अगर बात 'महिला सम्मान' की हो तो सबसे पहले मैदान मे भीमवादी नवबौद्ध कूद पड़ते हैं और गौतमबुद्ध तथा आम्रपाली की कहानी सुनाकर बताते हैं कि बुद्ध महिलाओं को कितना सम्मान करते थे। वैसे बुद्ध ने महिलाओं के बारे मे अपने उपदेशों मे काफी घृणित बातें भी कहीं हैं, पर धूर्त नवबौद्ध उसे छुपाने का प्रयास करते हैं।
त्रिपिटक (सुत्तपिटक) के अंगुतर निकाय, पाँचवां निपात (द्वितीय पण्णासक, निवरण वर्ग, माता-पुत्त सुत्त) मे बुद्ध भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुये कहते हैं कि- "भिक्षुओ! उससे भी बात कर लेना जिसके हाथ मे तलवार हो, जो पिशाच हो, और तो और जहरीले सांप के पास भी बैठ जाना जिसका डसा हुआ नही बचता, पर कभी अकेली स्त्री से बात मत करना। जो बुद्धिहीन पुरुष होता है उसे स्त्री अपनी नजरों से, अपने मुस्कुराहट से और अपनी नग्नता से बांध लेती है। स्त्री चाहे फूली हुई हो या मृतावस्था मे हो तब भी उसके पास न बैठे।"
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उक्त कथन से ज्ञात होता है कि बुद्ध महिलाओं के बारे मे कितने अच्छे और सकारात्मक विचार रखते थे?
आगे इसी अंगुत्तर निकाय के दीर्घ चारिका वर्ग-9/10 मे बुद्ध कहते हैं-
"भिक्षुओं! काले सांप के पाँच दोष होते हैं! वह गंदा, बदबूदार, आलसी, डरावना और मित्रद्रोही होता है। इसी प्रकार स्त्रियों मे भी यही पाँचों अवगुण होते हैं! स्त्रियाँ गन्दी, बदबूदार, आलसी, डरावनी और मित्रद्रोहिणी होती हैं।"
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इसके अगले उपदेश मे बुद्ध फिर कहते हैं कि- "भिक्षुओं! काले सांप के अन्य पाँच दुर्गुण यह होते हैं कि वह क्रोधी, द्वेषी, घोर- विषैला, दुष्ट- जिह्वा वाला और मित्रद्रोही होता है। इसी प्रकार स्त्रियाँ भी क्रोधी, द्वेषी, दुष्ट जिह्वा वाली (चुगल-खोरनी) और मित्र-द्रोहिणी होती हैं, तथा अत्यन्त कामुक होने की वजह से घोर विषैली भी होती हैं।"
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अब भीमवादी जिस बुद्ध को महिला- सम्मान का सिम्बल बताते हैं, वही बुद्ध अपने उपदेशों मे स्त्रियों की तुलना जहरीले सर्प से करते थे। वे महिलाओं को क्रोधी, चुगल-खोरनी, विषैली, बदबूदार और अत्यन्त कामुक तक कहते थे।