जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख मौलाना मसूद अजहर कभी कांग्रेस सरकार का दायां हाथ हुआ करता था। पी.वी. नरसिंह राव के जमाने में वह कांग्रेस आकाओं के इशारे पर खतरनाक आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता था। यह खुलासा एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट-क्लार्क द्वारा लिखित एक पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
पुस्तक "Meadow, The: The Kashmir kidnapping that" में लेखकों ने दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस अपराध शाखा के पास मौजूद दस्तावेजों में पता चलता है कि 1995 में जम्मू-कश्मीर से जिन पांच विदेशी पर्यटकों का अपहरण किया गया था, उसमें तत्कालीन कांग्रेस सरकार का हाथ था। यह सब कुछ राज्य में होने वाले चुनाव के मद्देनजर किया गया था।
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इसमें यह भी दावा किया गया है कि राव सरकार ने आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर राज्य में एक नया माहौल बनाने की कोशिश की थी। अजहर के अति कट्टरपंथी संगठन हरकत-उल-अंसार के साथ हिजबुल मुजाहिदीन ने गठबंधन बनाकर इस साजिश को अंजाम दिया था। इसी के बाद आगे चलकर अजहर अफगानिस्तान में तालिबान का जन्म दिया। कंधार से छूटने के बाद जैश को बनाया।
लेवी और स्कॉट ने अपनी पुस्तक "Meadow, The: The Kashmir kidnapping that" में लिखा है कि आतंकवादियों द्वारा अगवा किए गए पर्यटकों की हत्या उनके द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि भारतीय सुरक्षा बल, सेना के राष्ट्रीय राइफल्स के दो बंदूकधारियों ने उन्हें गोली मारी थी। दिल्ली में बैठी सरकार द्वारा इन सैनिकों की सरपरस्ती की गई और आतंकवादियों को इस काम का इनाम दिया गया।
'डीएनए' से बातचीत में लेवी ने कहा कि अपहरणकांड कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। वरिष्ठ अधिकारियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठे किसी शख्स ने राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के अपहरण का नाटक रचा था। इस प्रकरण में मुख्य भूमिका निभा रहे पुलिस महानिरीक्षक राजिंदर टिक्कू आरोपों के चलते लंबी छुट्टी पर चले गए।
क्राइम ब्रांच की फ़ाइल में लिखा है, "आतंकवादी संगठन अल-फरान ने नबी आजाद के नेतृत्व वाली आरआर और एसटीएफ की टीम को पर्यटकों के सौंप दिया था। 24 दिसंबर, 1995 को उन्हें एक नया आदेश मिला। इसके बाद बंधकों को एकत्रित किया गया और उन्हें बर्फ की पहाड़ियों पर ले गए। उसके बाद वह हुआ जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था।"
दक्षिण कश्मीर के एक गांव में सभी बंधकों के शव को दफना दिया गया। उस समय सबसे अधिक चौंकाने वाला वाकया यह हुआ कि नार्वे के एक पर्यटक के बारें में पता करने गई एक विदेशी महिला पर्यटक के साथ चंदनवाणी पोस्ट के आरआर शिविर में यौन उत्पीड़न किया गया।
काजी निसार और मीरवाइज की हत्या
इस किताब में दक्षिण कश्मीर के काजी निसार और मीरवाइज की हत्या पर भी प्रकाश डाला गया है। ये दोनों एचयूए के स्थानीय कमांडर सिकंदर द्वारा काफी सम्मानित थे। पर इसमें इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने खेल किया। आईबी ने यह बात फैला दी की निसार मस्जिद के पैसे चोरी करके सरकार के साथ मिलकर एक नया संगठन तैयार कर रहा है। इसी कारण वहां के बड़े आतंकी गुटों के बीच अनंतनाग में खूनी संघर्ष हुआ। इसी में मिरवाइज और निसार की मौत हो गई।
किताब में किए गए खुलासे पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए जम्मू और कश्मीर कांग्रेस के प्रमुख प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज ने कहा कि “इस वाकये को भूल जाने की जरूरत है। इस समय कश्मीर की शांति की खातिर सामंजस्य बनाने की जरूरत पर बल दिया जाना चाहिए।” बताते चलें कि सोज ने 95 प्रकरण में मुख्य भूमिका निभाई थी।
उन्होंने कहा, ''यह बहुत ही कठिन समय है। लोग खतरे में रह रहे हैं। मुझे नहीं पता कि किताब के लेखक ने क्या लिखा है। पर यह कैसे संभव है कि सरकारी एजेंसियां आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर किसी काम को अंजाम दे सकते हैं। कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी इस मामले में कहां से आ गई?"
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