२३- २२०० वर्ष प्राचीन राज-भवन : ताजमहल का सच

Truth of Tajmahal

ताजमहल की देख-रेख एवं रख-रखाब का कार्य आजकल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है। यह विभाग सन्‌ १८६१ में कार्यरत हुआ था। उससे पूर्व ताजमहल का रख-रखाव अंग्रेजों तथा मुगलों द्वारा किया जाता रहा था। इस विषय पर समय-समय पर किये गये मरम्मत के कार्यों का लेखा-जोखा विभिन्न अभिलेखों में प्राप्य है।
इस विषय में सबसे पहला अभिलेख शाहजहाँ के नाम शाहजादा औरंगजेब द्वारा धौलपुर से लिखा पत्र है। जो उसने दिल्ली से दक्षिण की यात्रा पर जाते हुए सन्‌ १६५२ में लिखा था। इस पत्र में औरंगजेब ने ताजमहल की टूट-फूटी दशा पर आँसू बहाये था। तथा लिखा था कि कुछ मरम्मत उसने स्वयं करा दी थी तथा बाकी मरम्मत जो अति दुश्तर है, इनमें मुख्य गुम्बद में आए चटकाव का भी वर्णन था, जो उसके अनुसार मुख्य राज़ द्वारा भी ठीक नहीं किया जा सकता था।  
शाहजहाँ ने इस पत्र को प्राप्त करने के पश्चात क्या कार्यवाही की?, इसका कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है। इसके बाद ताजमहल सम्बन्धी मुगलों के कुछ फरमान उपलब्ध हैं, परन्तु उनमें ताजमहल में की गई किसी विशेष मरम्मत का उल्लेख नहीं हैं। कालान्तर में ताजमहल अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया।
काले पत्थर पर बनी कलश की डिज़ाइन

स्वर्ण कलश को बदलकर पीतल के लगाया गया

सन्‌ १८१० से १८१४ तक कैप्टन जोजेफ टेलर ने ताजमहल की मरम्मत कराई थी। कहते हैं कि इसी ने ताजमहल के मुख्य गुम्बद का ऊपर स्वर्ण कलश बदलकर पीतल का चढ़वा दिया था। जैसा कि ज्ञात है जब सन्‌ १८७३-७४ में इस कलश को साफ करने के लिए उतारा गया तो उस पर 'जोजेफ टेलर १८११' लिखा पाया गया। मेहमान खाने के सामने, काले पत्थर में उक्त कलश की एक प्रतिकृति बनी है, जो ३० फुट ६ इंच है, जबकि वर्तमान कलश ३२ फुट ५.५ इंच लम्बा है।  
ताजमहल पर लगा हुआ कलश

कुतर्क का कुतर्क

इसके पश्चात भी ताजमहल की मरम्मत समय-समय पर कराई जाती रही। ७.११.१९३७ तथा ११.११.१९३७ के हिन्दुस्तान टाइम्स में कुछ समाचार ताजमहल की दुर्दशा पर छापे गये। इसके आधार पर एक जांच कमेटी की स्थापना की गईं। जाँच कमेटी की रिपोर्ट में कुछ चौकाने वाले तथ्य मिले, इनमें से कुछ पर कार्यवाही हुई तथा कुछ पर नहीं हुई। इनमें से कुछ तथ्य ऐसे थे जो ताजमहल की विवादित आयु पर पर्याप्त शोध तथा इनकी समुचित समीक्षा की जाती तो सम्भव था इस विवाद की तह में पहुँचा जा सकता था और जो निष्कर्ष प्राप्त होते, वह पूर्णतः विज्ञान सम्मत होते।
इस रिपोर्ट में प्रथम बार ताजमहल के मुख्य भवन के चारों ओर अवस्थित चारों स्तम्भों के माप प्रकाशित किये गये। इन मापों के अनुसार चारों स्तम्भों को भिन्न-भिन्न दिशा में झुका हुआ पाया गया। यद्यपि यह रिपोर्ट सन्‌ १९४० में प्राप्त हो गई थी, परन्तु इस झुकाव के बिन्दु पर कोई विशेष कार्यवाही नहीं की गई तथा अनेक आधारों पर इस झुकाव के प्रश्न को नकारा गया। कुछ अधिकारियों का कथन है कि यह झुकाव इस कारण है कि उस समय के कारीगर इतने अधिक योग्य नहीं थे कि सभी स्तम्भ सूक्ष्म से सूक्ष्म माप तक शुद्ध सीधे खड़े कर सकते। उनके पास अति उत्तम मापक यन्त्र भी नहीं थे।
यह कुतर्क समझ में नहीं आता है। इतने विशाल प्रांगण वाले भवन में जहाँ सूक्ष्म से सूक्ष्म फूल पत्ती से लेकर विशालकाय अनुकृतियां तक हैं तथा प्रत्येक की प्रतिकृति दूसरी ओर उपलब्ध है, उनमें एक बाल का भी अन्तर कहीं पर परिलक्षित नहीं होता तो स्तम्भों में ही झुकाव क्यों है? जबकि स्तम्भों की स्वयं की संरचना में कोई अन्तर नहीं है?
इसके विपरीत कुछ विद्वान इस झुकाव को उस समय के कारीगरां का मौलिक कार्य मानकर उनकी कुशलता एवं बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करते हैं। उनका कथन है कि यह विशेष प्रबन्ध इसलिये किया गया था कि- किसी दुर्घटनावश यदि कोई स्तम्भ गिर जाय तो वह मुख्य भवन पर न गिर कर विपरीत दिशा में गिरे, जिससे मुख्य भवन क्षतिग्रस्त न हो।

