अंग्रेजो ने गुरुकुल परंपरा को तबाह किया |
“भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है। भारत माता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शासन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है” -विल डुरांट (1885-1981)
विलियम जेम्स डुरांट या विल डुरांट (Will Durant; ५ नवम्बर १८८५ - ७ नवम्बर १९८१) अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक, इतिहाकार एवं दार्शनिक थे। उनकी कृति 'द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन' (The Story of Civilization) बहुत प्रसिद्ध है। इसके पूर्व उन्होने 'द स्टोरी ऑफ फिलॉसफी' (The Story of Philosophy) लिखी (सन् १९२६) जो बहुत प्रसिद्ध हुई।
इन्होंने 1930 में एक किताब लिखी थी ‘द केस फॉर इंडिया’ (The Case for India)। (यह पुस्तक यह से डाउनलोड कर सकते है ) निष्पक्ष रूप से लिखी इस किताब में उन्होंने विस्तार से बताया कि भारत ब्रिटिश शासन से पहले कैसा था? ब्रिटिशों ने कैसे भारत को लूटा और कैसे भारत की आत्मा की ही हत्या कर डाली? संस्कृत के बारे में उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा? ऐसा क्या पाया होगा कि उन्हें यूरोपियन भाषाओं की जननी संस्कृत नज़र आई। किताब के पहले पेज पर उन्होंने भारत के लिए निजी रूप से एक ‘सम्बोधन’ छोड़ा है। उसका अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ।
( सन् १९११ में न्यूयॉर्क के मॉडर्न स्कूल में अपने शिष्यों के साथ खड़े विल डुरण्ट) |
“इस अध्याय में कहना चाहता हूँ कि भारत के बारे में पुख्ता ढंग से लिखने के मामले में मैं बहुत गरीब सिद्ध हुआ हूँ। किताब लिखने से पूर्व मैंने दो बार भारत के पूर्व और पश्चिम की यात्राएं की। उत्तर से लेकर दक्षिण में बसे शहर देखे। इसके बाद भारत के बारे में उपलब्ध जानकारी के बारे में बहुत पढ़ने के बाद मैं किताब लिखने के लिए तैयार हुआ। अध्ययन के बाद मैंने पाया कि पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता के सामने मेरा ज्ञान बहुत तुच्छ और टुकड़े भर का है। उस सभ्यता के सामने, जिसका दर्शन, साहित्य, धर्म और कला का विश्व में कोई सानी नहीं है। इस देश की अंतहीन धनाढ्यता इसकी धवस्त हो चुकी शान और ‘स्वतंत्रता के लिए शस्त्रहीन संघर्ष’ से अब भी झांकती है।”
“ये सब मैं इसलिए लिख पा रहा हूँ क्योंकि भारत को मैंने बहुत गहराई से महसूस किया है। मैंने यहाँ मेहनती और महान लोगों को अपने सामने भूख से मरते देखा। ये लोग अकाल ये जनसँख्या वृद्धि से नहीं मर रहे थे। इनको ब्रिटिश शासन तिल-तिल कर मार रहा था। ब्रिटेन ने भारत के लोगों के साथ घिनौना अपराध किया है जो इतिहास में दर्ज हो चुका है। ब्रिटिश भारत को साल दर साल मारते रहे और इसके लिए उन्होंने हिन्दू शासकों का ही सहारा लिया। एक अमेरिकन होते हुए मैं ब्रिटिशों के इस अत्याचार की निंदा करता हूँ।”
किताब में विल ने जिक्र किया है कि भारत कोई छोटा-मोटा द्वीप नहीं है। ये एक विशाल देश है, जहाँ पर तीन करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। जब ब्रिटिश भारत आए तो ये देश राजनीतिक रूप से कमज़ोर और आर्थिक रूप से बहुत सक्षम था। मैंने तिरुचिरापल्ली में एक गाइड से सवाल किया कि सैकड़ों साल पहले राजा इतने भव्य मंदिर कैसे बना लेते थे। धन की व्यवस्था कैसे की जाती थी? उस गाइड ने कहा राजा आर्थिक रूप से इतने सक्षम होते थे कि जनता पर बोझ डाले बिना ये काम कर सके। राजा टैक्स लेते थे लेकिन ब्रिटिशों की तरह भारी कर नहीं लगाया जाता था।
जब ब्रिटिश भारत आए तो देश में शिक्षा का एक सुगठित ढांचा हुआ करता था। बच्चे गुरुकुल में पढाई करते थे। ब्रिटिशों ने इस प्राचीन शिक्षा व्यवथा को ध्वस्त कर दिया। इसके बदले में उन्होंने व्यावसायिक स्कूलों को बढ़ावा दिया। ब्रिटिश शासन के समय भारत के सात लाख से भी ज्यादा गांवों में एक लाख से कम स्कुल बचे थे। अंग्रेजों ने देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का आधा हिस्सा तो आते ही तबाह कर दिया था। इसके बाद भारत में शिक्षा आमजन के लिए आसानी से सुलभ नहीं रही।
ये किताब इंटरनेट पर पीडीएफ माध्यम में उपलब्ध है। इसमें विस्तार से बताया गया है कि ब्रिटिशों ने कैसे सोने की चिड़िया को लूट लिया। किताब में आंकड़ों के साथ लेखक ने अपनी बात साबित की है।
लेखक: विपुल विजय रेगे