अक्षय कुमार के मोदी वाले इंटरव्यू पर हंगामा बरपाने वाले अगर करीब 60 साल पहले बनी एक डाक्यूमेंट्री देख लेंगे तो उनकी आवाज़ हलक में ही सूख जाएगी।
सिनेमा हॉल में रिलीज हुई फ़िल्म के हीरो जवाहरलाल नेहरू थे
1957 के आम चुनाव से ठीक पहले सिनेमा हॉलों में रीलीज़ हुई इस डाक्यूमेंट्री का नाम था "Our Prime Minister"। जिसे बनाया था भारत सरकार के "फिल्मस डिविजन ऑफ इंडिया" (Films Division of India) ने! आम चुनाव से ठीक पहले विशुद्ध सरकारी खर्चे पर बनी इस डाक्यूमेंट्री के हीरो थे पंडित जवाहर लाल नेहरू, इस डॉक्यूमेंट्री के सामने अक्षय कुमार का इंटरव्यू भी फेल है।
इस डाक्यूमेंट्री में चाचा नेहरू हिमालयीन पांडा (एक तरह का जानवर जिसे खास तौर से बच्चे राजीव और संजय के लिए प्रधानमंत्री निवास में पाला गया था) को भोजन कराते हुए दिखाई देते हैं और पीछे से नरेटर का वॉइस ओवर आता है, और वो कहता है कि - "प्रधानमंत्री नेहरू रोज़ सुबह पांडा को खुद अपने हाथ से खाना खिलाते हैं, और अगर वो ऐसा नहीं करते तो ये पांडा भूख हड़ताल पर चला जाता है"..!
इस डाक्यूमेंट्री में चाटुकारिता या यूं कहें "नेहरू भक्ति" (नेहरू भक्तों की ये कौम आज भी पाई जाती है) की सारी हदें पार की गई हैं। इसमें चाचाजी कभी गरीबों को खाना खिला रहे हैं तो कभी उनकी तस्वीर बापू के साथ लगाते हुए दिखाई जाती है।
हद तो तब होती है जब बात चाचा नेहरू की दिनचर्या की आती है..! अब तस्वीरों के साथ नरेटर का वाइस ओवर आता है, वो कहता है - "वे सुबह तड़के उठते ही काम में जुट जाते हैं, इसके बाद नाश्ता होता है, जिसमें बेटी इंदिरा और नाती संजय और राजीव शामिल होते हैं, प्रधानमंत्री बेहद खुशमिजाज अंदाज़ में अपनी सुबह की शुरुआत करते हैं और पूरा विश्व उनकी शान में सर झुकाता है। (ये आखिरी लाइन आपको समझ नहीं आई होगी, मुझे भी नहीं आई, आखिर नाश्ते का विश्व के सर झुकाने से क्या संबंध है???)"
लेकिन सबसे मजेदार तो इस डॉक्यूमेंट्री का अंतिम सीन है
एक घड़ी दिखाई जाती है जिसमें रात के 10 बजे हैं, फिर नरेटर कहता है "देखिए रात के 10 बज रहे हैं और प्रधानमंत्री अब भी जागकर काम कर रहे हैं"। इसके बाद एक बार फिर घड़ी दिखाई जाती है.., जिसमें रात के पौने दो बज रहे हैं। नरेटर फिर कहता है - "अब रात के दो बजने वाले हैं और प्रधानमंत्री कुछ घंटों की नींद लेने के लिए जाएंगे"।
फिर अगला शॉट आता है, प्रधानमंत्री आवास की बत्तियां बन्द होती है, फिर एक बार घड़ी दिखाई जाती है। जिसमें सुबह के 8 बज रहे हैं और नेहरू जी अपनी टेबल पर बैठकर काम कर रहे हैं। तब नरेटर कहता है- "6 घंटे की नींद के बाद प्रधानमंत्री एक बार फिर दफ्तर में आ गए हैं, और एक बार फिर भारत के भविष्य के लिए काम में जुट गए हैं।"
तभी तो मैंने कहा कि अक्षय के इंटरव्यू पर हो हल्ला मचाने वाले इस डाक्यूमेंट्री को देख लें तो उनकी आवाज़ हलक में ही रूक जाएगी। सोचिए कैसे ठीक आम चुनाव के पहले सरकारी खर्चे पर "लोकतंत्र के रक्षक" नेहरू का गुणगान किया जाता था।
मैं बार-बार इतिहास का हवाला देता हूं, जानबूझकर देता हूं, क्योंकि लोगों को पता चलना चाहिए कि 2014 के पहले भी इस देश में बहुत कुछ हुआ है। नेहरू को नाम लो तो सिकलुर बुद्धिजीवियों को मिर्ची लग जाती है। कहने लगते हैं कि हर बात में नेहरू का नाम क्यों घसीटा जाता है ???
घसीटा जाएगा... बिल्कुल घसीटा जाएगा... और घसीटना भी चाहिए...
क्योंकि मुझे ये कहने में कोई शुबहा नहीं है कि इस देश में राजनैतिक प्रोपेगेंडा की शुरुआत करने वाला पहला शख्स कोई था, तो वो थे "लोकतंत्र के रक्षक" पंडित जवाहरलाल नेहरू।
नोट - अगर बुद्धिजीवी सिकलुर अक्षय वाले इंटरव्यू से बोर हो गए हों तो उनके आनंद के लिए मैं चाचा नेहरू की इस "चरण-चाट" डॉक्यूमेंट्री का लिंक नीचे दे कर रहा हूं। अवश्य देखें और हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं.. चुनावी तनाव कुछ कम होगा।