इस तर्क में भी पर्याप्त बल नहीं है। यदि ऐसा होता तो प्रत्येक स्तम्भ व मुख्य भवन से ठीक विपरीत दिशा में झुका होता और किसी भी कारण से गिरते समय मुख्य भवन से स्तम्भ की दिशा में (विपरीत दिशा में) गिरता। परंतु वास्तव में झुकाव मुख्य भवन से ठीक विपरीत दिशा में न होकर प्रत्येक स्तम्भ का झुकाव भिन्न-भिन्न दिशाओं में है। यहाँ पर यह भी विचारणीय है कि किसी भी दिशा में झुकाव देना कहाँ की समझदारी है? जबकि सीधा खड़ा स्तम्भ सबसे अधिक सुरक्षित होता है।

स्तम्भों का झुकाव निम्नानुसार है -

स्तम्भ वर्तमान झुकाव का अंश, भवन से विपरीत दिशा का अंश
उत्तर पूर्व- १४ डिग्री, ४५ डिग्री।
दक्षिण पूर्व- १४६ डिग्री, १३५ डिग्री।
दक्षिण पश्चिम- २३१ डिग्री, २२५ डिग्री।
उत्तर पश्चिम- २५७ डिग्री,  ३१५ डिग्री।
स्पष्ट है कि उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम के स्तम्भ (दोनों ही) लगभग पश्चिम की ओर झुके हुए हैं। जानबूझ कर कोई भी वस्तुकार ऐसी संरचना कभी नहीं करेगा।
स्तम्भों की भवन पर गिर कर उसे क्षतिग्रस्त करने की कल्पना, तथ्यों से परे है। जो इस प्रकार सम्भावना व्यक्त करते हैं, उन्होंने ताजमहल की संरचना के ऊपर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। इसका मुख्य भवन अष्टभुजा का है, जो १८७ फीट वर्ग पर आधारित है। इस वर्ग के चारों कोनों को ३३ फीट ६ इंच के माप में काट कर उसे अष्टभुजा का बनाया गया है। इस कटे भाग के मध्य से लगभग ११६ फीट की दूरी पर स्तम्भ स्थिर है। स्तम्भ भी अष्टभुजा के हैं तथा इनका व्यास ६५ फीट है। मुख्य भवन की दीवार की मोटाई १४ फीट है। इस प्रकार से ताजमहल के मुख्य भवन की दीवार का भीतरी भाग स्तम्भ से लगभग १३० फीट दूर है। प्रत्येक स्तम्भ की ऊँचाई १३१-१३२ फीट है। पहले तो इस प्रकार का स्तम्भ जो छत्र सहित पांच तल का है, समूल सम्पूर्ण एक साथ गिरेगा नहीं, अपितु खण्ड खण्ड होकर गिरेगा। उस दशा में वह मुख्य भवन को छू भी नहीं सकेगा। यदि मान भी लिया जाए, ताकि यह विशाल स्तम्भ सम्पूर्ण रूप से एक साथ मुख्य भवन की ओर सीधी दिशा में ही गिरता है तो भी मात्र इसका छत्र ही बाहरी दीवार से टकरा कर उस १४ फुट मोटी दीवार को नगण्य क्षति पहुचा सकता है। अतः भवन पर गिरने से बचाने की युक्ति की कल्पना निराधार तथा तथ्यों से परे है।

