जब इंदिरा ने कृपलानी को कांग्रेस का क्लर्क बताया!

कृपलानी ने कहा था, “ये स्वाभाविक है! इंग्लैंड से हाल में वापस आई एक युवा स्त्री यह सोच भी कैसे सकती है कि एक जनरल सेक्रेटरी खुद अपने कपड़े धोता है?”
 
1963 का अमरोहा उपचुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने आचार्य जेबी कृपलानी के विषय में कहा था, "कौन कहता है कि कृपलानी नेता हैं? यह कृपलानी को लेकर उनका इकलौता बयान नहीं था।
    1963 का अमरोहा उपचुनाव था। आचार्य जे.बी. कृपलानी विपक्ष के उम्मीदवार थे। कांग्रेस उम्मीदवार हाफिज मोहम्मद इब्राहिम के प्रचार में पार्टी और पूरी सरकार ने अपनी ताकत झोंक रखी थीं इंदिरा गांधी भी प्रचार के मैदान में थीं।
   प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने कृपलानी के विषय में कहा था, “कौन कहता है कि कृपलानी नेता हैं? वे तो ए.आई.सी.सी. दफ्तर में सिर्फ क्लर्क थे!” इसी चुनाव में एक दूसरे मौके पर उन्होंने कहा, “जब मैं लंदन से आई और कृपलानी को देखा तो ताज़्जुब हुआ! क्या यही आदमी कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी है? उस दिन के बाद मेरी कोशिश रही कि उनका चेहरा फिर न देखूं!”

राष्ट्रीय! मैं तो घर का भी नेता नहीं

   इंदिरा ने भले खिल्ली उड़ाई हो! लेकिन जवाब में कृपलानी संयमित ही रहे। सभाओं में हंसते हुए वे इस मसले पर बोलते थे- 
    “कौन कहता है मैं राष्ट्रीय नेता हूं! मैं तो अपने घर का भी नेता नहीं हूँ! (उन दिनों उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री थीं) जहां तक क्लर्क कहे जाने की बात है तो मेरे पहले इस पद पर उनके दादा मोती लाल नेहरू और पिता जवाहर लाल नेहरू भी रहे हैं। ये क्लर्क क्योंकि कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य ही बन सकते थे, इसलिए वे अध्यक्ष के बाद सबसे शक्तिशाली होते थे।”
   इंदिरा की उन्हें दोबारा न देखने की इच्छा पर कृपलानी ने कहा था, “ये स्वाभाविक है! इंग्लैंड से हाल में वापस आई एक युवा स्त्री यह सोच भी कैसे सकती है कि एक जनरल सेक्रेटरी खुद अपने कपड़े धोता है?”

चुनाव को दिया गया मजहबी रंग

   कृपलानी 1962 में वी.के. कृष्णा मेनन के मुकाबले बंबई में चुनाव हार गए थे। 1963 के अमरोहा उपचुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए स्थानीय लोगों ने उन पर दबाव डाला। वहां की 45 फीसद आबादी मुस्लिम थी। पुराने नवाबों और जमींदारों का वहां अच्छा असर था। 
01 अगस्त 1960 को नई दिल्ली में अपने निवास पर जे.बी. कृपलानी, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी। जे.बी. कृपलानी, जिन्हें आचार्य कृपलानी के नाम से जाना जाता है, एक गांधीवादी समाजवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे! सुचेता कृपलानी पहली महिला मुख्यमंत्री थीं।
आचार्य जेबी कृपलानी सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ
   कृपलानी को चुनाव लड़ने के लिए राजी करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। कांग्रेस ने पहले प्रोफेसर राम शरण को उम्मीदवार बनाया था। कृपलानी के मैदान में आने के बाद केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा के सदस्य हाफिज मोहम्मद इब्राहिम को उनके मुकाबले उतारा गया। हर हाल में कृपलानी की हार पक्की करने के लिए चुनाव को मजहबी रंग दिया गया। बाहर से बुलाए गए तमाम मौलाना और सज्जादनशीं मुस्लिम मतदाताओं के बीच सक्रिय किए गए।
   पहले कृपलानी समर्थन का वायदा करने वाले कई पुराने नवाब कांग्रेस की ओर चले गए। चुनाव के दौरान केंद्र और राज्य के दो दर्जन मंत्रियों ने क्षेत्र में डेरा डाले रखा। कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद को खासतौर पर मुस्लिम इलाकों में ले जाया गया। राजपूत मतदाताओं के बीच चौधरी चरण सिंह को राजपूत नेता के तौर पर पेश किया गया। 
01 अगस्त 1960 को नई दिल्ली में अपने निवास पर जे.बी. कृपलानी, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी। जे.बी. कृपलानी, जिन्हें आचार्य कृपलानी के नाम से जाना जाता है, एक गांधीवादी समाजवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे! सुचेता कृपलानी पहली महिला मुख्यमंत्री थीं।
आचार्य कृपलानी गांधीजी के साथ
     कांग्रेस की ओर से बेहिसाब पैसा खर्च हुआ। हालांकि फिर भी कृपलानी पचास हजार से अधिक मतों से चुनाव जीत गए थे। हाफिज ने माना कि इंदिरा के कृपलानी पर निजी हमलों ने नुकसान किया। पंडित नेहरू ने भी इंदिरा से कहा था कि उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। इंदिरा ने सफाई में कही थी कि आपने खुद वहां न जाकर मुझे मुश्किल में डाल दिया। बाद में इंदिरा ने कृपलानी को पत्र लिखकर अपना पक्ष रखी थी। 

