आखिर इस महान देश और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के गर्भ में मैं संविधान सभा के रूप में आई। जुलाई- अगस्त 1946 में एक तरफ संविधान सभा के चुनाव चल रहे थे और दूसरी तरफ 24 अगस्त 1946 को अंतरिम सरकार की घोषणा कर दी गई। संविधान सभा के लिए प्रांतीय विधानसभाओं से 296 प्रतिनिधि चुने जाने थे। इनमें से 208 स्थानों पर कांग्रेस को विजय मिली। इनमें नौ को छोड़ सभी सामान्य सीटें थीं। लीग ने मुस्लिमों के लिए आरक्षित 78 में से 73 सीटें जीत लीं।
दिसंबर 1946 में संविधान सभा का विधिवत उद्घाटन हुआ। अंतरिम सरकार में शुरुआत में पंडित नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आसफ अली, शरत चंद्र बोस, डॉ. जॉन मथाई, सर शफात अहमद खान, बाबू जगजीवन राम, सरदार बलदेव सिंह, सैयद अली जहीर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, और डॉ. सीएच भाभा शामिल थे।
ग्यारह सहयोगियों के साथ पंडित नेहरू ने 2 सितंबर 1946 को शपथ ग्रहण की। 26 अक्टूबर को अंतरिम सरकार का पुनर्गठन किया गया। इसमें सैयद अली जहीर, शरत चंद्र बोस और सर शफात अहमद खां को हटाकर मुस्लिम लीग के पांच सदस्यों को शामिल कर लिया गया। बाद में नए भारत के निर्माण की
नेहरू जी की अपील का विभिन्न दलों ने स्वागत किया। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नेहरू जी की अपील पर जाने-माने शिक्षाविद् डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एन गोपाल स्वामी अय्यंगर, वीटी कृष्णमाचारी, डॉ. भीमराव आम्बेडकर और सीडी देशमुख अंतरिम सरकार में शामिल हो गए।
अंततः सत्ता के निर्बाध हस्तांतरण के लिए लॉर्ड लुई माउंटबेटन 22 मार्च 1947 को भारत आए। यहां आते ही उन्हें यह दिव्य अनुभूति हुई कि कांग्रेस और लीग का मिलकर काम करना संभव ही नहीं है। अंतरिम सरकार में भी और संविधान सभा में भी। सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो चुकी थी। इसे देखते हुए स्पष्ट हो गया था कि विभाजन को टाला नहीं जा सकता। गृहयुद्ध टालने का यही एक रास्ता सूझ रहा था।
आखिर कांग्रेस ने भी विभाजन को अवश्यंभावी मान लिया। वायसराय ने इसके लिए 14-15 अगस्त 1947 का दिन तय कर दिया। विभाजन के दंश के साथ, आख़िर देश आजाद हो गया। आजादी का जश्न मनाया गया। इधर हिंदुस्तान में। उधर पाकिस्तान में।