इसके अतिरिक्त जैसा कि आगे की सारिणी से ज्ञात होगा

कुछ इंचों के अन्तर का माप ६५ फुट मोटे स्तम्भ को किसी विशेष दिशा की ओर गिरने को प्रेरित कदापि नहीं कर सकता। इन कुछ इंचों के छुकाव को भवन पर गिरने से बचाने के लिए अथवा उस समय के कारीगरों के अविकसित उपकरणों तथा अक्षमता से जोड़ना न्याय-संगत प्रतीत नहीं होता। जिस प्रकार सम्पूर्ण भवन के माप में कहीं पर नाम-मात्र का भी अन्तर परिलक्षित नहीं होता है, उसी प्रकार तथ्य यही है कि जब यह स्तम्भ बन कर तैयार हुए होंगे उस समय इनमें से प्रत्येक की ऊँचाई एवं कोण एक समान रहे होंगे। उपलब्ध दृश्य प्रमाणों के आधार पर उपरोक्त तथ्य को अस्वीकार करने का रंचमात्र भी कारण नहीं है। जब मुख्य भवन की सभी भुजाओं, प्रत्येक ओर की ऊँचाईयों, छतरियों तथा मस्जिद एवं मेहमानखाने की प्रत्येक दीर्घा का माप एक समान है तो स्तम्भों के माप में ही अन्तर कैसे हो सकता है। आइये, तथ्यां की पुनः विवेचना एवं समीक्षा करें।

स्तंभो के माप की समीक्षा

इन स्तम्भों का माप सबसे पहले सन्‌ १९४० ई. में लिया गया था। उस समय उपरोक्त अटकलें लगाई गई थीं, परन्तु जैसा कि ऊपर विवेचना की जा चुकी है, यह सभी अटकलें आधारहीन थीं। तदुपरान्त सन्‌ १९६५ में पुनः माप लिये गये, इन मापों में और भी अन्तर परिलक्षित हुए, दोनों बार के माप निम्न प्रकार हैं -

