ईसाई मिशनरी अपने धर्म के लिए बच्चे बड़े करते, मैं देश के लिए- ताई

Sindhuraj sapkal
सिंधुताई सपकाल
दुख ने दुख को पुकारा और हजारों अनाथ बच्चों को उनकी मां मिल गई। ये हैं “सिंधु ताई सपकाल”। 70 साल की उम्र में 50 साल से अनाथ बच्चों की देखभाल पूरे समर्पण और सेवा भाव से कर रही हैं। यही इनका जीवन और जीने का मकसद बन चुका है। आज 1400 बच्चों की मां बनकर उनकी देखभाल कर रही हैं। कारवां आगे बढ़ता जा रहा है। झारखंड में मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था से अनाथ बच्चों को बेचे जाने के सवाल पर इतना ही कहा- “मिशनरी अनाथ बच्चों को अपने धर्म के लिए बड़े करते हैं जबकि मैं अपने देश के लिए!”  

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जीवन परिचय

सिन्धुताई का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिम्परी मेघे गांव में 14 नवम्बर 1948 को हुआ था। उनका जन्म एक अत्यंत गरीब ग्वाले के घर मे हुआ था। कन्या होने के कारण वो एक अनचाही औलाद थी। इसलिए बचपन से ही उन्हें “चिन्दी” कह कर पुकारा जाता था जिसका मतलब होता है कपड़े का एक फटा हुआ टुकड़ा।
उनके पिता हालांकि उन्हें शिक्षा दिलवाना चाहते थे, मगर उनकी माता इस बात के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। इसलिए पिता ने पशु चराने के बहाने अपनी उस बेटी को पढ़ने के लिए स्कूल भेजते थे। गरीबी होने के कारण पिता उन्हें लिखने के लिए स्लेट नहीं दिलवा पाए, तो सिन्धुताई को पेड़ के बड़े पत्ते तोड़कर उन्हें स्लेट की तरह इस्तेमाल करना पड़ता था।
किसी तरह उन्होंने चौथी तक की पढ़ाई पूरी कर ली, मगर गरीबी के कारण उसे आगे न बढ़ा सकी थी। 10 वर्ष की नादान  उम्र में ही सिन्धुताई का विवाह दूसरे गांव के 30 वर्ष के एक चरवाहे से करवा दिया गया। 20 बर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुचते वह 3 पुत्रों की माँ भी बन गई।
सिंधुताई माननीय राष्ट्रपति डॉ प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्मानित

दुखों के पहाड़ से निकली ममता की छांव

इसी दौरान गांव के एक बड़े ताकतवर आदमी के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई जो गाँववालों से गोबर के उपले इकट्ठे करवाकर उन्हें अच्छे दामों में बेच दिया करता था। इस काम के लिए वह जंगल अधिकारियों की मदद लेता था, मगर गांववालों को कोई भी पैसा नहीं चुकाता था।
सिंधुताई के इस कदम ने जिला अधिकारी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया और फिर जिला अधिकारी ने पाया कि वो आदमी गाँव वालों से धोखा कर रहा है। जिला अधिकारी ने सरकारी फरमान जारी किया जो उस ताकतवर आदमी को बिल्कुल भी रास नहीं आया। उसने सिंधुताई को सबक सीखने के लिए उसने किसी तरीके से सिंधुताई के पति श्रीहरि को अपनी पत्नी को घर से निकलने के लिए राजी कर दिया।
श्रीहरि ने उन्हें अपने घर से निकल दिया। सिंधुताई अपनी रात घर के बाहर गौशाला में गुजारने के लिए मजबूर हो गई। 14 अकटुबर 1973 की वो रात जब वह 9 महीने की गर्भवती थी, तो घर के बाहर बने गौशाला में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। उस समय वो बिल्कुल अकेली थी, न तो पति न कोई गांववासी उनकी उस नाजुक घड़ी में उनकी मदद करने आगे आया।
अगली सुबह दर्द से तड़पते हुए जैसे-तैसे वो अपनी माँ के घर पहुंची, मगर उनकी माँ ने किसी तरह की मदद और अपने घर मे उन्हें रखने से मना कर दिया। उस अत्यंत मुश्किल की घड़ी में उनके सामने आत्महत्या ही सबसे आसान रास्ता बाकी था, मगर बच्ची को देखते हुए वो ऐसा कुछ न कर पाई।
सिंधुताई

