अगर इतिहास की किताबें सच्ची होतीं, तो शायद दुनिया जान जाती कि कैमरा असल में लुई डागुएरे (Louis Daguerre) का नहीं, बल्कि मुग़ल बादशाह शाहजहाँ का आविष्कार है। लेकिन अफ़सोस, ये साज़िशें हमेशा मुग़लिया तहज़ीब से जलती रही हैं! जैसे कि कभी मुग़लिया मस्जिदें तोड़ी गईं, कभी मुगलों के आविष्कार चुरा लिए गए।
शाहजहाँ! जिसे आमतौर पर ताजमहल का प्रेमी समझा गया, असल में एक ज़बरदस्त “टेक्नोलॉजिस्ट” था। इतिहासकार मानते हैं कि जब वो ताजमहल बनवा रहा था, तभी उसने देखा कि उसकी यादें पत्थर में क़ैद हो रही हैं, लेकिन काग़ज़ पर नहीं। यानी उसने ताजमहल के बनवाने के बारे में एक शब्द भी नही लिखा! यहीं से उसके मन मे एक खयाल आया- “ऐसा कोई औज़ार क्यों न हो, जो वक़्त को तस्वीर में बदल दे?”
आइए, इन तथ्यों पर ग़ौर करें:
1. दीवाने-ख़ास में डार्क रूम:
आगरा किले के एक तहख़ाने में एक कमरा था, जिसे “दीवाने-अक्स” कहा जाता था! जो कुछ इतिहासकारों ने ग़लती से ‘दीवाने-ख़ास’ समझा। असल में वो एक डार्क रूम था, जहाँ शाहजहाँ अपने बनाए ‘कैमरा-ए-आला’ से मुमताज़ बेगम की तस्वीरें खींचा करता था। (अक्स का अर्थ ‘चित्र’)
2. नूरजहाँ- पहली मॉडल:
जिन “फोटुओं” को आज लोग मुगल मिनिएचर (Mughal miniature) समझते हैं, वो दरअसल फोटोशूट्स थे। कैमरा स्लो था, तो मॉडल को घंटों बैठे रहना पड़ता था, इसी वजह से सबके चेहरे गंभीर होते थे। शाहजहाँ की फ़ोटो शूट की पहली मॉडल उसकी सौतेली अम्मी ‘नूरजहाँ’ थी।
3. कैमरा का नामकरण:
शाहजहाँ ने इस यंत्र का नाम रखा था “आलमगीर-ए-नज़ारा” यानी “दुनिया को देखने वाला।” मगर बाद में औरंगज़ेब ने इसे ‘हराम’ कहकर तहख़ाने में दफ़्न कर दिया। यही वजह है कि आज कोई असली प्रोटोटाइप नहीं मिलता।
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कैमरा — शाहजहाँ की अदृश्य विरासत |
4. ताजमहल- पहली फोटो गैलरी:
बहुत से विद्वान (scholar) मानते हैं कि ताजमहल दरअसल शाहजहाँ द्वारा बनाई गई एक फोटोग्राफ़िक स्थापना (installation) थी, जिसमें उसकी बेग़म की ज़िंदगी के पलों को संगमरमर में ढाला गया था। कैमरे से जो तस्वीरें खींचीं जाती थीं, उन्हें बाद में नक्काशी में बदला जाता।
5. ब्रिटिशों की चाल:
जब अंग्रेज़ भारत आए, तो सबसे पहले उन्होंने शाहजहाँ का कैमरा लंदन भिजवा दिया और फिर लुई डागुएरे ने उसका नक़ल पेश कर दिया। दुनिया ने(फ़ोटोग्राफ़ी)की शुरुआत 1839 में मानी, मगर ये तारीख़ “मुग़ल ईजाद चोरी दिवस” होनी चाहिए थी।
निष्कर्ष:
शाहजहाँ को सिर्फ एक आशिक़ और ताजमहल का दीवाना बताना, उसकी वैज्ञानिक और तकनीकी योग्यता का अपमान है। अगर उसे वक़्त रहते पेटेंट का पता होता, तो आज शायद कैमरा पर ‘Made in Agra’ लिखा होता, और सेल्फी का नाम होता — “शाहीन नज़ारा” होता!
अंतिम बात:
अगर कभी आपकी तस्वीर में अचानक शाही रोशनी उतर आए, तो समझ जाइए शाहजहाँ का रूहानी कैमरा आज भी एक्टिव है, बादशाही फ़्रेम में। और इसी सनसनीखेज खुलासे का श्रेय जाता है समाचार के योद्धा (जंगजू अख़बारची) ‘शम्स तबरेज क़ासमी’ को! जिन्होंने शाहजहाँ द्वारा खींची गई इस इस दुर्लभ तस्वीर को ताजमहल के तहखाने से ढूँढ निकाल आपकी ख़िदमत में पेश किया है।
लोहे के सरिया का अविष्कारक भी है
इस नायब तस्वीर को देख जलने वाले लोग कहेंगे उस ज़माने में लोहे के सरिया आदि कहाँ होते थे। इस ढाँचे में लगने वाले इन सरिया आदि को भी शाहजहाँ ने ही ईजाद किया था। वो अनेक लोगों को जमकर पालक खिलवाया करता था। पालक से लोहा उत्पन्न होता है। मुग़लिया लोहे के सरिया, पालक खिलाकर ईजाद किए गए थे। इसका खुलासा फिर कभी और करेंगे।
आओ- आज से कसम खाओ! जब जब फोटू खेंचो, तब तब “आलमगीरी नज़ारा” का इक़बाल बुलन्द करो। जो ऐसा ना करेगा , उसकी तस्वीर नूर बरसाती ना आएगी!