क्या वेदों में अवैज्ञानिक बातें हैं?


कार्तिक अय्यर:
   कुछ अतिज्ञानी वामपंथी नवबौद्ध लोग वेदों में कुछ मंत्रों का अर्थ सायण, महीघर, उव्वट, मैक्समूलर आदि वाममार्गी तथा अंग्रेजी विद्वानों के आधार पर अर्थ करते हैं तथा वेदों में अवैज्ञानिकता ढूंढने का कुप्रयास करते हैं। ये कभी अपनी चारपाई के नीचे डंडा फेरकर नहीं देखते कि इनके त्रिपिटक आदि बौद्ध ग्रंथों में कितनी अवैज्ञानिक बातें भरी हैं। वह सब हम लेख के अंत में देंगे, पहले इनके आक्षेपों पर आते हैं।
   डॉ सुरेंद्र कुमार शर्मा 'अज्ञात' नाम के एक वामपंथी बौद्ध ने "क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म" पुस्तक में वैदिक धर्म पर कई आक्षेप किये हैं। उनमें से कई आक्षेप वेदों में अवैज्ञानिक बातों पर भी है।
    सबसे पहले इनके आक्षेपों पर आते हैं, जो ये वेदों में पृथ्वी को गतिहीन होने के विषय में प्रस्तुत करते हैं:-
आक्षेप-१: वेदों में कई जगह पृथ्वी को गतिहीन कहा है! 
(क) यः पृथ्वीं व्यथमानामदृंहत् यः जनास इंद्र। (ऋग्वेद २/१२/२)
'कांपती हुई पृथ्वी को इंद्र ने स्थिर किया है।'
(ख) पृथिवी च ढृढायेन।( यजुर्वेद ३२/६)
'जिस देवता ने पृथ्वी को स्थिर रखा है।'
(ग) विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिंद्रगुप्ताम। (अथर्ववेद १२/१/११)
'अनेक रूपों वाली विस्तृत और अचल भूमि की इंद्र रक्षा करता है।'
उत्तर:- बलिहारी है इस पक्षपात और धूर्तता की! भला ध्रुवा, अचला, ढृढा आदि शब्द के मनमाने अर्थ करके भ्रम फैलाना चाहते हैं। हम एक-एक कर सब मंत्रों का स्पष्टीकरण देते हैं। पाठकगण अवलोकन करें कि डॉक्टर सुरेंद्रकुमार ने कितनी धूर्तबाजी की है:-
(क) व्यथमानम् 'व्यथ' से बना है। इसका अर्थ शब्दकल्पद्रुम में दिया है:- "चाले । भये । इति कवि- कल्पद्रुमः ॥…
चालः (भ्वा०-आत्म०-अक०-सेट् ।) यहां साफ तौर से "चाले" अर्थ गमनार्थक शब्द है।
अतः मंत्रांश का अर्थ होगा:- 
   "हे विद्वानों, चलती हुई पृथ्वी को धारण करता है जो.... सूर्य(इंद्र) जानने योग्य है।" (महर्षि दयानंद ऋग्वेद भाष्य २/१२/१)
   स्वामीजी ने साफ तौर से इसका अर्थ गमनशील पृथ्वी, जिसे सूर्य आकर्षण से बांधता है, ऐसा किया है।
(ख) वाह! ढृढ का अर्थ "स्थिर" यानी गतिहीन कर दिया! सुनिये, स्थिर का का अर्थ भी सर्वथा गतिहीन नहीं होता।
   वाचस्पत्यम्, शब्दसागर और मोइनियर विलियम्स ने इसके ये भी अर्थ किये हैं:- स्थिर mf(आ)n. unfluctuating, durable, lasting, permanent, changeless RV. etc
अर्थात् "अपने मार्ग में सुस्थिर, अपने मार्ग में व्यवस्थित, सदैव रहने वाला,सदाबहार, आदि"।
   प्रकरण के अनुसार यही अर्थ होगा क्यों पृथ्वी अपनी धुरी पर व्यवस्थित रूप से घूमती है, इधर उधर भटकती नहीं इसलिए कहते हैं पृथ्वी स्थिर कहा है। अस्तु। यहां पर "ढृढा" शब्द है, इसका भी "गतिहीन" ये अर्थ नहीं हो सकता। देखिये, जिन आचार्य महीधर को आपने बारंबार उद्धृत किया है, वो क्या कहते हैं:
