"बुध्द ने चार वर्णों की उत्पत्ति तथा उनके कर्मों की व्याख्या बौद्ध ग्रंथ पाली के तिपिटक के दीर्घनिकाय मे किया है!"
बुध्द ने पहले चार वर्णों में पहले क्षत्रिय, दूसरे ब्राह्मण तथा तीसरे वैश्य एवं चौथे शूद्र के अतिरिक्त दो और वर्णों का उल्लेख किया है। जिनका नाम श्रमण एवं चांडाल है।
लेकिन यहां बुद्ध स्मृति के अनुसार प्रथम चार वर्णों का और बुध्द के अनुसार उनकी उत्पत्ति का भी उल्लेख किया जाएगा।
1- क्षत्रिय (खत्तिय, महासमत) या राजा (रज्ज)
बुध्द कहते है कि महाजनों द्वारा सम्मत होने से उनका नाम पहले महासम्मत पड़ा। क्षेत्रों (खेतों) का अधिपति होने से दूसरा नाम क्षत्रिय (खत्तिय) पड़ा, धर्म से दूसरे लोगों का रज्जन करता था, इसलिए उसका एक नाम और रज्जन अर्थात राजा पड़ा। इस तरह मंडल का पुराने अग्रण्य अक्षर से क्षत्रिय का निर्माण हुआ। धर्म मे क्षत्रिय ही श्रेष्ठ है, इस धर्म भी पुनर्जन्म मे भी।
2- ब्राह्मण (ब्रमण, बमन, बाभन) आदि
जब पूर्व के लोगों में श्रेष्ठता को लेकर किसी-किसी के मन मे अहंकार, चोरी एवं पाप भाव उत्पन्न हो गये। जो कुछ लोगों ने इस पाप भाव को छोड़ दिया, जिन्होंने छोड़ (बाहा) दिया और वही बाहा या ब्राह्मण कहलाये और जंगल मे रहने लगे। वहीं पर रहते थे, कोई भोजन नहीं बनाते थे, नगरो एवं राजधानियों मे जाकर भोजन मांग कर लाते थे और खाते थे तथा ध्यान करते थे। जिससे इनका दूसरा नाम ध्यायक पड़ा। उसी मे से कुछ लोग ध्यान नहीं करके ग्रामिणों के बीच घूमकर-घूमकर ग्रंथो को लिखते थे, तो नगर के निवासी कहते थे ध्यान नही करते-ध्यान नहीं करते! क्या करते हो? जिससे इनका तीसरा नाम अध्यायक पड़ा।
3- वैश्य (वैश, वैस)
उन्ही पूर्व के प्राणियों में कितने मैथुन (संभोग) आदि क्रियाएं विभिन्न प्रकार के कार्यों में लग गये। मैथून कार्य करने के कारण वेश्यावृत्ति आदि कार्यों के अपभ्रंश से तथा वैश्य मंडल का अग्रण्य होने के कारण वैश्य कहलाये और तभी से इनका नाम वैश्य हुआ।
4- शूद्र (सूद्द)
"...और जो अंत मे प्राणी बचे थे, उनके आचार छूद्र वाले थे। छूद्र आचार, छूद्र व्यवहार करके शूद्र उत्पन्न हुए थे …!"
समीक्षात्मक निष्कर्ष यही कहता है कि बुद्ध यदि मनु से पहले रहे होंगे तो वर्ण व्यवस्था के निर्माता वही थे। उन्होंने केवल चार ही नहीं, छः वर्णों के होने का उल्लेख किया है। हमने आपको बुद्ध के वर्ण व्यवस्था से केवल चार ही वर्णों का उल्लेख किया, बाकी की जानकारी के लिए बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करें, फिर हिंदुओं की सारी जातिवादी, वर्णव्यवस्था के सूत्रधार बौद्ध ही मिलेंगे।
अंत मे एक बात और कि श्रमण केवल ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय ही बन सकते हैं, और बने है। शूद्रों का श्रमण बनने का अधिकार नहीं था! यह सभी बौद्ध ग्रंथों में आपको मिल जायेगा। इसका उदाहरण देख लिजिएगा कि "28 बुद्धों में सभी बुध्द केवल क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण ही बने है। क्योंकि बुद्ध खुद क्षत्रिय वर्ण (खत्तिय वर्ण) के थे।"
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