जब अपने ही बेटी को बाल आश्रम में दे दिया

पेट पालने के लिए वह रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने के मजबूर हो गई। इसी तरह से कर दिनों तक वह भीख मांग कर अपना पेट पालती रहीं। इसी दौरान उन्हें महसूस हुआ कि ऐसे बहुत से बच्चे ऐसे है, जिन्हें अपने माता-पिता द्वारा ठुकराया गया है और वो सब भी यहां भीख मांगते हैं।
सिन्धुताई ने उन सब बच्चों को गोद ले लिया और उन सब का पेट भरने के लिए अब और ज्यादा भीख मांगनी शुरू कर दी। इन बच्चों की पीड़ा देखते हुए कुछ दिनों बाद सिन्धुताई ने निर्णय लिया कि वो हर उस बच्चे को गोद ले लेगी जिन्हें उनके माँ-बाप ने ठुकरा दिया है। इसी बीच कुछ वर्षों बाद उन्होंने अपनी बेटी को एक बाल आश्रम को दे दिया और इसका कारण था कि कहीं किसी भी तरीके से अपनी बेटी की ममता के कारण गोद लिए बच्चों के साथ भेदभाव न कर बैठे।  

महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ आवाज उठाई

रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में भीख मांगते और अपने गोद लिए बच्चों का पेट पालते हुए वो महराष्ट्र के अमरावती जिले के चिकालदरा कस्बे में पहुंच गई। उस कस्बे के आस पास बाघों को बचाने के शुरू किए गए एक प्रोजेक्ट की वजह से 84 गांव को सरकार द्वारा खाली करवाया गया। उसी दौरान जंगल अधिकारी द्वारा आदिवासियों की 132 गायों को पकड़ लिया गया और देखभाल की कमी के कारण एक गाय की मृत्यु भी हो गयी।
इस बात ने सिन्धुताई के दिल को दुख पहुचाया और उन्होंने ने निर्णय लिया कि वो विस्थापितों के लिए आवाज बुलंद करेंगी। उनके द्वारा विरोध और उठाई गई आवाज महाराष्ट्र के वन मंत्री तक पहुंची जिन्होंने गांव खाली करवाने से पहले विस्थापितों के रहने और जीवन निर्वाह के लिए उचित पालिसी बनाई।

मगर सिन्धुताई अभी भी बेघर थी

हर अनाथ बच्चों को अपनाती जा रही थी और लोगों से मदद माँग कर गुजरा कर रही थी। अब उनके साथ कुछ ऐसी महिलाएं भी जुड़ना शुरू हो गई थी जिन्हें परिवार वालों ने ठुकरा दिया था। जीवन और समाज के नजरिये से सालों की लड़ाई के बावजूद, लोगों से मदद मांगते हुए आखिरकार चिकालदरा में उन्होंने अपना पहला अनाथ आश्रम बना दिया।
उन्होंने अपना पूरा जीवन असहाय बच्चों को अपनाते और लोगों से मदद इकट्ठा करते हुए गुजार दिया। सालों के इस संघर्ष की बदौलत आज उन्होंने 1400 से ज्यादा बच्चों को अपने आश्रम में पाला और पढ़ाया है। इस बड़े से उनके परिवार में आज 207 दामाद और 37 बहुएँ और हजारों नाती-पोते-पोतियां है। सभी बच्चों को अच्छी से अच्छी पढ़ाई का मौका दिया जाता है। सैकड़ों बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और बड़ी कंपनियों में कार्यरत है। इनमे से एक पी एच डी स्कॉकर भी है।
सिन्धुताई के आज अनेकों बहुत बड़े आश्रम में लड़कियों और लड़कों के लिए अलग अलग आश्रम है। इन मे से एक आश्रम गायों के लिए भी हैं। उनकी बेटी और अन्य गोद लिए बच्चे आज अनेकों ही अनाथ आश्रम शुरू कर चुके है।
सिंधुताई

