Abdul Sameer Shaikh:
एक थे मुस्तफा अक्कड! जन्म तो सिरिया मे लिया था लेकिन कहलाते सिरियन-अमेरिकन थे। 1976 मे इस्लाम पर एक फिल्म बनाने की सोची, लेकिन इतनी हिम्मत तो थी नही पुरी स्टोरी ले के जगह-जगह घूमते रहे। अल-अझार विश्वविद्यालय, मिस्र ने शायद स्टोरी पढी और फिल्म बनाने की अनुमति कुछ शर्तो पर दे दी । लेकिन विश्व मुस्लिम लीग, सऊदी अरब ने अनुमति नही दी। तमाम आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद आखिर मे फिल्म तैयार की गई। फिल्म का नाम रखा गया "अल-रिसाला” ( अंग्रेजी मे "द मैसेज” ) फिल्म का प्लाट पैगम्बर मुहम्मद साहब के जन्म से लेकर उनके मक्का विजय तक थी।
इस फिल्म मे भारत के ए.आर. रहमान ने संगीत दिया था। फिल्म का निर्माण जिन शर्तो पर था वो ये थी कि “पैगम्बर मुहम्मद, उनकी पत्नियों, बेटी, दामाद व प्रथम खलीफा अबू बकर के शक्ल और संवाद नही होंगे। यानी कोई कलाकार इन लोगो किरदार को चित्रित नही करेगा नही इन्हे दिखाया जायेगा।” और ऐसा हुआ भी। कोई भी विवास्पद कंटेंटस नही थे। इस्लामिक निर्देशों के अनुसार ही फिल्म बनी थी ! खैर फिल्म बन गई और रिलीज हो गई। यूरोप अमेरिका सहित मुस्लिम देशों मे फिल्म दिखाई जाने लगी।
2008 मे किसी ने "अल-रिसाला" फिल्म को हिंदी व उर्दू मे डब करके भारत मे रिलीज करने की सोची। हैदराबाद मे एक थियेटर मे स्क्रीनिंग रखी गई, लेकिन हैदराबाद मे शान्ति-दूतों का हंगामा शुरू हो गया। जम के हंगामा हुआ। हाँ इस बीच वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लड़ने वाले सिकुलर-लिबरल योद्धा कही बिल मे छुप गये। बुर्क़ा मे ही शायद घर से निकलते थे ?
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी भी कहाँ पीछे रहते। मामले को राज्य की विधान सभा मे उठा दिया। राज्य के गृह मंत्री के.जेना रेड्डी ने सदन मे वादा किया कि "फिल्म के विषय वस्तु का अध्ययन किया जायेगा और फिल्म की तब तक स्क्रीनिंग नही की जायेगी जब तक मुस्लिम धर्म गुरू और मुस्लिम नेता इसे देख नही लेते और अनुसमर्थन नही दे देते”।
फिर क्या था अंधेरी के एक थियेटर ने प्राईवेट स्क्रीनिंग रखी गई। तमाम मुस्लिम नेता, उलेमा आदि बुलाये गये और फिल्म देखा। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष ने भी देखा.... एप्रूव किया। इसके बाद फिल्म की स्क्रीनिंग हुई।
पता नही कितने लोगो ने देखी थी इस फिल्म को लेकिन मैने तो C.D ला के देखी थी। अब ये नही बता सकता कि C.D. पाईरेटेड थी या नही?
इस फिल्म मे भारत के ए.आर. रहमान ने संगीत दिया था। फिल्म का निर्माण जिन शर्तो पर था वो ये थी कि “पैगम्बर मुहम्मद, उनकी पत्नियों, बेटी, दामाद व प्रथम खलीफा अबू बकर के शक्ल और संवाद नही होंगे। यानी कोई कलाकार इन लोगो किरदार को चित्रित नही करेगा नही इन्हे दिखाया जायेगा।” और ऐसा हुआ भी। कोई भी विवास्पद कंटेंटस नही थे। इस्लामिक निर्देशों के अनुसार ही फिल्म बनी थी ! खैर फिल्म बन गई और रिलीज हो गई। यूरोप अमेरिका सहित मुस्लिम देशों मे फिल्म दिखाई जाने लगी।
2008 मे किसी ने "अल-रिसाला" फिल्म को हिंदी व उर्दू मे डब करके भारत मे रिलीज करने की सोची। हैदराबाद मे एक थियेटर मे स्क्रीनिंग रखी गई, लेकिन हैदराबाद मे शान्ति-दूतों का हंगामा शुरू हो गया। जम के हंगामा हुआ। हाँ इस बीच वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लड़ने वाले सिकुलर-लिबरल योद्धा कही बिल मे छुप गये। बुर्क़ा मे ही शायद घर से निकलते थे ?
