीन हो जाता था कि इसे नहाये मात्र सात दिन हुये हैं। बराबर उसके शरीर से क्रांति की गन्ध आती रहती थी। लाल गमछे के साथ झोला लटकाये सिगरेट फूंक कर क्रांति कर ही रहा था। तब तक...
पुष्पा ने कहा- नमस्ते भैया।
“हुंह ये संघी हिप्पोक्रेसी! काहें का भइया और काहें का नमस्ते? हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं। प्रगतिशीलता की लड़ाई। ये घीसे पीटे संस्कार, ये मानसिक गुलामी के सिवाय कुछ नहीं। आज से सिर्फ लाल सलाम साथी कहना”।  
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा- “आप क्या करते हैं?"
क्रांतिकारी ने कहा “हम क्रांति करते हैं! जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ते हैं। शोषितों वंचितों की आवाज उठातें हैं, क्या तुम मेरे साथ क्रांति करोगी?”
पुष्पा ने सर झुकाया और धीरे से कहा- “नहीं मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ। कितने अरमानों से मेरे किसान पिता ने मुझे यहाँ भेजा है। पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं तो समाज सेवा मेरा भी सपना है।”
क्रांतिकारी ने सिगरेट जलाई और बेतरतीब दाढ़ी को खुजाते हुए कहा। यही बात मार्क्स सोचे होते, लेनिन और मावो सोचे होते, कामरेड चे ग्वेरा? बोलो… तुमने पाश की वो कविता पढ़ी है। “सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना”
तुम ज़िंदा हो पुष्पा! मुर्दा मत बनों! क्रांति को तुम्हारी जरूरत है। लो ये सिगरेट पियो!
पुष्पा ने कहा- सिगरेट से क्रांति कैसे होगी?
क्रांतिकारी ने कहा- याद करो मावो और चे को वो सिगरेट पीते थे और जब लड़का पी सकता है तो लड़की क्यों नहीं? हम इसी की तो लड़ाई लड़ रहे है, यही तो साम्यवाद है। और सुनों कल हमारे प्रखर नेता कामरेड फलाना आ रहे हैं। हम उनका भाषण सुनेंगे। और अपने आदिवासी साथियों के विद्रोह को मजबूत करेंगे! लाल सलाम! चे… मावो… लेनिन!
पुष्पा ने कहा- ”लेकिन ये तो सरासर अन्याय है। कामरेड फलाना के लड़के तो अमेरिका में पढ़ते हैं। वो एसी कमरे में बिसलेरी पीते हुए जल-जंगल-जमीन पर लेक्चर देते हैं। और वो चाहतें हैं की कुछ लोग अपना सब कुछ छोड़कर नक्सली बन जाएँ और बन्दूक के बल पर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लें। ये क्या पागलपन है। उनके अपने लड़के क्यों नहीं लड़ते ये लड़ाई? हमें क्यों लड़ा रहे? क्या यही क्रांति है?
Kiss of love
कामरेड लड़के और लड़कियां अपने अधिकार छीनते हुए

क्रांतिकारी को गुस्सा आया, उसने कहा- तुम पागल हो जाहिल लड़की...! तुम्हें ये बिलकुल समझ नहीं! तुमने न अभी दास कैपिटल पढ़ा है, न कम्युनिस्ट मैनूफेस्टो, न तुम अभी साम्यवाद को ठीक से जानती हो, न पूंजीवाद को।
पुष्पा ने प्रतिवाद करते हुए कही- लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कामरेड कि मार्क्सवाद शुद्ध विचार नही है। इसमें मैन्यूफैक्चरिंग फॉल्ट है। यह हीगल के द्वन्दवाद, इंग्लैण्ड के पूँजीवाद और फ्रांस के समाजवाद का मिला जुला रायता है। जो न ही भारतीय हित में है न भारतीय जन मानस से मैच करता है।
क्रांतिकारी ने तीसरी सिगरेट जलाई और हंसते हुए कहा- हा हा हा ये बुर्जुर्वा हिप्पोक्रेसी, तुम कुछ नहीं जानती छोड़ो! तुम्हें अभी और पढ़ने की जरूरत है। छोटी हो अभी तुम। कल आओ हम फैज़ को गाएंगे- ”बोल के लब आजाद हैं तेरे, पाश को गुनगुनाएंगे, हम क्रांति करेंगे। आई विल फाइट कामरेड हम लड़ेंगे, साथी उदास मौसम के खिलाफ।"
अगले दिन उदास मौसम के खिलाफ खूब लड़ाई हुई। पोस्टर बैनर नारे लगे। साथ ही जनगीत डफली बजाकर गाया गया और क्रांति साइलेंट मोड में चली गयी। तब तक दारु की बोतलें खुल चूकीं थीं।
क्रांतिकारी ने कहा- पुष्पा ये तुम्हारा नाम बड़ा कम्युनल लगता है- पुष्पा पांडे! नाम से मनुवाद की बू आती है। कुछ प्रोग्रेसिव नाम होना चाहिए! आई थिंक “कामरेड पूसी” सटीक रहेगा।
पुष्पा अपना कामरेडी नामकरण संस्कार सुनकर हंस ही रही थी, तब तक क्रान्तिकारी ने दारु की गिलास को आगे कर दिया। पुष्पा ने दूर हटते हुए कहा नहीं, ये नहीं हो सकता।
क्रान्तिकारी ने कहा- तुम पागल हो! क्रान्ति का रास्ता दारु से होकर जाता है! याद करो मावो लेनिन और चे को! सबने लेने के बाद ही क्रांति किया है!