"सर्वप्राणिधारणं वृष्टिग्रहणं अन्ननिष्पादनं चेति ढार्ढ्यम्।।" (महीधर भाष्य ३२/६)
   अर्थात: 'सब प्राणियों को धारण करना, वर्षा ग्रहण करना, अन्न का निष्पादन- ये पृथ्वी का ढृढपन=ढृढता है।'
यहां पर ढृढ का अर्थ 'कठोर' है। देखिये,
"कर्कशं कठिनं क्रूरं कठोरम् निष्ठुरं ढृढम्।।" (अमरकोश ३/१/७६)
अर्थात: "कर्कश, कठिन, क्रूर, कठोर एवं निष्ठुर-ये ढृढ के पर्यायवाची हैं।"
   मंत्रांश का अर्थ होगा- "जिस ईश्वर ने सूर्यादि तथा पृथ्वी को कठोर (ढृढ)बनाया।" (महर्षि दयानंद भाष्य)
(ग) यहां पर 'ध्रुवा' का अर्थ अगतिशील कर दिया, जबकि यहां ये अर्थ समीचीन नहीं है। मूल शब्द ध्रुव है, जिसका स्त्रीलिंग ध्रुवा है।
१:- मोइनियर विलियम्स ने "ध्रव" का अर्थ;  Permanent, lasting, eternal, unchangeable आदि किया है।
२:-सामान्यतः यह (ध्रुवा) वेदि में स्थिर रहती है (इसी लिए इसका नाम ध्रुवा है)। इसमें आहृत घृत ‘ध्रौव’ कहलाता है, शां.श्रौ.सू. 5.8.2 भाष्य।
३:- "ध्रुवा स्त्री पतिकुले इयम्" आदि मंत्रों में ध्रुवा का तात्पर्य ‘उस’ है, वैसे स्त्री जो अपने मार्ग में सुव्यवस्थित है। उसी प्रकार से पृथ्वी भी अपनी परिधि में सुव्यवस्थित रूप से घमूती है, इधर उधर नहीं जाती।
४:- जैसे गीता में है:-
जातस्य हि ध्रुवोमृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्यच”!
अर्थात: "जीवन और मृत्यु ध्रुव है।"
“यदावगच्छेदायत्यामाधिक्यं ध्रुवमात्मनः” (मनु)
“ध्रुवोऽसि पृथिवीं दृंह ध्रुवक्षिदसि”! (यजु॰)
यहां सब जगह ध्रुव का तात्पर्य है "परमानेंट, एटरनल यानी सनातन, सदाबहार" (शब्दकल्पद्रुम)
५:- ध्रुव स्थिरम्। निश्चितम्। इति हेमचन्द्रः ।६।८९॥ 
(यथा, चाणक्यशतके ।६३। “यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ॥”)
६:- वाचस्पत्यम्:-  "शाश्वते। स्थिरम्।" शाश्वत और स्थिर(मार्ग से अविचल)।
अतः यहां ध्रुवा का अर्थ गतिशून्य नहीं हो सकता।
मंत्र का अर्थ है:- "पृथ्वी नाना प्रकार के प्राणियों से युक्त अपनी मर्यादा से अविचल(ध्रुवा) प्रभु द्वारा या प्रभु के प्रतिनिधि राजा (इंद्र) द्वारा सुरक्षित हुई है।" (पं हरिशरण भाष्य १२/१/११)
(घ) यहां पर भी ध्रुवा शब्द का अर्थ निश्चल नहीं, अपितु अपने सुव्यवस्थित मार्ग पर अडिग-ऐसा होगा ।
इसका अर्थ होगा:-
"अतिशयेन विस्तीर्ण पृथ्वी में, जो मर्यादा में व्यवस्थित है, में विचरण करें।" (पं हरिशरण भाष्य १२/१/१७)
आक्षेप-२-
निघंटु-१/१ में पृथ्वी का नाम "निर्ऋति" दिया है। निर्ऋति का अर्थ गतिशून्य किया है।
उत्तर:- वाह वाह क्या कहना! निर्ऋति का अर्थ दिया निघंटु से और मनमानी खींचतान करके गतिशून्य लिख मारा। भला बताइये कि निर्ऋति का अर्थ "गतिहीन" कहां लिखा है?