स्तम्भ सन्‌ १९४० का झुकाव, सन्‌ १९६५ का झुकाव और अन्तर

दक्षिण पूर्व- ४.५ इंच, ५.० इंच, ०.५ इंच
उत्तर पश्चिम- १.४ इंच, १.५ इंच , ०.१ इंच
उत्तर पूर्व- १.९ इंच, २.० इंच, ०.१ इंच
दक्षिण पश्चिम- ८.५ इंच, ८.६ इंच, ०.१ इंच
इस प्रकार हम पाते हैं कि दक्षिण दिशा के दोनों स्तम्भों का झुकाव सर्वाधिक है, जबकि उत्तर की ओर के दोनों स्तम्भों का झुकाव समान्य-सा है।
सन्‌ १९६५ में बढ़े हुए झुकाव का अधिकारियों तथा सम्बन्धित वैज्ञानिकों ने कोई विशेष महत्व स्वीकार नहीं किया और न ही इन बढ़े हुए मापों का कोई विश्लेषण ही किया। यदि इनकी निष्पक्ष समीक्षा की गई होती तो इनसे कई तथ्य उजागर हो सकते थे। आइये, हम लोग ही कुछ प्रयास कर इनकी विवेचना तथा समीक्षा करें।
दक्षिण पूर्व स्थित स्तम्भ सन्‌ १९४० ई. में ४.५ इंच झुका हुआ था जो सन्‌ १९६५ ई. में बढ़कर ५.० इंच हो गया। यह झुकाव २५ वर्ष के अन्तराल में ०.५ इंच बढ़ा। यदि यह स्वीकार कर लिया जाए कि पिछले हर २५ वर्ष में यह स्तम्भव ०.५ इंच की समान गति से झुका था तो निष्कर्ष यह निकलता है कि सन्‌ १९६५ ई. में २५० वर्ष पूर्व यह स्तम्भव झुकना प्रारम्भ हुआ था। दूसरे शब्दों में यह झुकाव सन्‌ १७१५ ई. से प्रारम्भ हुआ हुआ था। उससे पूर्व यह स्तम्भ सीधा खड़ा होना चाहिए था, जैसा कि बताया जाता है कि शाहजहाँ ने ताजमहल को सन्‌ १६३१ ई. से सन्‌ १६५३ ई. तक बनवाया था। इस प्रकार लगभग सन्‌ १६५३ ई. से सन्‌ १७१५ ई. तक यह स्तम्भ सीधा खड़ा रहा, तत्पश्चात किन्ही अज्ञात कारणों से इसका झुकना प्रारम्भ हो गया। वे कारण क्या थे? इसकी समीक्षा किसी ने नहीं की। अतः यह अभी भी खोज का विषय है। यह भी खोज का विषय है कि सन्‌ १६५३ से सन्‌ १७१५ ई. तक यह स्तम्भ सीधा ही खड़ा रहा अथवा कुछ कम गति से झुकता रहा, जो अब बढ़कर ५.० इंच हो गया।
दक्षिण पूर्व के स्तम्भ को छोड़कर जो पिछले २५ वर्षों में आधा इंच झुका था, अन्य तीनों स्तम्भ समान गति से मात्र ०.१ इंच प्रति २५ वर्ष की गति से झुके हैं। यह पांच गुने का अन्तर बहुत है। क्योंकि दक्षिण पश्चिम का स्तम्भ जितना २५ वर्ष में झुका है अन्य स्तम्भों में इतना झुकाव १२५ वर्ष में आना चाहिए। ऐसा क्यों तथा किसलिये हैं ? इस पर सभी सम्बन्धित अधिकारी भयानक चुप्पी साधे हैं।
उत्तर पश्चिम स्थित स्तम्भ सन्‌ १९४० से सन्‌ १९६५ ई. तक १.४ इंच से बढ़कर १.५ इंच झुक गया। इस प्रकार २५ वर्ष में इसके झुकाव में मात्र ०.१ इंच की वृद्धि हुई। इस दर से गणना करने पर ज्ञात होता है कि यह स्तम्भ सन्‌ १९६५ ई. से ३७५ वर्ष पूर्व अर्थात्‌ सन्‌ १५९० ई. में सीधा खड़ा होना चाहिए था। अभी जैसा कि उल्लेख किया गया है प्रचलित धारणा के अनुसार ताजमहल का निर्माण काल सन्‌ १६३१ से सन्‌ १६५३ है। परन्तु इस गणना से सिद्ध होता है कि ताजमहल के कथित निर्माण प्रारम्भ होने से ४० वर्ष पूर्व उत्तर पश्चिम का स्तम्भ सीधा खड़ा था तथा ताजमहल का निर्माण प्रारम्भ होने के समय ०.१६ इंच तथा निर्माण पूर्ण होने तक ०.२६ इंच (२५७डिग्री की ओर ) झुक चुका था।
इस वैज्ञानिक गणना पर आधारित प्रमाण से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि शाहजहाँ ताजमहल का निर्माता नहीं है, क्योंकि यह चारों स्तम्भ उस १९ फीट ऊँचे तथा ३२७ फीट वर्गाकार पीठ के चारों कोनों पर अवस्थित हैं जिनके मध्य में ताजमहल का मुख्य भवन है। इस प्रकार चारों स्तम्भ एवं मुख्य भवन एक दूसरे के पूरक तथा अविभाज्य अंग हैं। सतम्भ किसी अन्य व्यक्ति ने बनवाये हों तथा भवन की संरचना किसी अन्य व्यक्ति ने की हो, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
मुल्ला अब्दुल हमीद लाहोरी लिखित बादशाहनामा खण्ड एक के पृष्ठ ४०३ की सातवीं पंक्ति में स्पष्ट उल्लेख है कि "राजा मानसिंह के महल को रानी को दफनाने के लिए चुना गया था"! मानसिंह यद्यपि सन्‌ १५६२ ई. में अकबर की सेवा में आ गये थे, परन्तु उन्हें राजा की गद्‌दी सन्‌ १५८९ ई. में मिली थी। सन्‌ १५९० ई. में यह स्तम्भ सीधा खड़ा था। क्या यह तथ्य सद्धि नहीं करता कि यह पूरा भवन सन्‌ १५६२ ई. अथवा सन्‌ १५८९ ई. में राजा मानसिंह के स्वामित्व में था और इसी भवन को उनके पौत्र राजा जयसिंह से शाहजहाँ ने सन्‌ १६३१ ई. में लिया था। यदि सन्‌ १५९० ई. में यह भवन इसी रूप में था तो शाहजहाँ द्वारा इसका निर्माण कराया जाना पूर्णतः असम्भव था।