पुष्पा ने कहा- “लेकिन दारु तो ये अमेरिकन लग रही, हम अभी कुछ देर पहले अमेरिका को जी भर के गरिया रहे थे।”
क्रांतिकारी ने गिलास मुंह के पास सटाकर काजू का नमकीन उठाया और कहा- अरे वो सब छोड़ो पागल! समय नहीं, क्रान्ति करो। दुनिया को तेरी जरूरत है। याद करो चे को मावो को। हाय मार्क्स!
पुष्पा का सारा विरोध मार्क्स लेनिन और साम्यवाद के मोटे मोटे सूत्रों के बोझ तले दब गया। वो कुछ ही समय बाद नशे में थी। क्रांतिकारी ने क्रांति के अगले सोपान पर जाकर कहा- कामरेड पुसी, अपनी ब्रा खोल दो! पुष्पा ने कहा। इससे क्या होगा? क्रांतिकारी ने उसका हाथ दबाते हुए कहा- अरे तुम महसूस करो की तुम आजाद हो, ये गुलामी का प्रतीक है, ये पितृसत्ता के खिलाफ तुम्हारे विरोध का तरीका है, तुम नहीं जानती सैकड़ों सालों से पुरुषों ने स्त्रियों का शोषण किया है, हम जल्द ही एक प्रोटेस्ट करने वाले हैं फिलिंग फ्रिडम थ्रो ब्रा! जिसमें लड़कियां कैम्पस में बिना ब्रा पहने घूमेंगी।
(पुष्पा अकबका गई! ये सब क्या बकवास है कामरेड! ब्रा न पहनने से आजादी का क्या रिश्ता?)
क्रांतिकारी ने कहा- यही तो स्त्री सशक्तिकरण है कामरेड पुसी! देह की आजादी! जब पुरुष कई स्त्रियों को भोग सकता है, तो स्त्री क्यों नहीं? क्या तुम उन सभी शोषित स्त्रियों का बदल लेना चाहोगी?
पुष्पा ने पूछा, हाँ लेकिन कैसे?
क्रान्तिकारी ने कहा देखो जैसे पुरुष किसी स्त्री को भोगकर छोड़ देता है, वैसे तुम भी किसी पुरुष को भोगकर छोड़ दो!
पुष्पा को नशा चढ़ गया था “कैसे बदला लूँ कामरेड?
क्रांतिकारी की बांछें खिल गयीं! उसने झट से कहा! अरे मैं हूँ न! पुरुष का प्रतीक मुझे मान लो! मुझे भोगो कामरेड और हजारों सालों से शोषण का शिकार हो रही स्त्री का बदला लो! बदला लो कामरेड उस दैत्य पुरुष की छाती पर चढ़कर बदला लो!
कहतें हैं फिर रात भर लाल सलाम और क्रान्ति के साथ बिस्तर पर स्त्री सशक्तिकरण का दौर चला। बार-बार क्रांति स्खलित होती रही। कामरेड ने दास कैपिटल को किनारे रखकर कामसूत्र का गहन अध्ययन किया।
अध्ययन के बाद सुबह पुष्पा उठी तो आँखों में आंशू थे ! क्या करने आई थी? ये क्या करने लगी? गरीब माँ बाप का चेहरा याद आया! हाय!
कुछ दिन से कितनी चिड़चिड़ी होती जा रही। चेहरा इतना मुरझाया सा। अस्तित्व की हर चीज से नफरत होती जा रही। नकारात्मक बातें ही हर पल दिमाग में आती है। हर पल एक द्वन्द सा बना रहता है। अरे क्या पुरुषों की तरह काम करने से स्त्री सशक्तिकरण होगा की स्त्री को हर जगह शिक्षा और रोजगार के उचित अवसर देकर। पुष्पा का द्वन्द जारी था। उसने देखा क्रांतिकारी दूर खड़ा होकर गाँजा फूंक रहा है।
पुष्पा ने कहा “सुनों मुझे मन्दिर जाने का मन कर रहा है। अजीब सी बेचैनी हो रही है। लग रहा पागल हो जाउंगी।
क्रांतिकारी ने गाँजा फूंकते हुए कहा, पागल हो गयी हो! क्या तुम नहीं जानती की धर्म अफीम है? जल्दी से तैयार हो जा! हमारे कामरेड साथी आज हमारा इन्तजार कर रहे! हम आज संघियों के सामने ही ‘किस आफ लव करेंगे’। और शाम को याकूब, इशरत और अफजल के समर्थन में एक कैंडील मार्च निकालेंगे।
पुष्पा ने कहा- इससे क्या होगा? ये सब तो आतंकी हैं, देशद्रोही! सैकड़ों बेगुनाहों को हत्या की है! कितनों का सिंदूर उजाड़ा है? कितनों का अनाथ किया है?