पहले चुनाव 1952 में भी लड़ाई थी

    इससे भी पहले 1952 के पहले लोकसभा चुनाव ने ही आने वाले दिनों की झलक दिखा दी थी। अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा आजादी की लड़ाई में खपाने वाले कृपलानी कांग्रेस के महामंत्री और अध्यक्ष भी रहे। लेकिन आजादी के कुछ दिनों बाद ही वे कांग्रेस छोड़ चुके थे। लोकसभा चुनाव में वे किसान मजदूर प्रजा पार्टी से फैजाबाद में उम्मीदवार थे। गांधी आश्रम की स्थापना और खादी के प्रसार के काम के सिलसिले में वे इलाके में दशकों से सक्रिय थे।
   शुरुआत में लगता था कि कांग्रेस वहां से उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी। पंडित नेहरू इसी राय का हिस्सा थे, लेकिन गोविंद बल्लभ पंत की पहल से स्थानीय नेता ललन कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए गए।

किसी भी रास्ते जीत की जिद

   कृपलानी ये चुनाव हार गए थे। आजादी के बाद लोकसभा के इस पहले चुनाव में सत्ता दल ने जीत के लिए जो हथकंडे अपनाए, उसका आचार्य ने अपनी आत्मकथा My Times में जिक्र किया है। उनके बारे में प्रचार किया गया कि "वे नेता नहीं हैं, बल्कि महिला और विधवा हैं, जो कि क्षेत्र के लिए कुछ कर नहीं सकेंगे। गिनती के लिए जब बैलेट बॉक्स खोले गए तो तमाम की सील टूटी हुई थी।" 
   इस पर सवाल किए जाने पर जवाब मिला कि बॉक्स बैलगाड़ी से ढोए गए, इसलिए टूट-फूट स्वाभाविक थी। इस चुनाव में अलग-अलग उम्मीदवारों के चुनाव चिन्ह बैलेट बॉक्स के बाहर पेस्ट किए हुए थे। कई ऐसे बॉक्स मिले जिसमें बाहर के निशान के विपरीत भीतर दूसरा निशान था। कृपलानी ने लिखा चुनाव में सत्ता दल द्वारा अपनाए इन हथकंडों के जिक्र का उनका मकसद चुनाव नतीजों को झुठलाना नहीं है। 
01 अगस्त 1960 को नई दिल्ली में अपने निवास पर जे.बी. कृपलानी, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी।
01 अगस्त 1960 को नई दिल्ली में अपने निवास पर जे.बी. कृपलानी, उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी। जे.बी. कृपलानी, जिन्हें आचार्य कृपलानी के नाम से जाना जाता है, सुचेता कृपलानी पहली महिला मुख्यमंत्री थीं।

विपन्न विपक्ष और सेना के विमान पर नेहरू

   कृपलानी की हार की एक वजह अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए समय न दे पाना भी था। किसान मजदूर प्रजा पार्टी के अन्य उम्मीदवारों को उनकी जरूरत थी। धन-साधन सभी की किल्लत थी। जैसे-तैसे अपने उम्मीदवारों के इलाकों में वे पहुंच सके थे। दूसरी ओर सत्ता की ताकत थी। 
    तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चुनाव प्रचार में सेना के विमानों का खुलकर उपयोग किया। विपक्ष ने इसकी जबरदस्त आलोचना की। कांग्रेस की सफाई थी कि चुनाव प्रचार में इन विमानों के प्रयोग से सरकार पर कोई अतिरिक्त भार नहीं आ रहा है, क्योंकि विमानों को दुरुस्त और चालू हालत में रखने के लिए प्रतिवर्ष निश्चित घंटों की उड़ान जरूरी होती है। 
   बाद के चुनावों में कांग्रेस ने सेना के विमानों के उपयोग के लिए प्रतीकात्मक भुगतान किया। लेकिन ये सुविधा विपक्ष को हासिल नहीं थी। साधन सम्पन्न सत्ता दल का मुकाबला विपक्ष के लिए अरसे तक मुश्किल बना रहा।

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