उत्तर दिशा के स्तम्भ में झुकाव सबसे कम है

उत्तर पूर्व स्थित स्तम्भ का झुकाव भी २५ वर्ष में ०.१ इंच ही बढ़ा है। यह स्तम्भ सन्‌ १९४० ई. से सन्‌ १९६५ ई. तक बढ़कर २.० इंच झुक गया है। २५ वर्ष में ०.१ इंच की गति से यह झुकाव ५०० वर्ष में आना चाहिए। अस्तु, यह स्तम्भ कम से कम सन्‌ १४६५ ई. में सीधा खड़ा था। यह वह समय था जिस समय मध्य एशिया में बाबर का जन्म भी नहीं हुआ था।
दक्षिण पश्चिम स्थित स्तम्भ की कहानी सबसे अधिक विचित्र है। इसका झुकाव न केवल सबसे अधिक है, अपितु दक्षिण-पूर्व के स्तम्भ से, जिसका झुकाव द्वितीय स्थान पर है, से डेढ़ गुने से भी पर्याप्त अधिक है। शेष बचे दोनों स्तम्भों से यह झुकाव चार तथ छः गुना है। इस स्तम्भ में झुकाव इतना अधिक क्यों है? यह अति चिन्ता का विषय है, यद्यपि इसके झुकाव की गति सामान्य ही है अर्थात्‌ दक्षिण पूर्व के स्तम्भ को छोड़कर (जिसकी झुकाव गति ०.५ इंच प्रति २५ वर्ष है) ०.१ इंच प्रति २५ वर्ष।
उपरोक्त विधि से गणना करने पर ज्ञात होता है कि २५ वर्षों में ०.१ इंच की गति से यह स्तम्भ २१५० वर्ष में ८.६ इंच झुका होगा। यह गणना हमको ईसा पूर्व १८५ वर्ष तथा महाराज विक्रमादित्य से भी १२८ वर्ष की पूर्व ले जाती है। इस प्रकार वर्ष १९९६ ई. में यह स्तम्भ कम से कम २१८९ वर्ष की आयु भोग चुका है।

झुकाव के आधार पर स्त्म्भों की दशा

स्तम्भ की दिशा झुकाव का कोण- झुकाव २५ वर्ष में- झुकाव में वृद्धि- अनुमानित कम से कम आयु
१९४० में- १९६५ में- सन्‌ १९६५ में- सन्‌ १९९० में
दक्षिण पूर्व- १४६ डिग्री- ४.५ इंच- ५.० इंच- ०.५ इंच- २५० वर्ष २७५ वर्ष
उत्तर पश्चिम- २५७ डिग्री- १.४ इंच- १.५ इंच- ०.१ इंच- ३७५ वर्ष ४०० वर्ष
उत्तर पूर्व- १४ डिग्री- १.९ इंच- २.० इंच- ०.१ इंच- ५०० वर्ष ५२५ वर्ष
दक्षिण पश्चिम- २३१ डिग्री- ८.५ इंच- ८.६- इंच ०.१ इंच- २,१५० वर्ष २,१७५ वर्ष
उपरोक्त सारिणी आँखें खोल देने वाली तो हैं ही साथ ही कुछ मूक प्रश्न भी करती है।
(१) भिन्न-भिन्न स्तम्भों की आयु भिन्न क्यों है ?
(२) यमुना तट पर स्थित स्तम्भों का झुकाव निम्नतम तथा विपरीत दिशा के स्तम्भों का झुकाव सर्वाधिक क्यों है ?
(३) आयु के साथ हर स्थान पर 'कम से कम' शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया है?

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