मीरपुर: पहले हिन्दू नरसंहार की कहानी | The story of the first Hindu massacre

मीरपुर से जान बचाकर आए हिंदुओं के परिवार हर वर्ष कार्यक्रम करते हैं, ताकि अपनी नई पीढ़ी को बता सके कि उनके पूर्वजों के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है।

मीरपुर: पहले हिन्दू नरसंहार की कहानी | The story of the first Hindu massacre
    भगवान शिव का ये प्राचीन मंदिर वर्ष में केवल एक बार दिखाई देता है! बाकी समय गहरे पानी में डूबा रहता है। इसे मंदिर कहे या खंडहर? अब ना तो देवता बचे हैं, ना उनकी पूजा करने वाले! यह भग्न देवालय पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर में है। 
   इसी स्थान पर कभी मीरपुर नाम का एक समृद्ध सांस्कृतिक नगर हुआ करता था। लेकिन स्वतंत्रता के ठीक बाद मीरपुर में रहने वाले 20 हजार हिंदुओं और सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। यहां तक कि उनकी संस्कृति और इतिहास को भी नष्ट कर दिया गया। 
  • क्या है मीरपुर की कहानी? 
  • यहां पीढ़ियों से रह रहे हिंदुओं और सिखों को किसने और क्यों मारा? 
  • क्यों आज मीरपुर और उसकी ऐतिहासिक विरासत पानी के अंदर डूब चुकी है? 
   15 अगस्त वर्ष 1947 को भारत स्वतंत्र होने के मात्र दो महीने बाद यानी अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कबाइलीयों के भेष में जम्मू कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। उन दिनों राजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर के शासक थे। 

मुस्लिम सैनिकों का विश्वासघात

   राजा हरि सिंह की डोगरा आर्मी में बड़ी संख्या में मुस्लिम सैनिक भी थे। राजा को विश्वास था कि उनकी सेना के मुस्लिम सैनिक भी कश्मीरी हैं, इसलिए वे उनका ही साथ देंगे। लेकिन यही सेकुलरिज्म राजा हरि सिंह को भारी पड़ गया। 
    लगभग हर मोर्चे पर मुस्लिम सैनिकों ने विश्वास घात किया। वे मजहब के नाम पर पाकिस्तानी सेना के साथ मिल गए। 
नीरपुर के निवासी हिंदुओं और सिखों ने घरों पर लाल झंडा फहरा कर संदेश दिया कि “हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, लड़कर मातृभूमि की रक्षा करेंगे!”
मीरपुर कस्बे के चित्र

आत्मसमर्पण नही! बल्कि लडेंगे

   25 नवंबर 1947 को मीरपुर पर पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया। नगर की घेरेबंदी के बाद पाकिस्तानी सेना ने घोषणा की कि “सारे हिंदू और सिख मकानों पर सफेद झंडा लगा दें, इसे वे आत्मसमर्पण के लिए उनकी सहमति मानेंगे!” लेकिन नीरपुर के निवासी हिंदुओं और सिखों ने घरों पर लाल झंडा फहरा कर संदेश दिया कि “हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, लड़कर मातृभूमि की रक्षा करेंगे!”  

भारत की सेना सहायता के लिए नही पहुँची

    मीरपुर के लोगों को विश्वास था कि जम्मू कश्मीर स्टेट या भारत की सेना उनकी सहायता के लिए अवश्य आएगी। तब तक जम्मू कश्मीर राज्य का विलय भारत में हो चुका था, लेकिन दुर्भाग्य से मीरपुर के लोगों तक कोई सहायता नहीं पहुंची। पाकिस्तानी सेना के आगे मीरपुर के सामान्य लोग अधिक देर टिक नहीं सके। कुछ ही घंटों में वहां के सचिवालय पर पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया गया। 
लगभग हर मोर्चे पर मुस्लिम सैनिकों ने विश्वास घात किया। वे मजहब के नाम पर पाकिस्तानी सेना के साथ मिल गए।

    पाकिस्तानी सैनिकों ने मीरपुर में रहने वाले लगभग 20 हजार हिंदू और सिखों को मौत की घाट उतार डाला। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल कर अपनी जान बचाई। लगभग ढाई हजार लोग किसी तरह बच निकले। कई दिन तक भूखे प्यासे पैदल चलकर वे जम्मू तक पहुंचे। 

पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों में समझौता

    मीरपुर में हुई मजहबी बर्बरता की कहानी उनके माध्यम से ही लोगो को पता चली। मीरपुर पर आक्रमण के लिए पाकिस्तानी सेना ने कबाइलीयों और पठानों के साथ एक समझौता किया था। तय हुआ था कि वहां रहने वाले हिंदुओं और सिखों की सारी संपत्ति पाकिस्तान सरकार की होगी और उनकी महिलाएं और बच्चे पठानों और कबाइलीयों की संपत्ति होंगे। 
    राजा हरि सिंह की सेना के मुस्लिम सिपाहियों ने भी इस नरसंहार में खुलकर हिस्सा लिया। यह बिल्कुल वैसे ही था जैसे वर्ष 1565 में हुए तालीकोट युद्ध में विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ था। सेकुलरिज्म की नीति कैसे अंतिम हिंदू साम्राज्य विजयनगर के अंत का कारण बनी इस बारे में हमारे पोस्ट के लिंक दिया गया है। 

मुस्लिम पड़ोसियों ने विश्वासघात किया

   मीरपुर के हिंदुओं के साथ असली विश्वासघात किया उनके ही मुस्लिम पड़ोसियों ने। बंटवारे के बाद मीरपुर में रहने वाले कई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गये थे। उन्होंने ही पाकिस्तानी सेना को मीरपुर की भौगोलिक परिस्थितियों और रणनीति के बारे में बताया था। अन्यथा पाकिस्तानी सेना कभी मीरपुर पर इतनी आसानी से विजय नहीं पा सकती थी। 

भारत सरकार ने कुछ नही किया

    स्वतंत्रता के दो महीने के अंदर ही भारत के पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया वहां के अधिकांश पुरुषों और बच्चों को मार डाला गया। महिलाओं और बच्चियों को मजहबी दरिंदों ने लूट के माल की तरह आपस में बांट लिया। लेकिन तत्कालीन भारत सरकार ने उनके लिए कुछ किया हो ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता। 

हिन्दू नरसंहार भारत के इतिहास से गायब है

   भारत का पूरा शासन तंत्र हिंदुओं के नरसंहार के साथ सहज था। मीरपुर तकनीकी रूप से आज भी भारत के मानचित्र का अंग है। लेकिन वहां पर हुए हिंदू-सिख नरसंहार को इतिहास की पुस्तकों में कभी कोई स्थान नहीं मिलने पाया। दिल्ली के लाजपत नगर में मीरपुर बलिदान भवन बना हुआ है। यहां पर मीरपुर से जान बचाकर आए हिंदुओं के परिवार हर वर्ष कार्यक्रम करते हैं, ताकि अपनी नई पीढ़ी को बता सके कि उनके पूर्वजों के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है। 
दिल्ली के लाजपत नगर में मीरपुर बलिदान भवन
दिल्ली के लाजपत नगर में मीरपुर बलिदान दिवस

    जिस मीरपुर में 20 हजार हिंदुओं और सिखों का नरसंहार हुआ, वह आज इस गहरे पानी में डूब चुका है। पाकिस्तान कब्जे के बाद ब्रिटिश इंजीनियर्स ने सिंधु नदी जल संधि के अंतर्गत यहां झेलम नदी पर मंगला डैम बनाया है। 1961 में इस डैम में पूरा मीरपुर जिला समा गया। पास में ही नया मीरपुर बसाया गया है, जिसमें लोगों को विस्थापित कर दिया गया। गर्मियों में इस डैम का पानी जब नीचे उतरता है तो मीरपुर के हिंदू अतीत की स्मृतियां ताजा हो जाती हैं। 
दिल्ली के लाजपत नगर में मीरपुर बलिदान भवन
दिल्ली के लाजपत नगर में मीरपुर बलिदान भवन

रामकोट किला बांध में डूबा है

   इस डैम के एक किनारे पर मीरपुर का ऐतिहासिक रामकोट किला है। खंडहर हो चुका यह किला भी मीरपुर के हिंदू इतिहास गवाही देता है। किले में एक बहुत प्राचीन शिव मंदिर हुआ करता था, इसका शिवलिंग आज भी वहीं पर उपेक्षित पड़ा हुआ है। पूजा पाठ और जलाभिषेक की तो कल्पना करना भी व्यर्थ है। मीरपुर इकलौता नहीं है! 
पानी मे जलमग्न रहने वाला मीरपुर कस्बा
पानी मे जलमग्न रहने वाला मीरपुर और एक मंदिर

    पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुओं से मजहबी विश्वासघात की ऐसी कहानियां बिखरी पड़ी है। यह सब इतिहास के वे सबक है, जिन्हें ना केवल रखना होगा बल्कि अगली पीढ़ी को भी बताना होगा। ताकि सेकुलरिज्म के नाम पर हिंदुओ और हिंदुओं की मातृभूमि के साथ छल करने का साहस अब कोई ना करने पाए। 


Post a Comment

Previous Post Next Post