जब पति वापस आना चाहा

उनके जीवन को देखते हुए, उनके पति 80 वर्ष की उम्र में उनसे माफी मांगते हुए वापिस उनके पास आये और साथ रहने की इच्छा जाहिर की। मगर सिन्धुताई जो अब सिर्फ हजारों बच्चों की माँ थी, अपने पति को सिर्फ एक शर्त पर अपनाने के लिए तैयार हो गई कि अब वो उन्हें सिर्फ एक बच्चे के रूप में अपना सकती है। आज भी जब कोई उनके आश्रम में जाता है तो वह गर्व से कहती है कि उनका सबसे बड़ा बेटा 80 वर्ष का है। सिन्धुताई को प्यार से आज सभी बच्चे और अन्य लोग प्यार से ताई कहते हैं
2016 में DY Patil Institute Of Technology And Research ने उन्हें डॉक्टरेट (Doctrate) की उपाधि से समानित किया है। आज वही चौथी पास एवं अनाथों की “ताई” डॉ सिंधुताई सपकाल बन गई है।

लोगो को जीवन का गुरु मंत्र देती ताई

जीवन के सबसे कठोर, कठिन और पीड़ादायक दिनों में सिन्धुताई ने जीवन से कोई शिकायत नहीं की। आज भी जब लोग पूछते हैं कि जिन लोगों ने उन्हें दुख दिए या बुरा बर्ताव किया उनके प्रति उनकी भावनाएँ कैसी थी? तो उनका उत्तर बड़ा आसान होता है। वो कहती हैं कि “मेरा जीवन मेरी ज़िम्मेदारी थी और अगर उस नाजुक दौर में मैं शिकायत ही करती रहती तो उन रास्तों को न तलाश कर पाती जिन रास्तों ने मेरे जीवन को यहाँ तक पहुंचाया। उन्हें किसी से न तो कोई शिकायत थी न किसी पर गुस्सा।”  

ताई के जीवन पर फ़िल्म

सिन्धुताई के जीवन पर आधारित 2010 में “मि सिन्धुताई सपकाल” नाम की एक मराठी फ़िल्म भी बनाई गई है। जिसे World Premier के लिए 54वें  London Film Festival में शामिल किया गया था। इस फ़िल्म ने अनेको ही इनाम अपने नाम किए हैं।
सिंधुताई के जीवन पर बनी मराठी फिल्म

ताई को मिले अवार्ड

उनकी इस समाज सेवा भावना और योगदान को देखते हुए 750 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से समानित किया गया है। जिन में से कुछ निम्न है:

★ Social Worker of the Year award from Wockhardt Foundation 2016
★ 2015 – Ahmadiya Muslim Peace Award for the year
★ 2014 – BASAVA BHUSANA PURASKAR Basava Bhusana Puruskar, by Basava Seva Sangh Pune.
★ 2013 – Mother Teresa Award for Social Justice.
★ 2013 – The National Award for Iconic Mother.
★ 2012 – Real Heroes Awards, given by CNN-IBN.
★ 2012 – COEP Gaurav Purskar
★ 2010 – Ahilyabai Holkar Award, given by the Govt Of Maharashtra
★ 2008 – Woman of the Year Award, given by Marathi newspaper Loksatta
★ 1996 – Dattak Mata Purskar
★ 1992 – Leading Social Contributor Award.
★ Sahyadri Hirkani Award
★ Rajai Award
★ Shivlila Mahila Gaurav Award


References:
1) https://en.m.wikipedia.org/wiki/Sindhutai_Sapkal
2) http://sindhutaisapakal.org

Picture Sources: Internet

Keyword: Sindhu tai Sakpal |

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