१:- आप्टे के शब्दकोष में:-
- Decay, destruction, dissolution; विद्याद- लक्ष्मीकतमं जनानां मुखे निबद्धां निर्ऋतिं वहन्तम् Mb.1.87.9; 5.36.8.
- A calamity, evil, bane, adversity; हिंसाया निर्ऋतेर्मृत्यो- र्निरयस्य गुदः स्मृतः Bhāg.2.6.9; सा हि लोकस्य निर्ऋतिः U. 5.3.
२:- मोनियर ने भी "destruction, evil,calamity" etc अर्थ किया है।
३:- निघंटु का भाष्य है निरुक्त। निरुक्त और निघंटु दोनों के रचयिता महर्षि यास्क हैं। निरुक्त में निर्ऋति के संग गौ शब्द का भी अर्थ दिया है। देखिये:-
"गौः निर्ऋति।।गौरिति पृथिव्या नामधेयम्।
यद् दूरंगता भवति। यच्चास्यां भूतानि गच्छंति।।२।।
तत्र निर्ऋतिरमणादृच्छते कृच्छ्रापत्तिरितरा।।३।।"
(निरुक्त अध्याय २ खंड ५)
   आर्थात: 'गौ पृथ्वी का नाम है क्योंकि ये दूर दूर तक जाने वाली है। साथ में सब प्राणी उसमें रमण करते हैं, अतः पृथ्वी का नाम गौ है।।२।।'
   दुर्गाचार्य इस पर टीका करते हुये लिखते हैं:-
   "निरमणात निविष्टानि रमन्तेsस्यां भूतानीति निर्ऋति। इतरा कृच्छ्रपत्तिः दुःखसंज्ञिका, निर्ऋति पाप्मा।एका विनिष्टानां भूतानां रमयित्री,एका पुनः कृच्छ्रमापदयित्री ।"-दुर्गाचार्य।
   'अर्थात्- पृथ्वी में सब प्राणी आनंद पाते हैं इसलिए इसका नाम निर्ऋति है। साथ ही, दुःखसंज्ञावाली पापिनी होने से ये निर्ऋति है। प्राणियों को आनंद देने व दुःखों को हरकर नाश करमे वाली होने से पृथ्वी निर्ऋति है।।'
   इसका तात्पर्य है कि “पृथ्वी दुःख हरकर सब प्राणियों को सुख देती है, जिस प्रकार से मां अपने शिशु सब प्रकार के दुःख सहकर भी सुख देती है, उसी प्रकार पृथ्वी भी है । चाहे कितने ही पापी क्यों न हो, फिर भी पृथ्वी सबको धारण करती है तथा समान रूप से आनंदित करती है। इसलिये इसका नाम निर्ऋति है।
   निर्ऋति शब्द का संबंध दूर-दूर तक 'गतिशून्यता' से नहीं है।”
   अमरकोश- "अलक्ष्मी निर्ऋति।।" -अशोभा (दरिद्रता) का नाम निर्ऋति है।'
कहिये पोपजी! शर्म तो आती न होगी झूठ बोलने में! अगले लेख में आगे के आक्षेपों का जवाब लिखेंगे।

।। ओ३म्।।

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