मुग़ल बादशाह अकबर शाह ईस्ट इंडिया कंपनी से अपनी पेंशन बढ़ाने के चक्कर में थे। लाल क़िले से पालम तक सिमटी मुग़ल सल्तनत के बादशाह ने राजाराम मोहन राय को इंग्लैंड भेजा अपना राजदूत बना कर। राजा की उपाधि भी दी ताकि इंग्लैंड में वो उनका पक्ष रख सकें। ख़ैर हुआ कुछ नहीं। राजाराम मोहन इंग्लैंड में मरे और वहीं दफ़नाये गये। भारत में बादशाह अकबर शाह बड़ी क़िल्लत में चल बसे और फिर अंतिम मुग़ल बादशाह बने बहादुर शाह ज़फ़र, जिन्हें उनके अब्बा लौंडेबाज़ी के चलते नापसंद किया करते थे।
जिस समय ज़फ़र ने सल्तनत सँभाली, ठीक उसी समय इंग्लैंड में क्वीन विक्टोरिया ने गद्दी सँभाली। दोनों की उम्र लगभग एक समान और ठीक इसी समय महाराज रणजीत सिंह स्वर्ग सिधारे, वर्ष था १८३९। महाराज रणजीत सिंह कहते थे- "मेरे मरने के बाद भी मेरी जूती दस साल तक राज करेगी।" महाराजा का कहना बिलकुल ठीक था।
ठीक दस साल बाद यानी १८४९ में महाराजा का साम्राज्य भरभराकर ख़त्म हो गया और अंग्रेजों ने पंजाब पर क़ब्ज़ा कर लिया। ऐसा नहीं था कि महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र आदि ना थे, किंतु अंदरूनी कलह ने तो बड़े बड़े साम्राज्य डुबाये है। महाराजा खड़क सिंह
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने बड़े लड़के खड़क सिंह को अपने जीते जी युवराज घोषित कर दिया था और राजा ध्यान सिंह को अपना वज़ीर नियुक्त कर कौल लिया कि वो खड़क सिंह के प्रति वफ़ादार रहेंगे। जब महाराजा रणजीत सिंह का चार साल की बीमारी बाद देहांत हुआ तो राजा ध्यान सिंह ने चिता पर महाराजा के चरण छू क़सम खाई कि वो खड़क सिंह और खड़क सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह के वफ़ादार रहेंगे।
किंतु महाराज बनते ही खड़क सिंह ने ध्यान सिंह को हटा राजा चेतसिंह को वज़ीर बना दिया। यहाँ से महाराजा रणजीत सिंह के वंश की कलह ने विराट ज्वाला का रूप धारण किया।
महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र खड़कसिंह महाराज बने! उनकी मुख्य पत्नी चाँद कौर थी और पुत्र उन्नीस वर्षीय नौनिहाल सिंह।
खड़क सिंह का चरित्रचित्रण इतिहासकारों ने बड़ा अलग-अलग लिखा है, किंतु उनके विदेशी डॉक्टर का कथन था कि खड़क सिंह अफ़ीम की दो दैनिक खुराक लेते और अफ़ीम की पिनंक में टन्न रहते। अपने पुराने वफ़ादार राजा ध्यान सिंह को दरबार से बेदख़ल कर देने वाले खड़कसिंह की अब राजा चेतसिंह से गहरी छनती थी।
कश्मीर के राजा गुलाब सिंह डोगरा के भाई ध्यान सिंह ने रानी चाँद कौर और नौनिहाल सिंह को विश्वास में लेके एक दिन खड़क सिंह को बेहोशी की हालत में क़ैदी बना लिया और चेतसिंह का क़त्ल कर दिया। नौनिहाल सिंह को अब तीसरा महाराज नियुक्त कर खड़क सिंह को धीमा ज़हर दिया गया। ग्यारह महीने में खड़कसिंह का क़िस्सा ख़त्म हुआ और उनकी अंत्येष्टि के ठीक बाद जब नौनिहाल सिंह अपने मित्र के साथ लाहौर के हुजूरी बाग से वापस आ रहे थे तो अचानक वहाँ की दीवार उन दोनों पर गिर पड़ी। मित्र की तो तत्काल मृत्यु हो गई और नौनिहाल सिंह को घायलावस्था में महल ले जाया गया। दो घंटे बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। महाराजा नौनिहाल सिंह