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी भी कहाँ पीछे रहते। मामले को राज्य की विधान सभा मे उठा दिया। राज्य के गृह मंत्री के.जेना रेड्डी ने सदन मे वादा किया कि "फिल्म के विषय वस्तु का अध्ययन किया जायेगा और फिल्म की तब तक स्क्रीनिंग नही की जायेगी जब तक मुस्लिम धर्म गुरू और मुस्लिम नेता इसे देख नही लेते और अनुसमर्थन नही दे देते”।
फिर क्या था अंधेरी के एक थियेटर ने प्राईवेट स्क्रीनिंग रखी गई। तमाम मुस्लिम नेता, उलेमा आदि बुलाये गये और फिल्म देखा। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष ने भी देखा.... एप्रूव किया। इसके बाद फिल्म की स्क्रीनिंग हुई।
पता नही कितने लोगो ने देखी थी इस फिल्म को लेकिन मैने तो C.D ला के देखी थी। अब ये नही बता सकता कि C.D. पाईरेटेड थी या नही?
अब प्रश्न ये है कि जब फिल्म को पहले ही इस्लामिक राष्ट्रो मे अनुमति दी जा चुकी थी और मिस्र के विश्वविद्यालय के एप्प्रूवल से बनाई गई थी तो भारत मे स्क्रीनिंग होने के पहले हंगामा क्यों?
और उस समय ये लिबरल, सिकुलर और वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पुरोधा किस बिल मे छुप गये थे ?? फिर सैंसर बोर्ड तो उस समय भी था ...?
"रानी पद्ममावती" फिल्म के विवाद के मूल मे बस यही है कि .. “राजपूत मांग कर रहे है कि फिल्म की रिलीज के पहले कम से कम राजपूत के कुछ नेताओं या राज घरानों को फिल्म दिखा दिया जाये..!” सजय लीला भंसाली व उनके समर्थक बस एक तर्क दे रहे है कि ..हम सैंसर बोर्ड के प्रति जबाव देह है, प्राईवेट स्क्रीनिंग नही करेंगे।
जब "अल-रिशाला" जैसी फिल्मों की प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये राज्य के गृह मंत्री सदन मे तैयार हो जाते है ...डिस्ट्रीब्युटर तैयार हो जाते है ..तो "पद्मावती" की क्यो नही? जब एक बार विवाद सुलझाने के लिये कोई "प्रथा" चला दिया तो ...दूसरी बार क्यु नही ??
अब जब प्रथा चला दिया राजकीय संस्थाओ के सहयोग से, तो इसे भी विधि का बल प्राप्त होगा ही? तो पद्मावती का भी कराईये प्राईवेट स्क्रीनिंग। य़े धर्म के आधार पर भेद भाव क्यो ?
और राज्य मे शांति बहाली के लिये गृह मंत्री लोग अब क्या कर रहे है?? क्यु नही के.जेना. रेड्डी की तरह राजपूत नेताओ को अश्वासन देते ?? प्राईवेट स्क्रीनिंग करा कर विवाद खत्म करे ? और अगर भंसाली प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये तैयार नही होते तो ...शान्ति भंग के लिये वो खुद जिम्मेदार होंगे ?
अब जब प्रथा चला दिया राजकीय संस्थाओ के सहयोग से, तो इसे भी विधि का बल प्राप्त होगा ही? तो पद्मावती का भी कराईये प्राईवेट स्क्रीनिंग। य़े धर्म के आधार पर भेद भाव क्यो ?
और राज्य मे शांति बहाली के लिये गृह मंत्री लोग अब क्या कर रहे है?? क्यु नही के.जेना. रेड्डी की तरह राजपूत नेताओ को अश्वासन देते ?? प्राईवेट स्क्रीनिंग करा कर विवाद खत्म करे ? और अगर भंसाली प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये तैयार नही होते तो ...शान्ति भंग के लिये वो खुद जिम्मेदार होंगे ?
ये जो कथित सिकुलर लिबरल लोग "अल-रिशाला" के समय पर बिल मे क्यु छुप जाते है? बेहतर है वो इस बार भी मुद्दे से दूर रहे ..क्युकि तुम्हारा सुविधा जनक विरोध ही क्ट्टरता का कारण है ..?
★★★★★
साभार: Abdul Sameer Shaikh के फेसबुक दीवार से!