अर्बन नक्सली

अर्बन नक्सली
    बात लगभग 7 साल पुरानी है। बड़े सरकारी हॉस्पिटल में एक नवयुवक भर्ती था। उसका सहायक एक पैर से दिव्यांग था। बातचीत में पता चला कि वह रोगी का पिता था और अर्धसैनिक बल में कार्यरत था। उसने बताया कि एक बार वह जीप में नक्सल प्रभावित जंगल से जा रहा था, अचानक लैंडमाइन फ़टी और उनसे आगे वाली जीप पूरी तरह उड़ गई। उनकी जीप पीछे थी, इसलिए चोट आई, वह और उसके कई साथी स्थाई विकलांग हो गए। ये अर्धसैनिक उन नक्सलियों को जानते भी नही थे, ये केवल अपनी ड्यूटी कर रहे थे। 

    मैंने यह इसलिए लिखा ताकि जब भी आप लोकतंत्र, आजादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, मानवाधिकार, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक का शोर सुनो तो सावधान हो जाएं। इन नारों के पीछे सैंकड़ो निरपराध सैनिक, अर्धसैनिक और पुलिसकर्मियों का दर्द छिपा है। चित्र में सड़क पर बना बड़ा सा गड्ढा है जो लैंड माइन (बारूदी सुरंग) फटने से बना है।

सेक्युलरिज्म के नियम -

  • आज ज़ब गुजरात से अवैध कब्ज़ा करने वाले घुसपैठिया रोहिंग्या/ बंग्लादेशी को हटाया जा रहा है तो इन्ही अर्बन नक्सलीयों को दर्द हो रहा है। 
  • अफजल गुरू, कसाब और मदनी जैसे आतंकवादियों के प्रति उदासीनता बरती जाए तब तो ऐसे लोग भी सेक्युलरवादी होते है। परन्तु इंस्पेक्टर एमसी शर्मा के बलिदान का समर्थन किया जाए तो वे लोग साम्प्रदायिक बन जाते है।   
  • एम.एफ. हुसैन सेक्युलर है, परन्तु तस्लीमा नसरीन साम्प्रदायिक है, तभी तो उसे पश्चिम बंगाल के सेक्युलर राज्य से बाहर निकाल दिया गया।  
  • इस्लाम का अपमान करने वाला डेनिश कार्टूनिस्ट तो साम्प्रदायिक है परन्तु हिन्दुत्व का अपमान करने वाले करूणानिधि को सेक्युलर माना जाता है।  
  • मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के बलिदान का उपहास उड़ाना सेक्युलरवादी होता है, दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल खड़ा करना सेक्युलरवादी होता है, परन्तु एटीएस के स्टाइल पर सवाल खड़ा करना साम्प्रदायिकता के घेरे में आता है।

    आज मिडिया, न्यायलय, राजनीति और विश्विद्यालय में अर्बन नक्सली प्रभावी हैं। वे एक झूठ का मायाजाल बन रहे हैं और सामान्य आदमी उस में फंस रहा है। आज के युग में जानकारी ही बचाव है। सामान्य हिन्दू का अज्ञान ही इनकी ताकत है। सुचना के स्रोत को ध्यान से देखिए। मिडिया द्वारा एक जनमानस बनाने की कोशिश हो रही है जो बताता है कि लव जेहाद काल्पनिक है, दलित उत्पीडन और मोब लिंचिग वास्तविक है।

   वामपंथियों द्वारा इस तकनीक का बहुतायत में उपयोग किया गया है। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग (जिसे आज कल छद्म सेक्युलर कहा जाता है) को आज वामपंथी यह यकीन दिलाने में सफल हुए हैं कि जो भी समस्या है, वह हिन्दुओं द्वारा प्रदत्त है, बल्कि हिंदुत्व ही सारी समस्याओं की जड़ है। जब भी किसी लिबरल सेक्युलर हिन्दू के मन में आता कि इस्लामी आतंकवाद में कोई समस्या है तो फिर बाबरी मस्जिद के नाम पर कभी दंगों के नाम पर उनके मन में यह संदेह उत्पन्न करने की कोशिश की जाती कि "नहीं हम में ही कुछ ना कुछ खोट है"। 

   कम्युनिष्ट शासन वाले देशों ने कभी भी इस्लामिक शरिया कानून को विचार लायक भी नहीं समझा। उनकी नजर में शरिया कानून ईश्वरीय कानून नहीं है। किसी भी मुस्लिम बहुल देश ने कम्युनिष्ट शासन पद्धति को नहीं माना। 90% मुस्लिम देशों में समाजवाद की बात करना भी अपराध है।

      कम्युनिस्ट भारतीय राष्ट्रवाद के किसी भी शत्रु से सहकार्य करेंगे। भारतीयों को अब सोचना हैवक़्त ज्यादा नहीं है आज इस्‍लामिक आतंकवाद पर यदि कोई बोलना चाहता है तो सबसे पहले ये कम्‍युनिस्‍ट ही आतंकी को बचाने में सहायता करने आते हैं।


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