शक की सुई अब शेर सिंह पर आ अटकी! जो महाराजा रणजीत सिंह के दूसरे पुत्र थे और गद्दी पर अपना दावा ठोंक रहे थे। उनकी मुख्य प्रतिद्वंदी थी महारानी चाँद कौर जो रिश्ते में उनकी भाभी थी। चाँद कौर के पति और बेटे का इंतेकाल एक ही दिन हुआ था और वो अब अपनी पुत्रवधू की डिलीवरी का इंतज़ार कर रही थी कि लड़का हो और उसे सिख साम्राज्य का महाराज घोषित किया जाए। महारानी चाँद कौर
किंतु महारानी चाँद कौर का ये ख़्वाब ख़्वाब ही रह गया! क्योंकि उनकी पुत्रवधू ने मृत शिशु को जन्म दिया। क़यास लगाए गए कि शेर सिंह ने उसे ज़हर दिलाया था। चाँद कौर ने गद्दी पर अपना दावा छोड़ दिया, चौथे महाराजा बने शेर सिंह। शेर सिंह ने महाराजा बनते ही चाँद कौर पर चादर डालनी चाही किंतु चाँद कौर ने इनकार कर दिया! ग़ुस्से में शेर सिंह ने उन्हें भी मरवा दिया। महाराजा शेर सिंह
अब शेर सिंह महाराजा तो बन गये थे किंतु दावेदार तो अनेक बाक़ी थे।
शेर सिंह हालाँकि महाराजा बन चुके थे किंतु उनके लक्षण खड़क सिंह की तरह ही थे। अफ़ीम, शराब आदि के शौक़ीन शेर सिंह ने दरबार में अनेक बड़े सरदारों के साथ षड्यंत्र रचे! कुछ मारे गये। फल स्वरूप पंजाब में अनेक गुट बन गए। महाराजा दिलीप सिंह
सरदार अजीत सिंह संधवालिया ने शेर सिंह को नयी बंदूक़ दिखाने के दौरान उन्हें मार डाला। कदाचित अजीत सिंह को रानी चाँद कौर का शासन ज़्यादा प्रिय था। अब गद्दी के वारिस गिने चुने रह गये। राजा ध्यान सिंह के लड़के राजा हीरा सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह की सबसे छोटी रानी ज़िंदन कौर के पाँच वर्षीय लड़के राजा दलीप सिंह को महाराजा घोषित कर सत्ता अघोषित रूप से ख़ुद सँभाली। महारानी जिंद कौर
निरंतर राजा परिवर्तन का असर सेना पर पड़ रहा था, क्योंकि हर दल सैनिकों को साथ रखना चाहता था! फलस्वरूप सेना की शक्ति अपार बढ़ गई, वो लूट मार भी करने लगे। इसी दौरान रानी ज़िंदन कौर के भाई राजा जवाहर सिंह ने हीरा सिंह के विरुद्ध विद्रोह कर सत्ता अपने क़ब्ज़े में करनी चाही। लाहौर में इस काल में केवल षड्यंत्र चल रहे थे। इसी समय कुंवर पिथौरासिंह और कुंवर कश्मीरा सिंह ने गद्दी पर अपना दावा ठोंक दिया! ये दोनों महाराजा रणजीत सिंह के मानस या गोद लिये पुत्र थे।
जवाहर सिंह ने हीरा सिंह को मरवा कर ख़ुद वज़ीर की कुर्सी सँभाली और दोनों मानस लड़कों को भी मरवाया। जवाहर सिंह की इन सब कारगुजरियो को देख सेना के अधिकारी क्रोधित हो उठे और रानी ज़िंदन कौर के समक्ष जवाहर सिंह को हाथी से नीचे गिराकर लात घूसो से मार डाला। रानी अपने भाई का ये हश्र देख अनेक दिन व्याकुल रही, सर के बाल खोल इधर उधर घूमती रही।
महाराजा रणजीत सिंह से खड़कसिंह से नौनिहाल सिंह से चाँद कौर से शेर सिंह से दलीप सिंह। ये सब सत्ता परिवर्तन महज दस वर्षों में हुआ। इन सब किरदारों में दो बात कॉमन थी और बहुत अहम भी!
पहली- इन सब किरदारों के पास कोहिनूर हीरा था। सब ने गद्दी पर बैठने के बाद हीरा धारण किया।
दूसरी- इन सब के दरबार में ब्रिटिश रेसिडेंट और अफ़सर आदि घात लगाये बैठे रहे और मौक़े की तलाश में रहे। राजा दलीप सिंह जब बालक थे, अंग्रेजों को मौक़ा मिला और उन्होंने कहानी पलट दी।
ये थी संक्षेप में महाराजा रणजीत सिंह के वंश की कहानी।
समाप्त!