एंग्लो इंडियन: कांग्रेस को अंग्रेजो के बच्चो से इतना प्यार

एंग्लो इंडियन: कांग्रेस को अंग्रेजो के बच्चो से इतना प्यार

    क्या आप जानते हैं कि अंग्रेज जब भारत से गए तो जाते-जाते उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी संताने हमेशा-हमेशा के लिए भारतीयों पर राज करती रहे। यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि हम अंग्रेज अधिकारी एओ ह्यूम द्वारा स्थापित कांग्रेस पार्टी या नेहरू-गांधी परिवार की बात नहीं कर रहे। यह कहानी एंग्लो-इंडियन समुदाय के बारे में है। 

एंग्लो-इंडियन कौन?

    अंग्रेज भारत में लगभग 200 वर्ष तक रहे। इस दौरान जिन गोरे अफसरों ने भारतीय स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध बनाए उनसे पैदा संताने एंग्लो-इंडियन कहलाती हैं। सामान्य रूप से वे भारतीय महिलाओं को अपनी रखैल या उप-पत्नी के रूप में रखा करते थे। धीरे-धीरे उनसे पैदा संतानों का एक पूरा समुदाय बनता गया। ऐसे लोग जिनकी पैतृक भूमि तो ब्रिटेन है, लेकिन मातृभूमि भारत है। ईसाई मानकों के अनुरूप शुद्ध-खून (pure blood) वाला ना होने के कारण गोरे ब्रिटिश इन्हें निम्न मानते थे। 

एंग्लो इंडियन: कांग्रेस को अंग्रेजो के बच्चो से इतना प्यार | Why Anglo-Indians So Special | Congress's Colonial Mentality

भारत मे एंग्लो इंडियन की संख्या

    एंग्लो इंडियन व्यक्तियों के नाम और जीवन शैली ईसाइयों जैसी हैं। लेकिन वे दिखने और बोलचाल में भारतीय होते हैं। अंग्रेज जब भारत छोड़कर जाने लगे तो अधिकांश ने अपनी भारतीय उपपत्नियों और उनसे पैदा बच्चों को यहीं छोड़ दिया। हालांकि बाद के समय में कुछ एंग्लो इंडियन लोग यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। वर्ष 1951 की जनगणना में एंग्लो इंडियन लोगों की संख्या लगभग 3 लाख थी। जो कि 2011 में घटकर मात्र 56,000 रह गई। एंग्लो इंडियन लोगों के संगठन अपनी संख्या 4 लाख तक होने का दावा करते हैं। किंतु यह आंकड़ा संदेहपूर्ण है।

एंग्लो इंडियन: कांग्रेस को अंग्रेजो के बच्चो से इतना प्यार | Why Anglo-Indians So Special | Congress's Colonial Mentality

संविधान में स्पेशल व्यवस्था

    भारत छोड़कर जा रहे अंग्रेजों ने अपनी उपत्नियों और उनसे पैदा संतानों की व्यवस्था यहीं पर कर दी। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से कहकर एंग्लो इंडियन समुदाय को भारत में स्पेशल दर्जा दिलवा दिया। भारत के संविधान का अनुच्छेद-366 दो एंग्लो इंडियन समुदाय को परिभाषित करता है। अनुच्छेद-331 बनाकर एंग्लो इंडियन समुदाय को संसद और राज्यों की विधानसभाओं में आरक्षण दे दिया गया। यानी हमारी शासन व्यवस्था में अंग्रेजों की संतानों को रखना संवैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया गया। 

एंग्लो इंडियन: कांग्रेस को अंग्रेजो के बच्चो से इतना प्यार | Why Anglo-Indians So Special | Congress's Colonial Mentality

   कांग्रेसी सिस्टम में एंग्लो इंडियन लोगों को सामान्य भारतीयों से अलग एक नोबल क्लास की तरह माना गया। उन्हें विशेषाधिकार दिए गए। मात्र लगभग 1 लाख की संख्या वाले समुदाय के दो-दो सदस्य संसद और एक-एक सदस्य 13 विधानसभाओं के लिए मनोनीत होते रहे। जनसंख्या के अनुपात में ऐसा प्रतिनिधित्व भारत के किसी भी सामाजिक समूह को नहीं मिला हुआ है। इन्हें किसी भी सामान्य सांसद या विधायक की तरह सारी सुविधाएं और वेतन भत्ते मिलते थे। 

एंग्लो इंडियनों के आरक्षण का अधिकार?

    70 वर्ष तक यह व्यवस्था बेरोक-टोक चलती रही। अंतिम बार 2009 में कांग्रेस सरकार ने इसको 10 साल के लिए बढ़ाया था। वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्टिकल-331 को संशोधित करके संसद और विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के नाम पर आरक्षित सीट को खत्म कर दिया। कांग्रेस ने इसका कड़ा विरोध किया। संभवत अपने गोरे संस्थापकों के प्रति अटूट निष्ठा के कारण भारत का संविधान समानता का अधिकार देता है। 

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   अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ों को उनके सामाजिक, शैक्षिक आधार पर आरक्षण देने की बात समझ में आती है। लेकिन एंग्लो इंडियनों को किस आधार पर आरक्षण दिया गया? सिवाय इसके कि वे अंग्रेजों के बच्चे हैं। एंग्लो इंडियन औसत भारतीयों की तुलना में कई गुना संपन्न भी थे। मजहबी समुदाय की तरह एंग्लो इंडियन भी दावा करते हैं कि उन्होंने भारत में रहना चुना था। जबकि तथ्य कुछ और ही हैं। मजहबी समुदाय अलग पाकिस्तान लेने के बाद भी वहां नहीं गया। एंग्लो इंडियन इसलिए इंग्लैंड नहीं जा पाए, क्योंकि उनके गोरे पिता उन्हें अपने साथ लेकर गए ही नहीं। 

कांग्रेसी मानसिकता से सावधान

   एंग्लो इंडियन समुदाय का इतिहास चाहे जो भी रहा हो! वे आज भारत की मुख्यधारा का हिस्सा हैं। यूरोपीय ईसाइयों ने भले ही उन्हें तुच्छ माना हो, लेकिन भारतीयों ने कभी उन्हें अलग नहीं माना। एंग्लो इंडियन समुदाय की यह कहानी जानना आवश्यक है। ताकि हमें पता रहे कि स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस औपनिवेशिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कितनी गंभीर रही है। यह सोचना भी आवश्यक है कि क्यों किसी ने इसका विरोध नहीं किया। सभी प्रकार के विदेशी मजहबों को विशेषाधिकार देने, भारतीयों विशेष रूप से हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने वाली कांग्रेसी मानसिकता को समझना और उससे सतर्क रहना अत्यंत आवश्यक है। 


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