क्रांतिकारी ने कहा तुम पागल हो लड़की।
पुष्पा जोर से रोइ, नहीं! मुझे नहीं जाना। मुझे आज शाम दुर्गा जी के मन्दिर जाना है। मुझे नहीं करनी क्रांति। मैं पढ़ने आई हूँ यहाँ। मेरे माँ बाप क्या क्या सपने देखें हैं मेरे लिए? नहीं ये सब हमसे न होगा।
क्रांतिकारी ने पुष्पा के चेहरे को हाथ में लेकर कहा। तुमको हमसे प्रेम नहीं? अगर है तो ये सब बकवास सोचना छोड़ो। “याद करो मार्क्स और चे के चेहरे को सोचो जरा! क्या वो परेशानियों के आगे घुटने टेक दिए? नहीं! उन्होंने क्रान्ति किया। आई विल फाइट कामरेड!
पुष्पा रोइ, लेकिन हम किससे फाइट कर रहे हैं?
क्रांतिकारी ने आवाज तेज की और कहा ये सोचने का समय नहीं। हम आज शाम को ही महिषासुर की पूजा करेंगे और रात को बीफ पार्टी करके मनुवाद की ऐसी की तैसी कर देंगे। फिर बाद दारु के साथ चरस गाँजा की भी व्यवस्था है।
पुष्पा को गुस्सा आया, चेहरा तमतमाकर बोली: “अरे जब दुर्गा जी को मिथकीय कपोल कल्पना मानते हो तो महिषासुर की पूजा क्यों?”
क्रान्तिकारी ने कहा- अब ये समझाने का बिलकुल वक्त नहीं! तुम चलो… मुझसे थोड़ा भी प्रेम है तो चलों! हाय चे! हाय मावो! हाय क्रांति!
इस तरह से क्रांति की विधिवत शुरुवात हुई। धीरे-धीरे कुछ दिन लगातार दिन में क्रांति और रात में बिस्तर पर क्रांति होती रही!
पुष्पा अब सर्टिफाइड क्रांतिकारी हो गयी थी। पढ़ाई लिखाई छोड़कर सब कुछ करने लगी थी। कमरे की दीवाल पर दुर्गा जी हनुमान जी की जगह चे और मावो थे। अगरबत्ती की जगह सिगरेट और गर्भ निरोधक के साथ सर दर्द और नींद की गोलियां! अब पुष्पा के सर पे क्रांति का नशा हमेशा सवार रहता।
कुछ दिन बीते, एक साँझ की बात है। पुष्पा ने अपने क्रांतिकारी से कहा- सुनो क्रांतिकारी तुम अपने बच्चे के पापा बनने वाले हो! आवो हम अब शादी कर लें?
तब क्रांतिकारी की हवा निकल गयी! मैंनफोर्स और मूड्स के विज्ञापनों से विश्वास उठ गया। उसने जोर से कहा- नहीं पुष्पा! कैसे शादी होगी? मेरे घर वाले इसे स्वीकार नहीं करेंगे! हमारी जाति और रहन-सहन सब अलग है। यार सेक्स अलग बात है और शादी-वादी वही बुर्जुवा हिप्पोक्रेसी! मुझे ये सब पसन्द नहीं। हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं।
पुष्पा तेज-तेज रोने लगी, वो नफरत और प्रतिशोध से भर गयी। लेकिन अब वो वहां खड़ी थी जहाँ से पीछे लौटना आसान न था।
कहतें हैं, क्रांति के पैदा होने से पहले क्रांतिकारी पुष्पा को छोड़कर भाग खड़ा हुआ और क्रान्ति गर्भपात का शिकार हो गयी। लेकिन इधर पता चला है की क्रांतिकारी अपनी जाति में विवाह करके एक ऊँचे विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा। और कामरेड पुष्पा अवसाद के हिमालय पर खड़े होकर सार्वजनिक गर्भपात के दर्द से उबरने के बाद जोर से नारा लगा रही-
“भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी.. जंग चलेगी!
काश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी.. जंग चलेगी!!”
★★★★★★

साभार– अतुल कुमार राय के फेसबुक वाल से

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